अचल संपत्ति (रियल एस्टेट) पर ज़कात की हालतों और नियमों का सारांश।

प्रश्न: 231858

वे कौन-से हालात हैं जिनमें ज़मीन और रियल एस्टेट पर ज़कात अनिवार्य होती है?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा एवं गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है, तथा दुरूद व सलाम की वर्षा हो अल्लाह के रसूल पर। इसके बाद :

यह बात विदित है कि आज के समय में अचल संपत्ति (रियल एस्टेट) की स्थिति पहले की तुलना में अलग है, चाहे वह लोकप्रियता हो या मांग के लिहाज़ से। और इसकी विभिन्न अवस्थाएँ होती हैं, जिनके अनुसार ज़कात का हुक्म (फैसला) भी भिन्न होता है।

अचल संपत्ति : इससे अभिप्राय उन ज़मीनों और उन पर बनी इमारतों से है, जिनका इंसान मालिक होता है; जैसे कि मकान, महल, अपार्टमेंट्स, फ्लैट्स, दुकानें, पेट्रोल पंप्स, विश्राम गृह (रेस्ट हाउस) और इसी तरह की अन्य संपत्तियाँ।

अचल संपत्ति की ज़कात का विवरण इस प्रकार कहा जा सकता है:

अचल संपत्ति की ज़कात के बारे में विस्तार से बात इस प्रकार है :

  1. इस विषय में सामान्य सिद्धांत (नियम) यह है : कि अचल संपत्ति ज़कात योग्य संपत्तियों में से नहीं है। इसलिए मूल सिद्धांत यह है कि उस पर ज़कात वाजिब (अनिवार्य) नहीं होती जब तक कि वह व्यापार के लिए न हो।
  2. वह अचल संपत्ति जिसे इंसान निवास (रहने) के लिए या किसी अन्य व्यक्तिगत उपयोग के लिए रखता है, जैसे कि गोदाम (स्टोरेज) आदि, तो उस पर ज़कात अनिवार्य नहीं है, और इस पर सभी विद्वानों का इत्तिफ़ाक (सर्वसम्मति) है।

क्योंकि ऐसी स्थिति में अचल संपत्ति को "व्यक्तिगत उपयोग" की संपत्ति माना जाता है, और इस पर विद्वानों की सर्वसम्मति के साथ ज़कात वाजिब नहीं होती है।

तथा प्रश्न संख्या : (224770) के उत्तर को देखा जा सकता है।

चाहे खरीदते समय ही इसे व्यक्तिगत उपयोग के लिए लेने की नीयत हो, या बाद में यह नीयत बन जाए, तो केवल अचल संपत्ति को व्यक्तिगत उपयोग के लिए रखने की नीयत ही उसे ग़ैर-ज़कातयोग्य संपत्ति बना देती है, चाहे वह वर्षों तक रखी रहे, जब तक कि मालिक की नीयत इस मकसद से न बदले।

  1. कृषि भूमि : इसमें ज़कात नहीं है, बल्कि ज़कात सिर्फ फसलों और फलों पर अनिवार्य है। लेकिन अगर कोई ज़मीन व्यापार के लिए खरीदी गई हो और उसे बेचने तक उसमें खेती की जाए, और उससे फल या अनाज प्राप्त हो, तो फल और अनाज पर "उश्र" (दसवां हिस्सा) की ज़कात देनी होगी, और ज़मीन पर उसकी क़ीमत के आधार पर ज़कात देनी होगी। क्योंकि ये दोनों अलग-अलग अधिकार हैं, और इन पर ज़कात अलग-अलग कारणों से वाजिब होती है, और एक का ज़कात देना दूसरे को माफ़ नहीं करता।

