सर्व प्रथम :
अनाथों की देखभाल करना, उनके धन का निवेश करना और उन्हें उनके लाभ के लिए विकसित करना एक नेक और लाभकारी कार्य है। हम अल्लाह से प्रार्थना करते हैं कि जो लोग ऐसा करते हैं उन्हें सर्वोत्तम प्रतिफल प्रदान करे। यह अनाथों की किफ़ालत करने की श्रेणी में आता है, जिसके बारे में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया : "मैं और जो किसी अनाथ की किफ़ालत करता है, दोनों इसी तरह जन्नत में होंगे।" और आपने अपनी तर्जनी और मध्यमा उंगलियों को थोड़ा अलग करते हुए इशारा किया।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 5304) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 2983) ने रिवायत किया है।
इमाम नववी रहिमहुल्लाह ने सहीह मुस्लिम पर अपनी टिप्पड़ी में कहा : "(यतीम की किफ़ालत करने वाला), वह है जो उसके मामलों का ध्यान रखता है, जिसमें उसका भरण-पोषण, उसे कपड़े पहनाना, उसे अनुशासित करना, उसका पालन-पोषण करना आदि शामिल हैं। यह श्रेष्ठता उस व्यक्ति को प्राप्त होती है जो शरई संरक्षकता के आधार पर अपने धन से या अनाथ के धन से उसकी देखभाल करता है।" उद्धरण समाप्त हुआ।
अनाथों के धन को व्यापार में लगाने के संबंध में उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है : "अनाथों के धन से व्यापार करने का प्रयत्न करो, कहीं ऐसा न हो कि वह ज़कात में नष्ट हो जाए।" इसे दाराकुतनी और बैहक़ी ने रिवायत किया है, जिन्होंने कहा : यह एक सहीह (प्रामाणिक) इसनाद है, और उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से इसके शवाहिद वर्णित हैं (जिनसे इसकी पुष्टि होती है)।
इसे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से मरफ़ूअन भी वर्णित किया गया है। जबकि अल्बानी रहिमहुल्लाह ने इस हदीस को मरफ़ूअ और मौक़ूफ़ दोनों रूप में ज़ईफ़ घोषित किया है।”
देखें : इरवाउल-ग़लील (3/258)
दूसरा :
यहाँ जिस रूप के बारे में पूछा गया है, उसे विद्वान "खरीदने का आदेश देने वाले के लिए मुराबहा लेन-देन" कहते हैं। इसका सार : यह है कि एक व्यक्ति किसी विशेष वस्तु की इच्छा रखता है, इसलिए वह किसी व्यक्ति, या संस्था या बैंक के पास जाता है। उसे अपनी वांछित वस्तु और उसकी विशिष्टताओं के बारे में बताता है और उससे वादा करता है कि संस्था या बैंक द्वारा उस वस्तु को खरीदने के बाद, वह एक निश्चित लाभ पर, जिस पर वे सहमत होते हैं उसे उससे खरीद लेगा।
यह लेन-देन तब तक मान्य नहीं है जब तक कि दो शर्तें पूरी न हों :
पहली शर्त : यह है कि संस्था उस वस्तु को बेचने से पहले उसकी मालिक हो। इसलिए वह पहले उस अपार्टमेंट या कार को वास्तविक रूप से अपने लिए खरीदे गी, उसके बाद वह उसे उस व्यक्ति को बेचेगी जो इसे खरीदना चाहता है।
दूसरी शर्त : यह है कि संस्था उस वस्तु को ग्राहक को बेचने से पहले अपने कब्ज़े में ले ले। प्रत्येक चीज़ का क़ब्ज़ा उस चीज़ के हिसाब से (अलग-अलग) होता है। उदाहरण के लिए, कार का कब्ज़ा उसे उसके स्थान से हस्तांतरित करके होता है, जबकि एक घर का कब्ज़ा उसे खाली करने और उसकी चाबियाँ प्राप्त करने से होता है, इत्यादि।
यदि लेन-देन इन दोनों शर्तों, या इनमें से किसी एक को पूरा नहीं करता है, तो यह एक हराम (निषिद्ध) लेन-देन है, इसका स्पष्टीकरण यह है कि यदि बैंक या संस्था उस वस्तु को वास्तविक रूप से अपने लिए नहीं खरीदती है, बल्कि ग्राहक की ओर से केवल राशि का चेक देती है, तो यह एक सूदी (रिबा-आधारित) ऋण है। क्योंकि वास्तव में उसने ग्राहक को वस्तु की कीमत (उदाहरण के लिए 100,000) उधार दी है इस शर्त पर कि वह उससे एक लाख सात हजार (107,000) की राशि वापस लेगी।
