मान्य तौबा की शर्तें
तौबा-ए-नसूह (सच्ची तौबा) की शर्तें ये हैं :
1- गुनाह को छोड़ देना।
2- उस गुनाह पर दिल से पछताना (नदामत)।
3- पक्का इरादा कि अब उस गुनाह की तरफ कभी नहीं लौटेंगे।
अगर कोई व्यक्ति दूसरों के धन, सम्मान या जान के मामले में उनके साथ किए गए अन्याय से तौबा कर रहा है, तो एक चौथी शर्त भी है :
4- जिसके साथ अन्याय हुआ है उससे माफ़ी मांगना, या उसे उसका हक़ वापस करना।
अल्लाह तआला ने अपने बंदों को सच्चे मन से तौबा करने का हुक्म देते हुए फरमाया :
يَاأَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا تُوبُوا إِلَى اللَّهِ تَوْبَةً نَصُوحًا عَسَى رَبُّكُمْ أَنْ يُكَفِّرَ عَنْكُمْ سَيِّئَاتِكُمْ وَيُدْخِلَكُمْ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ يَوْمَ لَا يُخْزِي اللَّهُ النَّبِيَّ وَالَّذِينَ آمَنُوا مَعَهُ نُورُهُمْ يَسْعَى بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَبِأَيْمَانِهِمْ يَقُولُونَ رَبَّنَا أَتْمِمْ لَنَا نُورَنَا وَاغْفِرْ لَنَا إِنَّكَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
[التحريم/8]
"ऐ ईमान वालो! अल्लाह के आगे सच्ची तौबा करो। निकट है कि तुम्हारा पालनहार तुम्हारी बुराइयाँ तुमसे दूर कर दे तथा तुम्हें ऐसी जन्नतों में दाखिल करे, जिनके नीचे से नहरें बहती हैं। जिस दिन अल्लाह नबी को तथा उन लोगों को जो उनके साथ ईमान लाए हैं, अपमानित नहीं करेगा। उनका प्रकाश उनके आगे तथा उनके दाएँ दौड़ रहा होगा। वे कह रहे होंगे : ऐ हमारे पालनहार! हमारे लिए हमारे प्रकाश को पूर्ण कर दे तथा हमें क्षमा कर दे। निःसंदेह तू हर चीज़ पर सर्वशक्तिमान है।” (सूरत अत-तहरीम : 8).
तौबा-ए-नसूह (सच्ची तौबा) का अर्थ
अल-बग़वी रहिमहुल्लाह ने कहा :
" (विद्वानों) ने इसके अर्थ के बारे में मतभेद किया है :
- उमर, उबैय और मुआज़ ने कहा : 'सच्ची तौबा' का मतलब है कि आदमी ऐसी तौबा करे कि उसके बाद फिर उस गुनाह की ओर कभी वापस न लौटे, जैसे एक बार दूध निकालने के बाद वह थन में वापस नहीं जाता।
- अल-हसन ने कहा : इसका मतलब है कि व्यक्ति अपने पिछले किए पर पछताता है और उसे फिर न करने का दृढ़ निश्चय करता है।
- अल-कलबी ने कहा : इसका मतलब है कि वह ज़ुबान से क्षमा माँगे, अपने दिल में पछताए और अपने शरीर को गलत कामों से रोके रखे।
- सईद इब्नुल-मुसैय्यब ने कहा : "ऐसी तौबा जिससे तुम सच्चे मन से अपने आप को नसीहत करो।"
- अल-क़ुरज़ी ने कहा : "इसमें चार चीज़ें शामिल हैं : ज़बान से क्षमा माँगना, शरीर से गुनाह छोड़ देना, दिल में पाप की ओर न लौटने का संकल्प लेना और बुरी संगति को त्याग देना।" तफ़सीर अल-बग़वी (8/169) से उद्धरण समाप्त हुआ।
पछतावा (नदामत) तौबा का सबसे बड़ा स्तंभ है।
पछतावा तौबा की एक बुनियादी शर्त या सबसे बड़ा स्तंभ है। अब्दुल्लाह बिन मा’क़िल बिन मुक़र्रिन ने कहा : मेरे पिता अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु के पास थे और उन्होंने उन्हें यह कहते सुना :
मैंने अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को यह कहते सुना : पछतावा ही तौबा है।” इसे अहमद (हदीस संख्या : 4012) ने रिवायत किया है और अल्बानी ने सहीह कहा है।
कुछ विद्वानों ने कहा है:
"तौबा के लिए सच्चा पछतावा महसूस करना पर्याप्त है, क्योंकि इसमें आवश्यक रूप से पाप को त्यागना और उसकी ओर न लौटने का संकल्प लेना शामिल है; अतः ये दोनों पहलू पछतावा से उत्पन्न होते हैं, ये पछतावा के साथ-साथ दो मूल तत्व नहीं हैं।" देखें : ‘फ़त्हुल-बारी’ (13/471)।
अल्लामा क़ारी रहिमहुल्लाह ने कहा :
"(पछतावा ही तौबा है) क्योंकि इसी पर तौबा के शेष स्तंभ आधारित हैं, जिनमें पाप का त्याग करना, उसकी ओर न लौटने का संकल्प लेना और और जहाँ तक संभव हो लोगों के अधिकारों की भरपाई करना शामिल है...