जकरिया अल-अंसारी ने कहा : "अगर किसी ने ऐसी ज़मीन में खेती की जो व्यापार के लिए थी, लेकिन फसल व्यक्तिगत उपयोग   के लिए उगाई, तो दोनों का अलग-अलग हुक्म होगा : फसल पर उपज की ज़कात और ज़मीन पर व्यापार की ज़कात अनिवार्य होगी।" "असनल-मतालिब" (1/385) से उद्धरण समाप्त हुआ।

  1. वह अचल संपत्ति जिसे कोई व्यक्ति लाभ कमाने के उद्देश्य से रखता है, यानी कि उसे किराए पर देने और उसके आय से लाभ उठाने के लिए : तो उसकी कीमत पर ज़कात वाजिब नहीं होती, बल्कि जो किराया उससे प्राप्त होता है, उस पर ज़कात देनी होती है, जब उस किराया पर एक इस्लामी वर्ष बीत जाए।

इसका अर्थ यह है कि मकान, गोदाम, फर्निश्ड अपार्टमेंट्स, होटल, इमारतें आदि, यदि इन्हें किराए पर देने के लिए तैयार किया गया हो, तो अधिकांश विद्वानों के निकट इनकी कीमत पर ज़कात नहीं है। इसलिए हर साल इस संपत्ति का मूल्यांकन करके ज़कात निकालना जरूरी नहीं है।

  1. व्यापार के लिए खरीदी गई संपत्ति पर ज़कात : जो संपत्ति व्यापार के इरादे से खरीदी गई है, उसपर ज्यादातर विद्वानों के अनुसार ज़कात अनिवार्य है।

व्यापार के इरादे से अभिप्राय यह है कि इस संपत्ति से कमाई करने और मुनाफा कमाने का इरादा हो।

मर्दावी ने कहा : "‘व्यापार की नीयत’ का मतलब यह है कि वह उसे बेचकर लाभ कमाना चाहता हो।" “अल-इंसाफ” (3/154) से उद्धरण समाप्त हुआ।

केवल बेचने की इच्छा होना, उसे व्यापारिक वस्तु नहीं बनाता। क्योंकि बहुत बार लोग किसी वस्तु को अलग-अलग कारणों से बेच देते हैं : जैसे वस्तु से छुटकारा पाने के लिए, या उसमें रुचि न रहने के कारण, या आर्थिक तंगी के चलते, आदि। लेकिन "व्यापार" का आशय विशेष रूप से मुनाफ़ा कमाने की नीयत से बेचने से होता है।

शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने कहा : अगर किसी के पास ज़मीन है जिसे उसने निर्माण के लिए खरीदा है, फिर उसने अपना मन बदलकर उसे बेचने का इरादा किया; क्योंकि उसे उसकी जरूरत नहीं रही, या किसी व्यक्ति के पास कई ज़मीनें हैं, फिर उसे पैसों की जरूरत पड़ती है। इसलिए वह अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए उनमें से एक को बेचने का फैसला करता है, तो उसे इसमें या इससे पहले वाली ज़मीन में ज़कात देने की ज़रूरत नहीं है। क्योंकि यहाँ उसका बेचने का इरादा व्यापार के लिए नहीं था।” “फत्ह ज़िल-जलाल” (6/173) से उद्धरण समाप्त हुआ।

  1. अगर किसी व्यक्ति ने अचल संपत्ति खरीदी, लेकिन उसका व्यापार करने का कोई पक्का इरादा नहीं है, या उसने अभी कोई ख़ास इरादा ही नहीं बनाया है, तो उस पर ज़कात नहीं है।

इमाम क़राफी कहते हैं : "अगर किसी ने कोई संपत्ति खरीदी और उसकी कोई नीयत नहीं है (कि क्या करेगा) — तो वह 'क़िन्यह' (व्यक्तिगत उपयोग) के लिए मानी जाएगी, क्योंकि संपत्ति का मूल उद्देश्य यही होता है।" “अज़-ज़खीरा” (3/18) से उद्धरण समाप्त हुआ।

शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से पूछा गया : एक व्यक्ति के पास ज़मीन है और उसके बारे में उसका इरादा बदलता रहता है। वह तय नहीं कर पा रहा है कि उसे बेच दे, या उस पर निर्माण करे, या उसे किराये पर दे, या खुद रहे, तो क्या साल पूरा होने पर वह ज़कात देगा?

