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क्या "सलामुन अलैकुम" कहकर सलाम करना सही है?

प्रश्न: 67801

बहुत से मुसलमान अपने भाइयों को “सलामुन अलैकुम” (सलाम अलैकुम) कहकर सलाम करते हैं। तो क्या हमारे लिए ऐसा कहना जायज़ है?

और यदि यह सही नहीं है, तो क्या ऐसा कहने वाले को सलाम का सवाब मिलेगा?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा एवं गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है, तथा दुरूद व सलाम की वर्षा हो अल्लाह के रसूल पर। इसके बाद :

सर्व प्रथम :

अभिवादन (सलाम) की शुरुआत करने वाले व्यक्ति द्वारा “सलामुन अलैकुम” या “सलामुन अलैका” कहने में कोई हर्ज नहीं है। अल्लाह तआला ने हमें बताया है कि स्वर्ग के लोगों को फ़रिश्तों का अभिवादन "सलामुन अलैकुम" होगा, जैसा कि अल्लाह ने फरमाया :

وَالْمَلائِكَةُ يَدْخُلُونَ عَلَيْهِمْ مِنْ كُلِّ بَابٍ سَلامٌ عَلَيْكُمْ بِمَا صَبَرْتُمْ فَنِعْمَ عُقْبَى الدَّارِ

الرعد/23، 24 .

"तथा फ़रिश्ते प्रत्येक द्वार से उनके पास आएँगे। (वे कहेंगे :) सलाम (शांति) हो तुमपर उसके बदले जो तुमने धैर्य किया। तो क्या ही अच्छा है इस घर (आखिरत) का परिणाम!" (सूरतुर-रा'द 13:23-24).

तथा फरमाया :

وَسِيقَ الَّذِينَ اتَّقَوْا رَبَّهُمْ إِلَى الْجَنَّةِ زُمَرًا حَتَّى إِذَا جَاءُوهَا وَفُتِحَتْ أَبْوَابُهَا وَقَالَ لَهُمْ خَزَنَتُهَا سَلامٌ عَلَيْكُمْ طِبْتُمْ فَادْخُلُوهَا خَالِدِينَ

الزمر/73 .

"तथा जो लोग अपने पालनहार से डरते रहे, वे जन्नत की ओर गिरोह के गिरोह ले जाए जाएँगे। यहाँ तक कि जब वे उसके पास पहुँच जाएँगे तथा उसके द्वार खोल दिए जाएँगे और उसके रक्षक उनसे कहेंगेः सलाम है तुमपर। तुम पवित्र हो। सो तुम इसमें हमेशा रहने को प्रवेश कर जाओ।" (सूरतुज़-ज़ुमर 39:73)

इसी प्रकार, सलाम का उल्लेख "सलामुन अलैकुम" के शब्द के साथ इन आयतों में हुआ है, अल्लाह तआला ने फरमाया :

الَّذِينَ تَتَوَفَّاهُمُ الْمَلائِكَةُ طَيِّبِينَ يَقُولُونَ سَلامٌ عَلَيْكُمُ ادْخُلُوا الْجَنَّةَ بِمَا كُنْتُمْ تَعْمَلُونَ

النحل/32

“जिनके प्राण फ़रिश्ते इस हाल में निकालते हैं कि वे स्वच्छ-पवित्र होते हैं। वे (फ़रिश्ते) कहते हैं : ‘सलामुन अलैकुम’ (तुमपर सलाम हो)। तुम अपने (अच्छे) कामों के बदले स्वर्ग में प्रवेश कर जाओ।” (सूरतुन-नह्ल 16:32).

तथा फरमाया :

وَإِذَا سَمِعُوا اللَّغْوَ أَعْرَضُوا عَنْهُ وَقَالُوا لَنَا أَعْمَالُنَا وَلَكُمْ أَعْمَالُكُمْ سَلامٌ عَلَيْكُمْ لا نَبْتَغِي الْجَاهِلِينَ

القصص/55

“और जब वे व्यर्थ बात सुनते हैं, तो उससे किनारा करते हैं, तथा कहते हैं : हमारे लिए हमारे कर्म हैं और तुम्हारे लिए तुम्हारे कर्म। सलाम है तुमपर, हम जाहिलों को नहीं चाहते।” (सूरतुल-क़सस 28:55]