इसका अर्थ है पाप करने पर पछतावा होना क्योंकि वह पाप है, किसी अन्य कारण से नहीं।" "मिरक़ातुल-मफ़ातीह" (4/1637) से उद्धरण समाप्त हुआ।
यदि यह पछचावा सच्चा है, तो पापी पाप को त्याग देगा और उसे फिर कभी न करने का संकल्प लेगा। इस प्रकार, तौबा पूर्ण हो जाएगा और उसकी सभी शर्तें पूरी हो जाएँगी।
बंदे के दिल में सच्चा पछतावा पैदा करने में सहायक चीज़ें
निम्नलिखित चीज़ें बंदे की उसके हृदय में पछतावा प्राप्त करने में मदद करती हैं :
पहला : अल्लाह के प्रति अज्ञानता के बाद उसका ज्ञान।
सर्वशक्तिमान अल्लाह ने फरमाया :
إِنَّمَا التَّوْبَةُ عَلَى اللَّهِ لِلَّذِينَ يَعْمَلُونَ السُّوءَ بِجَهَالَةٍ ثُمَّ يَتُوبُونَ مِنْ قَرِيبٍ فَأُولَئِكَ يَتُوبُ اللَّهُ عَلَيْهِمْ وَكَانَ اللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمًا وَلَيْسَتِ التَّوْبَةُ لِلَّذِينَ يَعْمَلُونَ السَّيِّئَاتِ حَتَّى إِذَا حَضَرَ أَحَدَهُمُ الْمَوْتُ قَالَ إِنِّي تُبْتُ الْآنَ وَلَا الَّذِينَ يَمُوتُونَ وَهُمْ كُفَّارٌ أُولَئِكَ أَعْتَدْنَا لَهُمْ عَذَابًا أَلِيمًا
[ النساء/17-18].
“अल्लाह के पास उन्हीं लोगों की तौबा स्वीकार्य है, जो अनजाने में बुराई कर बैठते हैं, फिर शीघ्र ही तौबा कर लेते हैं। तो अल्लाह ऐसे ही लोगों की तौबा क़बूल करता है। तथा अल्लाह सब कुछ जानने वाला हिकमत वाला है। और उनकी तौबा स्वीकार्य नहीं, जो बुराइयाँ करते जाते हैं, यहाँ तक कि जब उनमें से किसी की मौत का समय आ जाता है, तो कहने लगता है : "अब मैंने तौबा कर ली!" और न ही उनकी (तौबा स्वीकार्य है) जो काफ़िर रहते हुए मर जाते हैं। उन्हीं के लिए हमने दुःखदायी यातना तैयार कर रखी है।” (सूरतुन-निसा : 17-18)
मुजाहिद ने अल्लाह के कथन لِلَّذِينَ يَعْمَلُونَ السُّوءَ بِجَهَالَةٍ “जो अज्ञानता में बुराई करते हैं।” के बारे में कहा : "जो कोई अपने रब की अवज्ञा करता है, वह अज्ञानी है, जब तक कि वह अपनी अवज्ञा से बाज़ न आ जाए।" "सहीह अल-मस्बूर फी अत-तफ़सीर बिल-मा'सूर" (2/19) से उद्धरण समाप्त हुआ।
दूसरा : ग़फ़लत (लापरवाही) के बाद अल्लाह को याद करना
सर्वशक्तिमान अल्लाह ने फरमाया :
وَسَارِعُوا إِلَى مَغْفِرَةٍ مِنْ رَبِّكُمْ وَجَنَّةٍ عَرْضُهَا السَّمَاوَاتُ وَالْأَرْضُ أُعِدَّتْ لِلْمُتَّقِينَ الَّذِينَ يُنْفِقُونَ فِي السَّرَّاءِ وَالضَّرَّاءِ وَالْكَاظِمِينَ الْغَيْظَ وَالْعَافِينَ عَنِ النَّاسِ وَاللَّهُ يُحِبُّ الْمُحْسِنِينَ وَالَّذِينَ إِذَا فَعَلُوا فَاحِشَةً أَوْ ظَلَمُوا أَنْفُسَهُمْ ذَكَرُوا اللَّهَ فَاسْتَغْفَرُوا لِذُنُوبِهِمْ وَمَنْ يَغْفِرُ الذُّنُوبَ إِلَّا اللَّهُ وَلَمْ يُصِرُّوا عَلَى مَا فَعَلُوا وَهُمْ يَعْلَمُونَ أُولَئِكَ جَزَاؤُهُمْ مَغْفِرَةٌ مِنْ رَبِّهِمْ وَجَنَّاتٌ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا وَنِعْمَ أَجْرُ الْعَامِلِينَ
[آل عمران/133-136].