उन्होंने जवाब दिया : "इस ज़मीन पर ज़कात बिल्कुल नहीं है, जब तक कि उसका यह पक्का इरादा न हो कि यह व्यापार के लिए है। अतः इस पर ज़कात नहीं है क्योंकि यह अनिश्चित है, और यदि एक प्रतिशत की भी अनिश्चितता है, तो इस पर ज़कात नहीं है।” “मजमू’ फतावा अल-उसैमीन” (18/232) से उद्धरण समाप्त हुआ।

  1. यदि किसी व्यक्ति ने अचल संपत्ति (जैसे ज़मीन, मकान) को व्यक्तिगत उपयोग या निवास की नीयत से खरीदा, लेकिन बाद में उसमें व्यापार की नीयत बना ली, तो उसमें ज़कात की अनिवार्यता के विषय में मतभेद है। हालाँकि प्रबल मत यह है कि उसमें ज़कात देनी होगी, जैसाकि पहले उल्लेख हुआ है।
  2. अगर संपत्ति व्यापार के इरादे से खरीदी गई, फिर इरादा बदलकर व्यक्तिगत उपयोग या किराए के लिए किया गया, तो इसमें ज़कात नहीं है। क्योंकि ज़कात के लिए इरादे का एक साल तक बने रहना जरूरी है। अगर साल पूरा होने से पहले इरादा बदल जाए, तो ज़कात खत्म हो जाती है।

नववी ने कहा : "अगर वह अपने पास मौजूद व्यापार के माल को निजी इस्तेमाल के लिए रखने का फैसला करता है, तो वह  विद्वानों की सहमति के अनुसार, निजी संपत्ति बन जाती है।" “अल-मजमू’” (6/49) से उद्धरण समाप्त हुआ।

  1. दोहरे इरादे वाली संपत्ति : अगर कोई व्यक्ति व्यापार के साथ निजी इस्तेमाल के लिए, या निजी इस्तेमाल के साथ व्यापार के लिए अचल संपत्ति खरीदता है, तो ज़कात का निर्धारण इस आधार पर होगा कि उस संपत्ति को खरीदते समय उसका इरादा क्या था।

यदि किसी व्यक्ति ने कोई वस्तु निजी उपयोग के लिए खरीदी, लेकिन सोचा कि अगर लाभ हुआ तो उसे बेच देगा : तो उस पर ज़कात नहीं है।

लेकिन यदि कोई व्यक्ति किसी वस्तु को व्यापार के इरादे से खरीदता है, और उसे बेचने तक इंतज़ार करते हुए निजी फ़ायदे के लिए इस्तेमाल करता है, तो उस पर हर साल ज़कात बनती है, जब तक कि वह बिक न जाए।

इसी तरह, अगर वह बेचने से पहले एक निश्चित अवधि तक उसका इस्तेमाल करने और उससे लाभ उठाने का फैसला करता है, तो उसमें व्यापारिक वस्तुओं की ज़कात अनिवार्य है, क्योंकि उसका पहले इसका उपयोग करने का इरादा इसके विपरीत नहीं है कि वह व्यापार के लिए तैयार की गई थी।

  1. अगर अचल संपत्ति अभी निर्माण के चरण में है – और वह व्यापार के लिए है – तो उसपर ज़कात अनिवार्य है, चाहे वह बिक्री के लिए पेश की गई हो या निर्माण पूरा होने के बाद ही बेची जानी हो। उसकी ज़कात उस समय की वर्तमान स्थिति में उसके मूल्य के अनुसार अदा की जानी चाहिए जब ज़कात देय हो।
  2. वह अचल संपत्ति जिसका मालिक कीमतों में वृद्धि का इंतज़ार कर रहा हो, तो उस पर हर साल उसके मूल्य के अनुसार ज़कात अदा करनी होगी, भले ही यह वर्षों तक जारी रहे।