यदि वह वस्तु खरीदती है, लेकिन उसे अपने क़ब्जे में लेने से पहले ही बेच देती है, तो यह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के उस कथन का उल्लंघन है, जो आपने हकीम बिन हिज़ाम (रज़ियल्लाहु अन्हु) से फ़रमाया : "जब तुम कोई चीज़ ख़रीदो, तो उसे तब तक न बेचो जब तक तुम उसे अपने क़ब्ज़े में न ले लो।" इसे अहमद (हदीस संख्या : 15399) और नसाई (हदीस संख्या : 4613) ने रिवायत किया है और अल्बानी ने ‘सहीह अल-जामे’ (हदीस संख्या : 342) में सहीह (प्रामाणिक) कहा है।
तथा दाराकुतनी और अबू दाऊद (हदीस संख्या : 3499) ने ज़ैद बिन साबित (रज़ियल्लाहु अन्हु) से रिवायत किया है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने सामान को उसी स्थान पर बेचने से मना फरमाया जहाँ उसे ख़रीदा जाता है, जब तक कि व्यापारी उसे अपने स्थान पर न ले जाएँ।” इस हदीस को अलबानी ने सहीह अबू दाऊद में हसन कहा है।
तथा सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम में इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया : "जो व्यक्ति कोई खाद्य पदार्थ (अनाज) ख़रीदे, वह उसे तब तक न बेचे जब तक कि वह उसे पूरा न पा ले।" (यानी जब तक वह उसपर क़ब्ज़ा न कर ले।) इसे बुखारी (हदीस संख्या : 2132) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1525) ने रिवायत किया है। मुस्लिम ने यह वृद्धि की है : इब्ने अब्बास ने कहा : “मेरा विचार है कि सभी चीज़ें ऐसी ही हैं।” अर्थात, इस संबंध में खाद्य पदार्थों और अन्य चीज़ों में कोई अंतर नहीं है।
जैसा कि ऊपर बताया गया है, हर चीज़ का कब्ज़ा उसकी स्थिति के अनुसार होता है। शैख़ इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने कहा : "ऐसी चीज़ें जिन्हें स्थानांतरित किया जाता है, जैसे कपड़े, जानवर, कार आदि, उनपर कब्ज़ा उन्हें स्थानांतरित करके किया जाता है, क्योंकि यही प्रथा है।" (अश-शर्ह अल-मुम्ते`, 8/381)
“फतावा अल-लजना अद-दाईमा” (13/153) में वर्णन किया गया है :
“अगर कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति से एक विशिष्ट कार या एक विशिष्ट विवरण वाली कार खरीदने के लिए कहे और वह उससे उसे खरीदने का वादा करे। अतः वह आदमी जिससे ऐसा करने के लिए कहा गया था उसे खरीद ले और अपने कब्ज़े में ले ले, तो जिसने उससे ऐसा करने के लिए कहा था उसके लिए उसके बाद उसे एक तयशुदा मुनाफ़े पर नकद या किस्तों में खरीदना जायज़ है। यह उस चीज़ को बेचने के शीर्षक के अंतर्गत नहीं आता जो आदमी के पास नहीं है; क्योंकि जिस व्यक्ति से वह चीज़ मांगी गई थी वह उसे खरीदने और अपने कब्ज़े में लेने के बाद ही उसे बेच रहा है। तथा उसे इसे खरीदने से पहले या खरीदने के बाद और अपने क़ब्जे में लेने से पहले, उदाहरण के लिए, अपने दोस्त को बेचने का अधिकार नहीं है; क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सामान को उस जगह पर बेचने से मना किया है जहाँ उसे खरीदा जाता है, जब तक कि व्यापारी उसे अपने स्थानों पर नहीं ले जाते।'' उद्धरण समाप्त हुआ।
इस्लामिक फ़िक़्ह काउंसिल ने एक निर्णय जारी किया है कि इस प्रकार का मुराबहा लेन-देन जायज़ हैं। उसमें कहा गया है :
”खरीदने का आदेश देने वाले व्यक्ति के लिए मुरबाहा बिक्री (लेन-देन), यदि यह किसी वस्तु पर तब की जाती है जब वह आदेश दिए गए व्यक्ति के कब्जे में आ जाती है और शरई रूप से आवश्यक कब्जा प्राप्त कर लिया जाता है, तो यह एक अनुमेय बिक्री (लेन-देन) है, बशर्ते कि वह व्यक्ति जिसे आदेश दिया गया है डिलीवरी से पहले किसी भी क्षति के लिए ज़िम्मेदार हो, और डिलीवरी के बाद किसी छिपे हुए दोष या इसी तरह के अन्य कारणों से वापसी के लिए उत्तरदायी हो, और बिक्री की शर्तें पूरी हों और बिक्री में कोई बाधा न हो।" काउंसिल की पत्रिका (5/2/753, 965) से उद्धरण समाप्त हुआ।
इसके आधार पर, यदि वह संस्था जिसके बारे में पूछा गया है, वस्तु को वास्तविक रूप से खरीदती है, न कि केवल कागज़ पर आधारित औपचारिक खरीदारी के रूप में, और फिर उसे उसके स्थान से ले जाकर बेचती है, तो बिक्री वैध है और यह लेन-देन जायज़ है।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।