“और अपने पालनहार की क्षमा और उस स्वर्ग की ओर तेज़ी से बढ़ो, जिसकी चौड़ाई आकाशों तथा धरती के बराबर है। वह अल्लाह से डरने वालों के लिए तैयार किया गया है। जो कठिनाई और आसानी की प्रत्येक स्थिति में (अल्लाह के मार्ग में) खर्च करते हैं, तथा ग़ुस्सा पी जाते हैं और लोगों को क्षमा कर देते हैं। और अल्लाह ऐसे अच्छे कार्य करने वालों से प्रेम करता है। और वे ऐसे लोग हैं कि जब उनसे कोई जघन्य पाप हो जाता है या वे अपने ऊपर अत्याचार कर कर बैठते हैं, तो उन्हें अल्लाह याद आ जाता है। फिर वे अपने पापों के लिए क्षमा माँगते हैं, और अल्लाह के सिवा कौन है जो पापों का क्षमा करने वाला होॽ और वे अपने किए पर जान बूझकर अड़े नहीं रहते। वही लोग हैं जिनका बदला उनके पालनहार की ओर से क्षमा तथा ऐसे बाग़ हैं जिनके नीचे से नहरें बहती होंगी। उनमें वे सदैव रहेंगे। औ क्या ही अच्छा बदला है नेक काम करने वालों का।!” (सूरत आल-इमरान : 133-136)
अली इब्न अबी तालिब रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : अबू बक्र ने मुझे बताया, - और अबू बक्र ने सच कहा -, उन्होंने कहा : मैंने अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को यह फरमाते हुए सुना : “ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जो पाप करे, फिर उठे और शुद्धता ग्रहण करे, फिर नमाज़ पढ़े, फिर अल्लाह से क्षमा माँगे, परंतु अल्लाह उसे क्षमा कर देगा।”
फिर आप ससस ने यह आयत पढ़ी : وَالَّذِينَ إِذَا فَعَلُوا فَاحِشَةً أَوْ ظَلَمُوا أَنْفُسَهُمْ ذَكَرُوا اللَّهَ فَاسْتَغْفَرُوا لِذُنُوبِهِمْ وَمَنْ يَغْفِرُ الذُّنُوبَ إِلَّا اللَّهُ وَلَمْ يُصِرُّوا عَلَى مَا فَعَلُوا وَهُمْ يَعْلَمُونَ “और वे ऐसे लोग हैं कि जब उनसे कोई जघन्य पाप हो जाता है या वे अपने ऊपर अत्याचार कर कर बैठते हैं, तो उन्हें अल्लाह याद आ जाता है। फिर वे अपने पापों के लिए क्षमा माँगते हैं, और अल्लाह के सिवा कौन है जो पापों का क्षमा करने वाला होॽ और वे अपने किए पर जान बूझकर अड़े नहीं रहते।” (आल इमरान : 135)।” इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 1521), तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 406) और इब्ने माजा (हदीस संख्या : 1395) ने रिवायत किया है। अल्लामा अल्बानी ने इसे “सहीह अल-जामे” (हदीस संख्या : 5738) में सहीह कहा है।
तीसरा : अल्लाह की योजना से सुरक्षित महसूस करने के बाद उससे डरना :
अल्लाह तआला ने फरमाया :
أَيَحْسَبُونَ أَنَّمَا نُمِدُّهُمْ بِهِ مِنْ مَالٍ وَبَنِينَ نُسَارِعُ لَهُمْ فِي الْخَيْرَاتِ بَلْ لَا يَشْعُرُونَ إِنَّ الَّذِينَ هُمْ مِنْ خَشْيَةِ رَبِّهِمْ مُشْفِقُونَ وَالَّذِينَ هُمْ بِآيَاتِ رَبِّهِمْ يُؤْمِنُونَ وَالَّذِينَ هُمْ بِرَبِّهِمْ لَا يُشْرِكُونَ وَالَّذِينَ يُؤْتُونَ مَا آتَوْا وَقُلُوبُهُمْ وَجِلَةٌ أَنَّهُمْ إِلَى رَبِّهِمْ رَاجِعُونَ أُولَئِكَ يُسَارِعُونَ فِي الْخَيْرَاتِ وَهُمْ لَهَا سَابِقُونَ
[ المؤمنون /55-61].
“क्या वे समझते हैं कि हम धन और संतान में से जिन चीज़ों के साथ उनकी सहायता कर रहे हैं। हम उन्हें भलाइयाँ देने में जल्दी कर रहे हैं? बल्कि वे नहीं समझते। निःसंदेह वे लोग जो अपने पालनहार के भय से डरने वाले हैं। और वे जो अपने पालनहार की आयतों पर ईमान रखते हैं। और वे जो अपने पालनहार का साझी नहीं बनाते। और वे लोग कि जो कुछ भी दें, इस हाल में देते हैं कि उनके दिल डरने वाले होते हैं कि वे अपने पालनहार ही की ओर लौटने वाले हैं। यही लोग हैं, जो भलाइयों में जल्दी करते हैं और यही लोग उनकी तरफ़ आगे बढ़ने वाले हैं।” (सूरतुल-मूमिनून : 55-61)
चौथा : निराश होने के बाद अल्लाह की रहमत (दया) की आशा करना :
अल्लाह सर्वशक्तिमान ने फरमाया :
قُلْ يَاعِبَادِيَ الَّذِينَ أَسْرَفُوا عَلَى أَنْفُسِهِمْ لَا تَقْنَطُوا مِنْ رَحْمَةِ اللَّهِ إِنَّ اللَّهَ يَغْفِرُ الذُّنُوبَ جَمِيعًا إِنَّهُ هُوَ الْغَفُورُ الرَّحِيمُ وَأَنِيبُوا إِلَى رَبِّكُمْ وَأَسْلِمُوا لَهُ مِنْ قَبْلِ أَنْ يَأْتِيَكُمُ الْعَذَابُ ثُمَّ لَا تُنْصَرُونَ وَاتَّبِعُوا أَحْسَنَ مَا أُنْزِلَ إِلَيْكُمْ مِنْ رَبِّكُمْ مِنْ قَبْلِ أَنْ يَأْتِيَكُمُ الْعَذَابُ بَغْتَةً وَأَنْتُمْ لَا تَشْعُرُونَ
[الزمر/53-55].