तथा अल्लाह ने फरमाया :

وَإِذَا جَاءَكَ الَّذِينَ يُؤْمِنُونَ بِآيَاتِنَا فَقُلْ سَلامٌ عَلَيْكُمْ كَتَبَ رَبُّكُمْ عَلَى نَفْسِهِ الرَّحْمَةَ أَنَّهُ مَنْ عَمِلَ مِنْكُمْ سُوءًا بِجَهَالَةٍ ثُمَّ تَابَ مِنْ بَعْدِهِ وَأَصْلَحَ فَأَنَّهُ غَفُورٌ رَحِيمٌ

الأنعام/54

“तथा (ऐ नबी!) जब आपके पास वे लोग आएँ, जो हमारी आयतों (क़ुरआन) पर ईमान रखते हैं, तो आप कह दें कि तुमपर सलाम (शांति) है। तुम्हारे रब ने दया करना अपने ऊपर अनिवार्य कर लिया है कि निःसंदेह तुममें से जो व्यक्ति अज्ञानतावश कोई बुराई करे, फिर उसके पश्चात् तौबा (क्षमा याचना) करे और अपना सुधार कर ले, तो निश्चय वह (अल्लाह) अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है।” (सूरतुल-अनआम 6:54)

इब्ने हिब्बान (सहीह इब्ने हिब्बान : 493) ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि एक आदमी अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास से गुज़रा, जबकि आप एक सभा में थे तो उसने कहा :  “सलामुन अलैकुम” (तुमपर शांति हो)। इसपर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “दस नेकियाँ।” फिर एक और आदमी वहाँ से गुज़रा और उसने कहा : “सलामुन अलैकुम व रहमतुल्लाहि (तुमपर शांति और अल्लाह की रहमत हो)।” आपने फरमाया : “बीस नेकियाँ।” फिर एक और आदमी वहाँ से गुज़रा और उसने कहा : “सलामुन अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहु (तुमपर शांति और अल्लाह की रहमत और उसकी बरकतें हों)।” आपने फरमाया : “तीस नेकियाँ।” एक आदमी उठकर सभा से चला गया और सलाम नहीं किया। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "तुम्हारा साथी कितनी जल्दी भूल गया। जब तुम में से कोई किसी सभा में आए, तो सलाम कहे। फिर अगर वह बैठना चाहता है तो बैठ जाए। फिर जब वह जाना चाहे, तो उसे सलाम कहना चाहिए, क्योंकि पहली बार सलाम करना दूसरी बार सलाम कहने से ज़्यादा महत्वपूर्ण नहीं है।" अलबानी रहिमहुल्लाह ने ‘सहीह अत-तरगीब वत-तरहीब’ (हदीस संख्या : , 2712) में इसे सहीह कहा है।

ये सारी दलीलें और अन्य प्रमाण इस बात को स्पष्ट करते हैं कि किसी व्यक्ति के “सलामुन अलैकुम” कहकर सलाम कहने में कोई हर्ज नहीं है, तथा उसे इसपर सवाब मिलेगा और वह अपने सलाम के जवाब का हकदार है।

विद्वानों ने इस बारे में मतभेद किया है कि “अस-सलामु अलैकुम” कहना बेहतर है, या “सलामुन अलैकुम”ॽ या वे दोनों बराबर हैंॽ

मर्दावी रहिमहुल्लाह  ने अपनी किताब "अल-इंसाफ़" (2/563) में कहा :

"यदि कोई व्यक्ति किसी जीवित व्यक्ति को सलाम कहे, तो सही मत यह है किसी व्यक्ति के 'अलिफ-लाम' के साथ (अस्सलामु अलैकुम) या बिना ‘अल’ के (सलामुन अलैकुम) कहने की आज़ादी है। उन्होंने ‘अल-फ़ुरु’ में इसे प्राथमिकता दी है। तथा उन्होंने कहा : एक से ज़्यादा लोगों ने इसका ज़िक्र किया है।"

फिर उन्होंने इमाम अहमद से एक रिवायत का उल्लेख किया जिसमें 'अलिफ-लाम' के साथ (अस्सलामु अलैकुम) कहना बेहतर कहा गया है, जबकि इब्ने अक़ील ने 'बिना अलिफ-लाम' के (यानी सलामुन अलैकुम कहना) बेहतर बताया है।