क्योंकि दूर भविष्य में लाभ कमाने के इरादे से अचल संपत्ति खरीदना उसे ज़कात से मुक्त नहीं करता है।

इसी का एक उदाहरण : शहर से दूर इलाकों में उस समय के इंतज़ार में ज़मीन खरीदना भी है जब लोग उसमें रुचि दिखाएँ और कीमतें बढ़ने लगें। भविष्य में ज़मीन बेचने का यह इरादा ज़कात को अनिवार्य कर देता है, तथा बेचने के इरादे को विलंब करने का कोई प्रभाव नहीं पड़ता जब तक कि वह ज़मीन व्यापार के लिए रखी गई है और उसका उद्देश्य अपनी संपत्ति बढ़ाना हो।

ऐसे व्यापारी को विद्वान "प्रतीक्षारत व्यापारी" कहते हैं, और इस मामले में सबसे सही राय अधिकांश विद्वानों (जमहूर) का यह मत है कि इसमें हर साल ज़कात अनिवार्य है।

  1. वह अचल संपत्ति जिसे उसका मालिक धन को सुरक्षित रखने की नीयत से खरीदता है, तो उसमें ज़कात नहीं है, सिवाय इसके कि ज़कात से बचने का इरादा हो।

इसका उल्लेख प्रश्न संख्या : (231857) के जवाब में किया जा चुका है।

  1. यदि कोई व्यक्ति व्यापार के उद्देश्य से अचल संपत्ति खरीदता है और उसपर क़ब्ज़ा नहीं करता यहाँ तक कि उस धन पर एक साल बीत जाता है जिससे उसने उसे खरीदा था : तो उसमें ज़कात अनिवार्य है। क्योंकि अचल संपत्ति का स्वामित्व (मालिकाना हक) खरीदार को मात्र अनुबंध से ही मिल जाता है और वह उस पर क़ब्ज़ा करने में सक्षम हो जाता है।

शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से पूछा गया : एक व्यक्ति ने व्यापार के लिए तैयार कुछ ज़मीन खरीदी, लेकिन उसने अभी तक ज़मीन पर कब्ज़ा नहीं किया है, और न ही उसके मालिकाना हक़ का दस्तावेज़ लिया है। क्या उसे उस पर ज़कात देनी होगी?

तो उन्होंने उत्तर दिया : "हाँ, उसे इस ज़मीन पर ज़कात देनी होगी, भले ही उसने मालिकाना हक़ का दस्तावेज़ न लिया हो, जबकि बिक्री पूरी हो गई है और बाध्यकारी हो गई है। वह उसकी व्यापारिक वस्तुओं की ज़कात निकालेगा। ज़कात अनिवार्य होने के समय वह उसका मूल्यांकन करेगा और उसके मूल्य का चालीसवाँ हिस्सा (यानी 2.5%) ज़कात के रूप में निकालेगा।” “मजमू’ फतावा व रसाइल अल-उसैमीन” (18/234) से उद्धरण समाप्त हुआ।

  1. गिरवी रखी गई संपत्ति : अगर वह संपत्ति व्यापार के लिए तैयार की गई है, तो उसपर ज़कात अनिवार्य है।

शैख इब्ने बाज़ ने कहा : "अगर आपने उसे व्यापार के लिए तैयार किया था और वह गिरवी रखी हुई है, तो आपको उसकी ज़कात देनी होगी। लेकिन यदि वह गिरवी रखी है और व्यापार के लिए तैयार नहीं है; बल्कि वह तब तक गिरवी रखी है जब तक आप उस व्यक्ति का बकाया चुका नहीं देते जिसके पास वह गिरवी रखी है, और एक बार जब आप उसे चुका देते हैं, तो वह रहने या किराए पर देने के लिए है, तो उस पर ज़कात नहीं है।” “फतावा नूरुन अलद-दर्ब” (15/43) से उद्धरण समाप्त हुआ।

तथा प्रश्न संख्या : (99311) का उत्तर देखें।

  1. साझेदारी वाली संपत्ति : अधिकांश विद्वानों के अनुसार, अचल संपत्ति के स्वामित्व में साझेदारों को अपने-अपने हिस्से की ज़कात देनी होगी, अगर वह निसाब तक पहुंचता है।

शैख बक्र अबू जैद ने कहा : "अचल संपत्ति में साझेदार लोगों में से प्रत्येक पर ज़कात अनिवार्य होने के लिए शर्त यह है कि संपत्ति में उसके हिस्से की क़ीमत स्वयं, या उसे उसकी अन्य ज़कात योग्य संपत्ति, जैसे व्यापारिक सामान की नकदी के साथ जोड़कर निसाब तक पहुँच जाए।” “फतवा जामिआ फी ज़कातिल-अक़ार” (पृष्ठ : 12) से उद्धरण समाप्त हुआ।

प्रश्न संख्या : (147855) के उत्तर में पहले ही बताया जा चुका है कि शाफ़ेई मत कुल राशि का एतिबार करता है, प्रत्येक व्यक्ति के निसाब का नहीं। इसलिए यदि संपत्ति का मूल्य निसाब (न्यूनतम राशि) तक पहुँच जाता है, तो उनमें से प्रत्येक पर ज़कात अनिवार्य है, भले ही उसका हिस्सा निसाब तक न पहुँचता हो।

इस्लामी फ़िक़्ह परिषद ने इसी दृष्टिकोण को अपनाया है और शेख इब्न उसैमीन भी इसी के पक्ष में थे।

  1. सार्वजनिक धर्मार्थ कार्यों जैसे कि गरीबों के लिए वक्फ की गई अचल संपत्ति : पर ज़कात नहीं है, क्योंकि वह अब किसी व्यक्ति के स्वामित्व में नहीं रह जाती।
  2. ज़कात के अनिवार्य होने के संबंध में, इस तथ्य से कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि अचल संपत्ति बिकाऊ है या मंदी से ग्रस्त है, जब तक उसकी कोई (बाजार) मूल्य है जिसपर उसे बेचा जा सके।

यह जमहूर (यानी विद्वानों की बहुमत) का दृष्टिकोण है, क्योंकि व्यापारिक वस्तुओं पर ज़कात देने का मूल तर्क (आधार) यह है कि वे ऐसी संपत्ति हैं जिसके बढ़ने की उम्मीद है, जैसे मुद्रा, चाहे वे वास्तव में बढ़ें या न बढ़ें, और चाहे लाभ हो या हानि।

अतः ज़कात के मामले में, मंदी (व्यापारिक वस्तुओं के कम बिकने) से कोई प्रभाव नहीं पड़ता जब तक कि उन वस्तुओं का एक वास्तविक बाजार मूल्य है और उन्हें खरीदा और बेचा जा सकता है।

“स्थायी समिति के फतावा” (8/102) में कहा गया है: "बिक्री के लिए रखी गई ज़मीन पर हर साल ज़कात देना अनिवार्य है, क्योंकि उसे एक व्यापारिक वस्तु माना जाता है। उसकी क़ीमत साल की शुरुआत में उसके मूल्य के हिसाब से तय की जाएगी और उसमें से चालीसवाँ हिस्सा ज़कात के रूप में निकाला जाएगा, चाहे वह प्रचलन में हो या मंदी से ग्रस्त हो, क्योंकि बिक्री और व्यापार के लिए तैयार की गई ज़मीन पर ज़कात की अनिवार्यता के प्रमाण सामान्य हैं।” [इब्न बाज़, आलुश-शैख, अल-फ़ौज़ान, अल-ग़ुदय्यान]

शैख अब्दुर्रहमान अल-बर्राक ने कहा : "अचल संपत्ति के मूल्य में गिरावट (मंदी) का ज़कात की बाध्यता को समाप्त करने में कोई प्रभाव नहीं है। बल्कि, यह ज़कात की राशि को कम कर देती है। क्योंकि मंदी से ग्रस्त भूमि का मूल्यांकन उस कीमत पर किया जाता है जिस पर उसे खरीदा जा सकता है, चाहे वह कितनी भी कम क्यों न हो।" उद्धरण समाप्त हुआ।

लेकिन यदि संपत्ति की कीमत इतनी कम हो जाती है कि उसका मालिक उसे बेचने के लिए पेश कर रहा है, परंतु उसे खरीदने वाला कोई नहीं मिल रहा है, तो कुछ विद्वानों का कहना है कि जब वह उसे बेचेगा, तो उस पर एक वर्ष की ज़कात निकालेगा।

18- रियल एस्टेट (अचल संपत्ति) में शेयरों की ज़कात व्यापारिक वस्तुओं पर ज़कात के समान ही दी जाएगी, क्योंकि ये रियल एस्टेट कंपनियाँ व्यापार के उद्देश्य से ज़मीन खरीदती हैं।

प्रत्येक वर्ष के अंत में, शेयरधारक को चाहिए कि इस कंपनी में अपने शेयरों का मूल्यांकन उनके मूल्य के अनुसार करे और उसका चालीसवाँ हिस्सा उसकी ज़कात के रूप में निकाले।

  1. ज़ब्त की गई अचल संपत्ति और संकटग्रस्त अचल संपत्ति निवेश योजनाएँ : उन पर ज़कात नहीं है, और वे "ज़िमार-धन" की श्रेणी में आती हैं — यानी ऐसा धन जिसका उपयोग नहीं किया जा सकता।

“वह ज़मीन जो सुविधाओं और स्कूलों आदि जैसी नियोजित परियोजनाओं में ज़ब्त कर ली गई और उसके मालिक को उसका निपटान करने से रोक दिया गया जब तक कि आधिकारिक प्राधिकारी यह निर्णय न ले लें कि उन्हें अब इसकी आवश्यकता नहीं है : उस पर ज़कात तब तक देय नहीं है जब तक कि मालिक उसका निपटान करने में सक्षम न हो जाए। ऐसी स्थिति में उसका निपटान करने में सक्षम होने की तारीख से एक वर्ष तक प्रतीक्षा करेगा।”

“अल-मसाइल अल-मुस्तजिद्दा फ़िज़-ज़कात” (पृष्ठ : 87) से उद्धरण समाप्त हुआ।

यही बात संकटग्रस्त अचल संपत्ति कंपनियों के शेयरों पर भी लागू होती है : संकट का कारण कंपनी के प्रबंधन द्वारा धोखाधड़ी और छल हो सकता है, या यह राज्य द्वारा निर्धारित नियमों में बाधाओं के कारण हो सकता है, या उस संपत्ति पर विवाद या अधिकारों के कारण हो सकता है। जो भी हो, उस अचल संपत्ति के शोयरों पर ज़कात नहीं है जिनका मालिक उनका निपटान करने में सक्षम नहीं है।

  1. मूल्यांकन : संपत्ति का मूल्यांकन साल के अंत में उसके बाजार मूल्य के आधार पर होगा, जो खरीद मूल्य से कम या ज्यादा हो सकता है।
  2. साल की गणना: साल की गणना संपत्ति खरीदने के समय से नहीं होती, बल्कि उसके साल की गणना उस राशि के आधार पर की जाएगी जो उसे खरीदने के लिए इस्तेमाल की गई थी।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

संदर्भ

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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