“(ऐ नबी!) आप मेरे उन बंदों से कह दें, जिन्होंने अपने ऊपर अत्याचार किए हैं कि तुम अल्लाह की दया से निराश न हो। तथा अपने पालनहार की ओर झुक पड़ो और उसके आज्ञाकारी हो जाओ, इससे पहले कि तुमपर यातना आ जाए, फिर तुम्हारी सहायता न की जाए। तथा उस सबसे उत्तम वाणी का पालन करो, जो अल्लाह की ओर से तुम्हारी तरफ़ उतारी गई है, इससे पूर्व कि तुमपर यातना आ पड़े और तुम्हें एहसास तक न हो।” (सूरत अज़-ज़ुमर : 53-55]
इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है : "मुश्रिकों में से कुछ लोगों ने बहुत अधिक हत्या और बहुत अधिक व्यभिचार किया था। तो वे मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आए और कहा : आप जो कहते हैं और जिसकी ओर बुलाते हैं निश्चय वह बहुत अच्छा है। अगर आप हमें बता दें कि हमने जो किया है क्या उसका कोई प्रायश्चित हैॽ तो उसपर यह आयत उतरी : وَالَّذِينَ لاَ يَدْعُونَ مَعَ اللَّهِ إِلَهًا آخَرَ، وَلاَ يَقْتُلُونَ النَّفْسَ الَّتِي حَرَّمَ اللَّهُ إِلَّا بِالحَقِّ، وَلاَ يَزْنُونَ “और जो अल्लाह के साथ किसी दूसरे पूज्य को नहीं पुकारते, और न उस प्राण को क़त्ल करते हैं, जिसे अल्लाह ने ह़राम ठहराया है परंतु हक़ के साथ और न व्यभिचार करते हैं।” (सूरतुल-फ़ुरक़ान : 68]। तथा यह आयत भी उतरी : قُلْ يَا عِبَادِيَ الَّذِينَ أَسْرَفُوا عَلَى أَنْفُسِهِمْ، لاَ تَقْنَطُوا مِنْ رَحْمَةِ اللَّهِ “(ऐ नबी!) आप मेरे उन बंदों से कह दें, जिन्होंने अपने ऊपर अत्याचार किए हैं कि तुम अल्लाह की दया से निराश न हो।” [सूरत अज़्-ज़ुमर : 53)।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 4810) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 122) ने रिवायत किया है।
पछतावे के फायदे (फल):
जहाँ तक पछतावे के परिणामों (फ़ायदे) का संबंध है, तो वे चार हैं :
पहला : पाप के कारण दिल में हमेशा दुःख और पछतावे का एहसास रहना।
इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा :
“मोमिन अपने गुनाहों को ऐसे देखता है जैसे वह किसी पहाड़ के नीचे बैठा हो और डरता हो कि वह उस पर गिर पड़ेगा, जबकि गुनाहगार अपने गुनाहों को ऐसे देखता है जैसे कोई मक्खी उसकी नाक के पास से गुज़री, तो उसने हाथ से उसकी तरफ़ यूँ इशारा कर दिया।” अबू शिहाब ने अपनी नाक पर अपने हाथ के इशारे से उसकी स्थिति का वर्णन किया।" इसे बुखारी (हदीस संख्या : 6308) ने रिवायत किया है।
इसका विपरीत यह है कि अगर वह गुनाह करने में सक्षम हो और उसे दोबारा करने का मौका मिले तो वह खुश हो।
इब्ने अब्बास (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) से वर्णित है कि उन्होंने कहा :
“जब तुम्हें गुनाह करने का मौका मिले तो उस पर तुम्हारा खुश होना गुनाह से ज़्यादा बड़ा (गंभीर) है, और अगर तुम गुनाह करने का मौका गँवा दो, तो उस पर तुम्हारा दुख महसूस करना गुनाह से भी ज़्यादा बड़ा (गंभीर) है।” इसे अबू नुऐम ने अल-हिल्या (1/324) में रिवायत किया है।
दूसरा : गुनाह की तरफ़ कभी न लौटने की कामना करना। बल्कि, जब अल्लाह ने उसे गुनाह से बचा लिया है तो वह गुनाह की तरफ़ लौटने से ठीक वैसे ही नफ़रत करता है जैसे वह आग में फेंके जाने से नफ़रत है।
अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है, वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत करते हैं कि आपने फ़रमाया : “तीन विशेषताएँ ऐसी हैं कि जिसने इन्हें प्राप्त कर लिया, उसने ईमान की मिठास पा ली : जिसे अल्लाह और उसके रसूल सबसे ज़्यादा प्रिय हों, वह किसी व्यक्ति से प्रेम करे तो केवल अल्लाह के लिए ही प्रेम करे, और वह कुफ़्र की ओर लौटना, जबकि अल्लाह ने उसे कुफ़्र से बचा लिया है, उसी प्रकार नापसंद करे जिस प्रकार वह आग में डाले जाने को नपसंद करता है।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 6941) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 43) ने रिवायत किया है।
इसके विपरीत यह है कि वह पाप के स्थानों, उसके समयों, उसके लोगों और उसके कारणों का पता लगाकर पाप की खोज करता रहे।
सर्वशक्तिमान अल्लाह ने फरमाया :
فَخَلَفَ مِنْ بَعْدِهِمْ خَلْفٌ أَضَاعُوا الصَّلَاةَ وَاتَّبَعُوا الشَّهَوَاتِ فَسَوْفَ يَلْقَوْنَ غَيًّا * إِلَّا مَنْ تَابَ وَآمَنَ وَعَمِلَ صَالِحًا فَأُولَئِكَ يَدْخُلُونَ الْجَنَّةَ وَلَا يُظْلَمُونَ شَيْئًا
[مريم/59-60].
“फिर उनके बाद उनके स्थान पर ऐसे अयोग्य उत्तराधिकारी आए, जिन्होंने नमाज़ की उपेक्षा की और अपनी इच्छाओं का पालन किया, तो वे जल्द ही पथभ्रष्टता का सामना करेंगे। परंतु जिसने तौबा कर ली और ईमान ले आया और अच्छे कर्म किए, तो ये लोग जन्नत में प्रवेश करेंगे और उनपर कुछ भी अत्याचार नहीं किया जाएगा।” (मरयम : 59-60)।
तीसरा : पाप से दूर रहना।
ऐसा इसलिए है क्योंकि पाप में लगे रहना तौबा को तोड़ देता है और यह दर्शाता है कि तौबा सच्चे दिल से नहीं की गई थी।
इमाम इब्नुल-क़य्यिम रहिमहुल्लाह ने फरमाया :
"इस मुद्दे पर मेरा विचार यह है कि किसी पाप से तौबा करना सही नहीं है अगर कोई व्यक्ति उसी तरह के दूसरे पाप पर अडिग है। परंतु अगर कोई व्यक्ति एक पाप से तौबा कर रहा है और साथ ही किसी दूसरे पाप में लिप्त है जिसका उस पाप से कोई संबंध नहीं और जो उसी प्रकार का कोई दूसरा पाप नहीं है, तो तौबा सही है। जैसे कि अगर किसी व्यक्ति ने सूद से तौबा की, लेकिन शराब पीने से तौबा नहीं की, तो उसका सूद से तौबा सही है।
लेकिन अगर उसने रिबा अल-फ़ज़्ल [एक ही प्रकार की दो चीज़ों को एक के मूल्य में वृद्धि के साथ बेचना, जैसे एक दिरहम दो दिरहम में] से तौबा कर ली है, लेकिन रिबा अन-नसीअह [क़र्ज़ की अदायगी में निश्चित समय से देरी करना और अवधि बढ़ाने के बदले में क़र्ज़ की राशि में वृद्धि करना] से तौबा नहीं की है, और वह अभी भी उसमें लगा हुआ है, या इसके विपरीत, या उसने हशीश पीने से तौबा कर ली है, लेकिन शराब पीने पर अड़ा हुआ है, या इसके विपरीत, तो इस स्थिति में उसका तौबा मान्य नहीं है।
यह उस व्यक्ति के समान है जो एक स्त्री के साथ ज़िना करने से तौबा करता है, लेकिन वह दूसरी स्त्री के साथ ज़िना करने पर अड़ा रहता है, और उससे तौबा नहीं करता; या वह नशीले अंगूर के रस [शराब] पीने से तौबा करता है, लेकिन वह अन्य नशीले पेय पीने पर अड़ा रहता है। वास्तव में, उसने पाप से तौबा नहीं की है; बल्कि वह एक प्रकार के पाप से दूसरे प्रकार के पाप की ओर मुड़ गया है।
यह उस व्यक्ति के विपरीत है जो एक वर्ग के पाप से दूसरे वर्ग के पाप की ओर मुड़ गया है। “मदारिज अस-सालिकीन” (1/285) से उद्धरण समाप्त हुआ।
चौथा: पाप की ओर न लौटने का संकल्प:
यदि वह पाप की ओर लौटता है, तो यह तौबा की पूर्णता और उसके लाभ को प्रभावित करने वाला है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि यह अमान्य है या इसका अर्थ यह नहीं है कि यह सिद्धांततः गलत है।
अल-मौसूआ अल-फ़िक़्हिय्या अल-कुवैतिया (14/123) में कहा गया है :
"अधिकांश धर्मशास्त्रियों के अनुसार, तौबा में यह शर्त नहीं है कि व्यक्ति उस पाप की ओर न लौटे जिससे उसने तौबा की है।
बल्कि तौबा पाप को त्यागने, उस पर पछतावा करने और उसकी ओर न लौटने का दृढ़ संकल्प लेने पर निर्भर करता है।
लेकिन अगर वह तौबा के समय पाप की ओर वापस न लौटने का संकल्प करने के बावजूद, फिर से उसी पाप की ओर लौटता है, तो वह उस व्यक्ति के समान हो जाता है जिसने पहली बार पाप किया हो, और उसका पिछला तौबा अमान्य नहीं होता, और उस तौबा के ज़रिए मिटाए गए पाप का बोझ उसके खाते में दोबारा नहीं जुड़ता तथा वह ऐसा हो जाता है मानो वह कभी हुआ ही न था। इसका आधार हदीस का यह पाठ है : “पाप से तौबा करने वाला उस व्यक्ति के समान है जिसने कोई पाप ही न किया हो।"
कुछ विद्वानों का कहना है कि पहले पाप का बोझ उसके खाते में दोबारा जुड़ जाता है; क्योंकि पाप से तौबा करना काफिर होने के बाद इस्लाम में प्रवेश करने जैसा है। जब काफिर मुसलमान बन जाता है, तो उसका इस्लाम उसके पहले के कुफ्र के पाप और उससे जुड़ी हर चीज़ को मिटा देता है, लेकिन जब वह धर्मत्यागी हो जाता है, तो उसके धर्मत्याग के साथ पिछले पाप भी उसके खाते में दोबारा जुड़ जाते हैं।
सच्चाई यह है कि पाप को न दोहराना और लगातार तौबा करना, तौबा की पूर्णता और उसके पूर्ण लाभ के लिए शर्त हैं, लेकिन ये उसके पिछले तौबा के सही होने के लिए शर्तें नहीं हैं।” उद्धरण समाप्त हुआ।
पाप की ओर न लौटने के संकल्प के फल
पाप की ओर न लौटने के इस संकल्प के चार फल हैं :
पहला : पाप के द्वार को बंद करना :
यह किसी भी ऐसी संगति या साधन से दूर रहकर किया जाता है जो आपको अल्लाह सर्वशक्तिमान की अवज्ञा की ओर ले जाता है। अबू सईद अल-खुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को यह कहते सुना : "ईमान वाले के अलावा किसी और की संगत न अपनाओ और अल्लाह से डरने वाले के अलावा किसी को अपना खाना न खाने दो।" इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 4832) और तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 2395) ने रिवायत किया है और अल्बानी ने इसे हसन क़रार दिया है।
दूसरा : पाप की ओर ले जाने वाले साधनों को रोकना :
इसका अर्थ है संदिग्ध मामलों और हर उस चीज़ से बचना जो हराम (निषिद्ध) चीज़ों में पड़ने का कारण बन सकती है।
नो’मान बिन बशीर रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : मैंने अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को यह कहते सुना – और नो’मान ने अपनी उंगलियों से अपने कानों की ओर इशारा किया –: “जो हलाल है वह स्पष्ट है और जो हराम है वह स्पष्ट है, और इन दोनों के बीच संदिग्ध मामले हैं जिनके बारे में बहुत से लोग नहीं जानते। अतः जो कोई संदिग्ध मामलों से बचता है, उसने अपने ईमान और सम्मान (सतीत्व) की रक्षा की। लेकिन जो कोई संदिग्ध मामलों में पड़ता है, वह हराम में पड़ जाएगा, जैसे एक चरवाहा अपने रेवड़ को किसी संरक्षित स्थान के चारों ओर चराता है, वह क़रीब है कि उसमें चराने लगे। सावधान रहो, प्रत्येक राजा का एक संरक्षित स्थान होता है। और अल्लाह का संरक्षित स्थान उसकी हराम की हुई चीज़ें (निषेध) हैं। सावधान, शरीर में मांस का एक टुकड़ा है, अगर वह स्वस्थ है, तो पूरा शरीर स्वस्थ रहेगा। लेकिन अगर वह भ्रष्ट है, तो पूरा शरीर भ्रष्ट हो जाएगा। सावधान, वह हृदय है।" इसे बुखारी (हदीस संख्या : 52) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1599) ने रिवायत किया है।
तीसरा: पाप के विपरीत कार्य करना:
जो व्यक्ति अल्लाह के उतारे हुए ज्ञान को छुपाता है, उसकी तौबा अल्लाह द्वारा उतारी गई बातों को बयान करने से होती है, और पाखंडी (मुनाफ़िक़) की तौबा तब तक मान्य नहीं होती जब तक कि वह ईमानदारी से अपना धर्म अल्लाह को समर्पित न कर दे।
इमाम इब्नुल-क़य्यिम रहिमहुल्लाह ने कहा :
“पाप से तौबा उसके विपरीत कर्म करने से होती है।
इसीलिए अल्लाह तआला ने यह शर्त रखी है कि जो लोग अल्लाह के उतारे हुए स्पष्ट प्रमाणों और मार्गदर्शन को छिपाते हैं, उनकी तौबा उसे स्पष्ट करना है। ऐसा इसलिए है क्योंकि उनका पाप छिपाना था, इसलिए उनकी तौबा उसे स्पष्ट करना है। अल्लाह तआला ने फरमाया : () “निःसंदेह जो लोग उसको छिपाते हैं जो हमने स्पष्ट प्रमाणों और मार्गदर्शन में से उतारा है, इसके बाद कि हमने उसे लोगों के लिए किताब[80] में स्पष्ट कर दिया है, उनपर अल्लाह लानत करता है[81] और सब लानत करने वाले उनपर लानत करते हैं। परंतु वे लोग जिन्होंने तौबा कर ली और सुधार कर लिया और खोलकर बयान कर दिया, तो ये लोग हैं जिनकी मैं तौबा स्वीकार करता हूँ और मैं ही बहुत तौबा क़बूल करने वाला, अत्यंत दयावान् हूँ।” (सूरतुल-बक़रा : 159-160).
मुनाफिक़ की तौबा के लिए इख़्लास (निष्ठा) की शर्त रखी गई है क्योंकि उसका पाप दिखावा था। अल्लाह तआला ने फरमाया : إن المنافقين في الدرك الأسفل من النار “निश्चय ही मुनाफ़िक़ लोग नरक के सबसे निचले स्थान में होंगे।” (सूरतुन-निसा : 145) फिर फरमाया : إلا الذين تابوا وأصلحوا واعتصموا بالله وأخلصوا دينهم لله فأولئك مع المؤمنين وسوف يؤت الله المؤمنين أجرا عظيما “परंतु जिन लोगों ने पश्चाताप कर लिया, और अपना सुधार कर लिया, और अल्लाह (के धर्म) को मज़बूती से थाम लिया और अपने धर्म को अल्लाह के लिए विशिष्ट कर दिया, तो वही लोग ईमान वालों के साथ होंगे और अल्लाह ईमान वालों को बहुत बड़ा बदला प्रदान करेगा।” (सूरतुन-निसा : 146) (मदारिज अस-सालिक़ीन 1/370)
चौथा : नेक काम करने और अल्लाह की आज्ञाकारिता पर जमे रहने के रास्ते खोलना।
अल्लाह तआला फ़रमाता है : وَإِنِّي لَغَفَّارٌ لِمَنْ تَابَ وَآمَنَ وَعَمِلَ صَالِحًا ثُمَّ اهْتَدَى “और निःसंदेह मैं निश्चय उसको बहुत क्षमा करने वाला हूँ, जो तौबा करे और ईमान लाए और अच्छा कर्म करे, फिर सीधे मार्ग पर चले।” (ताहा : 20).
इब्ने आशूर रहिमहुल्लाह ने कहा : "यहाँ ‘सीधे मार्ग पर चलने’ का मतलब सीधे मार्ग पर डटे रहना और उस पर अडिग रहना है। यह अल्लाह के इस कथन जैसा है : إِنَّ الَّذِينَ قالُوا رَبُّنَا اللَّهُ ثُمَّ اسْتَقامُوا فَلا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلا هُمْ يَحْزَنُونَ “निःसंदेह जिन लोगों ने कहा कि हमारा पालनहार अल्लाह है। फिर ख़ूब जमे रहे, तो उन्हें न तो कोई भय होगा और न वे शोकाकुल होंगे।” (सूरतुल-अहक़ाफ़ : 13) “अत-तहरीर वत-तनवीर” (16/276) से उद्धरण समाप्त हुआ।
इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि बंदे की तौबा में नदामत यानी पछतावा करने का क्या स्थान है और यह कि पछतावा करना सारे संसार के रब की ओर लौटने और शैतानों के प्रलोभनों को त्यागने का आधार है।
हम अल्लाह से प्रार्थना करते हैं कि वह हमें सच्ची तौबा करने का सामर्थ्य प्रदान करे और हमारी तौबा स्वीकार करके हमपर उपकार करे।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।