इमाम नववी ने "अल-अज़कार" (पृष्ठ 356-358) में कहा :

"यह बात जान लो कि सबसे बेहतर यह है कि सलाम करने वाला व्यक्तिالسلام عليكم ورحمة الله وبركاته (अस-सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुह) कहे, यानी वह बहुवचन सर्वनाम का प्रयोग करे, भले ही जिसे सलाम किया जा रहा है वह एक ही व्यक्ति क्यों न हो। तथा उत्तर देने वाला وعليكم السلام ورحمة الله وبركاته (व अलैकुमुस्सलाम व रहमतुल्लाहि व बरकातुह) कहे।
हमारे विद्वानों ने कहा :

अगर सलाम करने वाला "السلام عليكم" (अस्सलामु अलैकुम) कहे, तो सलाम पूरा हो जाता है।

अगर वह "السلام عليك" (अस्सलामु अलैक) या "سلام عليك" (सलामुन अलैक) कहे, तब भी यह स्वीकार्य है।

जहाँ तक जवाब की बात है, तो कम से कम "وعليك السلام" (व अलैकस्सलाम) या "وعليكم السلام" (व अलैकुमुस्सलाम) कहना चाहिए।
अगर कोई (बिना 'व' के) "عليكم السلام" (अलैकुमुस्सलाम) कहे, तो भी वह पर्याप्त है और उसे उत्तर माना जाएगा...

अगर सलाम करने वाला "سلام عليكم" (सलामुन अलैकुम) या "السلام عليكم" (अस्सलामु अलैकुम) कहे : तो जवाब देने वाला दोनों ही स्थितियों में ‘सलामुन अलैकुम’ कह सकता है, तथा उसके लिए अस्सलामु अलैकुम कहना भी अनुमेय है। अल्लाह तआला ने फरमाया : قالوا سلاماً قال سلامٌ  "उन्होंने कहा: सलाम, उसने कहा : सलाम।" (सूरतुज़-ज़ारियात : 25).

हमारे साथियों में से इमाम अबुल-हसन अल-वाहिदी ने कहा : “आपके पास 'अलिफ-लाम' के साथ या बिना ‘अलिफ-लाम’ के सलाम कहने में विकल्प है। मैं (नववी) कहता हूँ : "लेकिन 'अलिफ-लाम' के साथ कहना बेहतर है।" संक्षेप के साथ उद्धरण समाप्त हुआ।

दूसरी बात :

सलाम (का आरंभ) करने वाले का ‘’अलैकस्सलाम’’ या ‘’अलैकुमुस्सलाम’’ कहना नापसंदीदा (मकरूह) है ; क्योंकि यह मृतकों का सलाम है, जैसा कि पैग़ंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया है।

अबू दाऊद (हदीस संख्या : 5209) और तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 2722) ने अबू जुरैय अल-हुजैमी (रज़ियल्लाहु अन्हु) से रिवायत किया है, कि उन्होंने कहा : "मैं नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया और कहा : अलैकस्सलाम, या रसूलल्लाह, ऐ अल्लाह के रसूल! आपपर शांति हो। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “अलैकस्लाम” मत कहो; क्योंकि ‘अलैकस्सलाम' मृतकों का सलाम है।" इस हदीस को अल्बानी ने “सहीह अबी दाऊद” में सहीह कहा है।

आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कथन : ”क्योंकि “अलैकस्सलाम' मृतकों का सलाम है।" का मतलब : उस प्रथा की ओर इशारा करना है जो बहुत से कवियों और अन्य लोगों में प्रचलित था कि वे मृतकों को "अलैकस्सलाम" कहकर सलाम किया करते थे। अन्यथा, हक़ीक़त में मृतकों को सलाम करने में आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत (तरीक़ा) वही है जो जीवितों को सलाम करने में आपकी सुन्नत (तरीक़ा) है, (यानी दोनों को सलाम कहते समय) आप “अस्सलामु अलैकुम” कहते थे।

इब्ने क़य्यिम रहिमहुल्लाह ने इस बात को स्पष्ट करते हुए कहा :

"पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की आदत थी कि जब आप सलाम की शुरुआत करते तो “अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि” कहते थे। तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम नापसंद करते थे कि कोई सलाम का आरंभ करते हुए “अलैकस्सलाम” कहे। अबू जुरैय अल-हुजैमी (रज़ियल्लाहु अन्हु) कहते हैं : "मैं नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास आया और कहा : अलैकस्सलाम, या रसूलल्लाह, (ऐ अल्लाह के रसूल! आपपर शांति हो।) आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “अलैकस्लाम” मत कहो; क्योंकि “अलैकस्सलाम' मृतकों का सलाम है।" (सहीह हदीस)

कुछ लोगों के लिए इस हदीस को समझना कठिन हो गया। उन्होंने यह समझा कि यह हदीस उस बात के खिलाफ है जो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रमाणित है कि आपने मृतकों को "السلام عليكم" (अस्सलामु अलैकुम) कहकर सलाम किया। उन्होंने यह सोचा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के फरमान : “क्योंकि ‘अलैकस्सलाम' मृतकों का सलाम है।" का मतलब यह है कि मृतकों को सलाम करने का यह शरीअत में निर्धारित तरीका है (यानी इस हदीस में शरीअत में निर्धारित तरीक़े की सूचना दी गई है), जबकि उनसे इसके समझने में चूक हुई है, जिससे उन्हें यह लगा कि इसमें कोई विरोधाभास है। बल्कि, असल में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इस कथन "अलैकस्सलाम मृतकों की सलामी है" का मतलब यह नहीं है कि यह कोई शरीअत द्वारा तय किया गया तरीक़ा है, बल्कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उस वास्तविक रिवाज की खबर दी जो लोगों में प्रचलित था, कि शायर और अन्य लोग मृतकों को इसी शब्द के द्वारा सलाम करते थे। जैसे कि एक कवि ने कहा:

"अलैका सलामुल्लाहि क़ैस-ब्ना आसिमि... (तुम पर अल्लाह का सलाम हो, ऐ क़ैस बिन आसिम और उसकी रहमत हो, जितनी वह चाहे भेजे। क़ैस की मौत किसी एक व्यक्ति की मौत न थी, बल्कि एक पूरे क़बीले की दीवार ढह गई।)

अतः नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने नापसंद किया कि किसी ज़िंदा को वैसे सलाम किया जाए जैसे मरे हुए को किया जाता है।” ‘ज़ादुल-मआद’ (2/383) से उद्धरण समाप्त हुआ।

तीसरी बात :

सबसे पूर्ण सलाम यह है कि : السلام عليكم ورحمة الله وبركاته (अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहु) या سلام عليكم ورحمة الله وبركاته (सलामुन अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहु) कहा जाए। इसकी वजह इब्ने हिब्बान की वह हदीस है जिसका ऊपर उल्लेख हुआ है, तथा वह हदीस जो अबू दाऊद (हदीस संख्या : 5195) और तिरमिज़ी (हदीस संख्या : 2689) ने इमरान बिन हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत की है। इमरान बिन हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं : एक व्यक्ति नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया और कहा : "السلام عليكم" तो आपने उसे सलाम का जवाब दिया और वह व्यक्ति बैठ गया। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : "दस (नेकी)।" फिर दूसरा व्यक्ति आया और कहा : "السلام عليكم ورحمة الله" आपने उसे जवाब दिया, वह बैठ गया। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : "बीस (नेकी)।" फिर तीसरा व्यक्ति आया और कहा : "السلام عليكم ورحمة الله وبركاته" आपने उसे जवाब दिया और वह बैठ गया, तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : "तीस (नेकी)।" इस हदीस को अल्बानी ने "सहीह अबू दाऊद" में सही करार दिया है।

जहाँ तक सलाम में "ومغفرته" (और उसकी क्षमा) या "ورضوانه" (और उसकी प्रसन्नता) के शब्द की वृद्धि की बात है, तो ये बातें हमारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रमाणित नहीं हैं, जैसा कि इब्नुल-क़य्यिम ने अपनी किताब "ज़ादुल-मआद" (2/381) और अल्बानी ने "ज़ईफ़ अबू दाऊद" (5196) में स्पष्ट किया है।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

संदर्भ

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर