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हाजियों के लिए अनिवार्य हदी (बलि) और उसके ज़बह करने का स्थान

प्रश्न: 223070

क्या हाजियों के लिए हदी (बलि) को हरम की सीमाओं के बाहर ज़बह करना और उसे अपने देश के गरीबों में बांटना जायज़ है, ख़ासकर जब उनके देश में ग़रीबों की संख्या बहुत अधिक है? अगर हाजी ने ऐसा किया तो उसके हज्ज का क्या हुक्म है?

कृपया क़ुरआन और सुन्नत से इस बात का प्रमाण प्रस्तुत करें कि हाजी को उसी स्थान पर हदी ज़बह करना अनिवार्य है जहाँ उसे ज़बह किया जाता है? हदी को केवल पवित्र स्थान की सीमाओं के भीतर ही क्यों ज़बह किया जाना चाहिए?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा एवं गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है, तथा दुरूद व सलाम की वर्षा हो अल्लाह के रसूल पर। इसके बाद :

हज्ज के दौरान हाजी के लिए अनिवार्य कुर्बानियाँ इस प्रकार हैं :

पहला प्रकार : तमत्तु' और क़िरान की हदी। जो व्यक्ति तमत्तु' या क़िरान हज्ज करता है, उस पर एक हदी ज़बह करना अनिवार्य है, अगर उसके पास हदी का जानवर मौजूद है, अन्यथा वह उसके बदले रोज़ा रखेगा। अल्लाह तआला का फरमान है :

فَمَن تَمَتَّعَ بِالْعُمْرَةِ إِلَى الْحَجِّ فَمَا اسْتَيْسَرَ مِنَ الْهَدْيِ فَمَن لَّمْ يَجِدْ فَصِيَامُ ثَلَاثَةِ أَيَّامٍ فِي الْحَجِّ وَسَبْعَةٍ إِذَا رَجَعْتُمْ تِلْكَ عَشَرَةٌ كَامِلَةٌ ذَلِكَ لِمَن لَّمْ يَكُنْ أَهْلُهُ حَاضِرِي الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ وَاتَّقُوا اللَّهَ وَاعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ شَدِيدُ الْعِقَابِ

البقرة /196 .

"फिर जो व्यक्ति ह़ज्ज (के एहराम बाँधने) तक उमरे से लाभ उठाए, तो क़ुर्बानी में से जो उपलब्ध हो, करे। फिर जिसके पास (क़ुर्बानी) उपलब्ध न हो, तो वह तीन रोज़े ह़ज्ज के दौरान रखे और सात दिन के उस समय रखे, जब तुम (घर) वापस जाओ। ये पूरे दस हैं। ये उसके लिए हैं, जिसके घर वाले मस्जिदे-ह़राम के निवासी न हों। और अल्लाह से डरो तथा जान लो कि निःसंदेह अल्लाह बहुत सख़्त अज़ाब वाला है।” (सूरतुल-बक़रा : 196)

इब्न कसीर रहिमहुल्लाह ने कहा :

"अर्थात जब तुम हज्ज के कर्मकांड करने में सक्षम हो जाओ, तो तुममें से जो व्यक्ति उम्रा से हज्ज तक लाभ उठाए; इसमें वह व्यक्ति भी शामिल है जिसने (हज्ज और उम्रा) दोनों का एहराम एक साथ बाँधा (यानी क़ारिन), और वह भी शामिल है जिसने पहले उम्रा का एहराम बाँधा, फिर जब उम्रा से फारिग हो गया, तो दोबारा हज्ज का एहराम बाँधा, और यही विशिष्ट तमत्तु है, और यह फ़ुक़हा (इस्लामी विद्वानों) की ज़बान में प्रचलित है।.....  فَمَا اسْتَيْسَرَ مِنَ الْهَدْيِ   का अर्थ है : वह जो भी भेंट दे सकता है, उसे ज़बह करे, जिसमें कम से कम एक भेड़-बकरी है।" “तफ़सीर इब्न कसीर” (1/537) से उद्धरण समाप्त। हुआ।

इस हदी (क़ुर्बानी) को ज़बह करने का स्थान हरम मक्की (मक्का में हरम का सीमा क्षेत्र) है।

इब्नुल-अरबी रहिमहुल्लाह ने कहा :

"इस बात पर कोई मतभेद नहीं है कि हदी का हरम की सीमा के भीतर होना अनिवार्य है।” “अहकामुल-क़ुरआन” (2/186) से उद्धरण समाप्त हुआ।

“अल-मौसूआ अल-फ़िक़्हिय्या” (42/250-251) में वर्णित है :

“फुक़हा (इस्लामी धर्मशात्रियों) ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि हदी (बलि) के जानवरों का खून — रोक दिए जाने की स्थिति को छोड़कर - केवल हरम के भीतर ही बहाना जायज़ है। इनमें से किसी भी हदी को हरम के बाहर ज़बह करना जायज़ नहीं है।

क्योंकि अल्लाह तआला ने शिकार के जुर्माने के बारे में फ़रमाया : هَدْيًا بَالِغَ الْكَعْبَةِ बलि जो काबा तक पहुँचे।  तथा उसने फरमाया : ثُمَّ مَحِلُّهَا إِلَى الْبَيْتِ الْعَتِيقِ फिर उनके ज़बह होने की जगह प्राचीन घर के पास है।”  (सूरतुल-हज्ज: 33) तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "मैंने यहाँ ज़बह किया है, और मिना का सारा क्षेत्र ज़बह की जगह है, अतः तुम अपने ठिकानों में ज़बह करो।"

तथा एक अन्य हदीस में फ़रमाया : "मक्का की सारी वादियाँ रास्ता हैं और ज़बह की जगह हैं।" उद्धरण समाप्त हुआ।

हदी के मांस के बारे में अनिवार्य यह है कि : उसमें से हरम के गरीबों और ज़रूरतमंदों को बांटा जाए। लेकिन कुछ हिस्सा हरम से बाहर भी ले जाया जा सकता है — खाने या उपहार देने के लिए।

जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हुमा  से वर्णित है कि उन्होंने कहा : "हमने मिना में तीन दिनों से ज़्यादा अपने ऊँटों का मांस नहीं खाते थे। फिर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमें छूट दी और फरमाया : 'खाओ और साथ ले जाओ (यानी यात्रा के लिए तोशा बनाओ।)” इसलिए हमने खाया और तोशा लिया।" इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1719) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1972) ने रिवायत किया है।

शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने कहा :

"तमत्तु और क़िरान हज्ज के लिए हदी (क़ुर्बानी का जानवर) कृतज्ञता की हदी (क़ुर्बानी) है। इसलिए इसे हरम के गरीबों को देना ज़रूरी नहीं है। बल्कि, उसका हुक्म क़ुर्बानी के हुक्म के समान ही है, यानी वह उसका कुछ हिस्सा खाएगा, कुछ उपहार के रूप में देगा और कुछ हरम के गरीबों को दान में देगा।

अगर कोई व्यक्ति तमत्तु और क़िरान की हदी मक्का में ज़बह करता है और फिर उसका मांस अश-शराए, या जद्दा या कहीं और ले जाता है, तो कोई समस्या नहीं है, लेकिन उसका कुछ हिस्सा हरम के गरीबों को दान में देना अनिवार्य है।" “अश-शर्ह अल-मुम्ति” (7/203) से उद्धरण समाप्त।

दूसरा प्रकार : जो किसी वाजिब को छोड़ने के लिए ज़बह किया जाता है। अतः जिस व्यक्ति ने भी हज्ज के किसी वाजिब को छोड़ दिया, वह एक भेड़-बकरी ज़बह करके इस कमी की भरपाई करेगा।

अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) से रिवायत है, कि उन्होंने कहा : "जो कोई अपने हज्ज के कर्मकांड के किसी हिस्से को भूल जाए या छोड़ दे, तो वह एक खून बहाए (क़ुर्बानी करे)।” इसे इमाम मलिक ने अल-मुवत्ता (1583) में रिवायत किया है।

यह क़ुर्बानी हरम की सीमा के भीतर की जानी चाहिए और इसका मांस भी हरम ही में वितरित किया जाना चाहिए।

शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने कहा :

"उलमा ने स्पष्ट रूप से कहा है कि तमत्तु और क़िरान की हदी, तथा किसी वाजिब को छोड़ने की हदी मक्का में ज़बह की जानी चाहिए। अल्लाह ने शिकार की सज़ा के बारे में इसे स्पष्ट रूप से बयान किया है, फरमाया :

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آَمَنُوا لَا تَقْتُلُوا الصَّيْدَ وَأَنْتُمْ حُرُمٌ وَمَنْ قَتَلَهُ مِنْكُمْ مُتَعَمِّدًا فَجَزَاءٌ مِثْلُ مَا قَتَلَ مِنَ النَّعَمِ يَحْكُمُ بِهِ ذَوَا عَدْلٍ مِنْكُمْ هَدْيًا بَالِغَ الْكَعْبَةِ

“ऐ ईमान वालो! शिकार को न मारो, जबकि तुम एहराम की स्थिति में हो। तथा तुममें से जो उसे जान-बूझकर मारे, तो चौपायों में से उसी जैसा बदला है जो उसने मारा है, जिसका निर्णय तुममें से दो न्यायप्रिय व्यक्ति करेंगे, जो क़ुर्बानी के रूप में काबा पहुँचने वाली है।” (सूरतुल मायदा : 95).

इस्लामी शरीअत में जो कुछ भी कुछ निर्धारित स्थानों के साथ विशिष्ट है : उसे अन्य स्थानों पर स्थानांतरित करना जायज नहीं है। बल्कि, उसका वहीं होना अनिवार्य है। अतः हदी को मक्का में होना चाहिए और मक्का ही में वितरित किया जाना चाहिए।” “मजमू’ फतावा इब्न उसैमीन” (25/83) से उद्धरण समाप्त।

तीसरा प्रकार : जो हाजी के एहराम की स्थिति में निषिद्ध कामों में से कोई काम कर लेने के कारण ज़बह किया जाता है।

शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने कहा :

"कुरआन के नस से प्रमाणित है कि हराम चीज़ को कर लेने से उसमें एक क़ुर्बानी अनिवार्य होती है। अल्लाह तआला ने फ़रमाया :

وَأَتِمُّوا الْحَجَّ وَالْعُمْرَةَ لِلَّهِ فَإِنْ أُحْصِرْتُمْ فَمَا اسْتَيْسَرَ مِنَ الْهَدْيِ وَلَا تَحْلِقُوا رُءُوسَكُمْ حَتَّى يَبْلُغَ الْهَدْيُ مَحِلَّهُ فَمَن كَانَ مِنكُم مَّرِيضًا أَوْ بِهِ أَذًى مِّن رَّأْسِهِ فَفِدْيَةٌ مِّن صِيَامٍ أَوْ صَدَقَةٍ أَوْ نُسُكٍ

البقرة/196

तथा ह़ज्ज और उमरा अल्लाह के लिए पूरा करो। फिर यदि तुम रोक दिए जाओ, तो क़ुर्बानी में से जो उपलब्ध हो (कर दो)। और अपने सिर न मुँडाओ, जब तक कि क़ुर्बानी अपने ज़बह के स्थान तक न पहुँच जाए। फिर तुममें से जो व्यक्ति बीमार हो या उसके सिर में कोई तकलीफ़ हो (और उसके कारण सिर मुँडा ले), तो रोज़े या सदक़ा या क़ुर्बानी में से कोई एक फ़िदया है।

(सूरतुल-बक़रा : 196)। “अश-शर्ह अल-मुम्ति” (7/408) से उद्धरण समाप्त।

तथा देखें : “अल-जामि लि-अहकामिल क़ुरआन” लिल-क़ुर्तुबी (3/292-293).

यदि उस पर कोई क़ुर्बानी अनिवार्य है, तो उसके पास यह विकल्प है कि वह उसे ज़बह करके उस स्थान पर वितरित करे जहाँ निषिद्ध कार्य किया गया था, चाहे वह स्थान हरम की सीमा के अंदर हो या उसके बाहर, या उसे हरम की सीमा के भीतर ज़बह करे और वितरित करे।

का'ब बिन उजरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि : “अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उन्हें इस हाल में देखा कि उनके चेहरे पर जूँ गिर रहे थे, तो आपने कहा : “क्या तुम्हें तुम्हारे सिर की जुएँ कष्ट दे रही हैंॽ उन्होंने कहा : हाँ। इसलिए आपने उन्हें अपना सिर मुंडवाने का आदेश दिया, जबकि वह हुदैबिया में थे। और उनके लिए यह स्पष्ट नहीं हुआ था कि वे वहाँ अपना एहराम खोल देंगे। बल्कि वे मक्का में प्रवेश करने की आशा कर रहे थे। फिर अल्लाह ने फिद्या की आयत उतारी। और अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उसे छह लोगों को खाना खिलाने, या एक भेड़ की क़ुर्बानी देने, या तीन दिन का रोज़ा रखने का आदेश दिया।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1817) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1201) ने रिवायत किया है।

शैख इब्न उसैमीन रहिमहुल्लाह ने कहा :

"जो चीज़ हरम के क्षेत्र के बाहर, जहाँ कोई कारण हो, ज़बह करना और बाँटना जायज़ है, उसे हरम (पवित्र स्थान) के भीतर ज़बह करना और बाँटना जायज़ है। लेकिन इसके विपरीत अनुमति नहीं है।” अश-शर्ह अल-मुम्ति’’ (7/204) से उद्धरण समाप्त।

इसी प्रकार में वह बलि का जानवर (ऊँटनी या गाय) भी शामिल है जो मोहरिम पर उस समय अनिवार्य होता है जब वह प्रथम तहल्लुल से पहले अपनी पत्नी के साथ संभोग कर लेता है :

शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने कहा :

“यदि एहराम की अवस्था में निषिद्ध कार्य हज्ज के दौरान प्रथम तहल्लुल से पहले संभोग करना है, तो उसमें एक ऊँटनी या गाय की बलि अनिवार्य है, जिसे वह उस स्थान पर ज़बह करेगा जहाँ निषिद्ध कार्य किया था, या मक्का में और उसे गरीबों में वितरित कर देगा।" “मजमू’ फतावा इब्न उसैमीन” (22/222) से उद्धरण समाप्त हुआ।

चौथा प्रकार : वह बलि का जानवर है जो हज्ज पूरा करने से रोके जाने के कारण ज़बह किया जाता है। (यानी जब हाजी को कोई रुकावट अपने हज्ज को पूरा करने से रोक दे)।

अल्लाह तआला ने फरमाया :

وَأَتِمُّوا الْحَجَّ وَالْعُمْرَةَ لِلَّهِ فَإِنْ أُحْصِرْتُمْ فَمَا اسْتَيْسَرَ مِنَ الْهَدْيِ

البقرة/196

"तथा अल्लाह के लिए ह़ज्ज और उमरा पूरा करो। फिर यदि तुम रोक दिए जाओ, तो क़ुर्बानी में से जो उपलब्ध हो (कर दो)।” [सूरतुल-बक़रा : 196]

इस प्रकार का हुक्म पिछले प्रकार के हुक्म जैसा ही है, क्योंकि वह अपने क़ुर्बानी के जानवर को उसी स्थान पर ज़बह करेगा जहाँ उसे रोका गया है। क्योंकि जब हुदैबिया के समय नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को मक्का में प्रवेश करने से रोका गया था, तो आपने अपने क़ुर्बानी के जानवर को हरम के बाहर ज़बह किया था।

तथा उसे हरम की सीमा के अंदर भी ज़बह करके वितरित करना जायज़ है।

इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है : “अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) उमरा करने के लिए निकले, तो कुरैश के काफ़िर लोग आपके और का’बा के बीच रुकावट बन गए। इसलिए आपने हुदैबिया में अपने क़ुर्बानी के जानवर को ज़बह किया और अपना सिर मुंडवा लिया।" इसे बुखारी (हदीस संख्या : 4252) ने रिवायत किया है।

इब्ने हजर रहिमहुल्लाह ने कहा :

"कहानी का स्पष्ट अर्थ यह है कि ज़्यादातर लोगों ने अपने क़ुर्बानी के जानवरों को मौके पर ही ज़बह कर दिया, और वे हरम की सीमा के बाहर थे। यह दर्शाता है कि यह जायज़ है, और अल्लाह ही सबसे बेहतर जानता है।" “फ़त्हुल-बारी” (4/11) से उद्धरण समाप्त हुआ।

पाँचवाँ प्रकार : वह बलि का जानवर जो शिकार के बदले में ज़बह किया जाता है। इसे हरम की सीमा के भीतर ही ज़बह करना और वितरित करना अनिवार्य है, अइसे हरम की सीमा के बाहर ज़बह करना पर्याप्त नहीं है।

अल्लाह तआला ने फ़रमाया :

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَقْتُلُوا الصَّيْدَ وَأَنتُمْ حُرُمٌ وَمَن قَتَلَهُ مِنكُم مُّتَعَمِّدًا فَجَزَاءٌ مِّثْلُ مَا قَتَلَ مِنَ النَّعَمِ يَحْكُمُ بِهِ ذَوَا عَدْلٍ مِّنكُمْ هَدْيًا بَالِغَ الْكَعْبَةِ أَوْ كَفَّارَةٌ طَعَامُ مَسَاكِينَ أَوْ عَدْلُ ذَلِكَ صِيَامًا لِّيَذُوقَ وَبَالَ أَمْرِهِ عَفَا اللَّهُ عَمَّا سَلَفَ وَمَنْ عَادَ فَيَنتَقِمُ اللَّهُ مِنْهُ وَاللَّهُ عَزِيزٌ ذُو انتِقَامٍ

المائدة / 95 .

“ऐ ईमान वालो! शिकार को न मारो, जबकि तुम एहराम की स्थिति में हो। तथा तुममें से जो उसे जान-बूझकर मारे, तो चौपायों में से उसी जैसा बदला है जो उसने मारा है, जिसका निर्णय तुममें से दो न्यायप्रिय व्यक्ति करेंगे, जो क़ुर्बानी के रूप में काबा पहुँचने वाली है, या प्रायश्चित के रूप में निर्धनों को खाना खिलाना है, या उसके बराबर रोज़े रखने हैं, ताकि वह अपने किए का कष्ट चखे। अल्लाह ने क्षमा कर दिया जो कुछ हो चुका और जो फिर करे, तो अल्लाह उससे बदला लेगा और अल्लाह सबपर प्रभुत्वशाली, बदला लेने वाला है।” (सूरतुल-मायदा : 95).

इब्ने कसीर रहिमहुल्लाह ने कहा :

"और अल्लाह सर्वशक्तिमान का कथन : هَدْيًا بَالِغَ الْكَعْبَةِ  “काबा तक पहुँचने वाली बलि” का अर्थ है : जो काबा तक पहुँचने वाला हो। इससे अभिप्राय उसका हरम तक पहुँचना है, कि उसे वहाँ ज़बह किया जाए और उसके मांस को हरम के गरीबों में बाँटा जाए। इस संदर्भ में इस पर सर्व सहमति है।" “तफ़सीर इब्न कसीर” (3/194) से उद्धरण समाप्त।

उपर्युक्त बातों से यह स्पष्ट हो जाता है कि जिसे हरम की सीमा के भीतर ज़बह करना निर्धारित किया गया है, उसे हरम की सीमा के बाहर ज़बह करना जायज़ नहीं है। जहाँ तक उस बलि की बात है जिसे हरम की सीमा के बाहर ज़बह करना निर्धारित है, उसे हरम की सीमा के भीतर लाना और ज़बह करना जायज़ है।

जिस व्यक्ति ने अपना हज्ज और उसके कार्यों को पूरा कर लिया, लेकिन क़ुर्बानी के जानवर को हरम की सीमा के बाहर ज़बह किया: तो उसका हज्ज सही है, परंतु उसके लिए अनिवार्य यह है कि उसके बदले एक दूसरा क़ुर्बानी का जानवर हरम की सीमा के भीतर ज़बह करे। अगर वह ख़ुद मक्का नहीं जा सकता, तो वह किसी विशवसनीय व्यक्ति को वकील बना सकता है ताकि वह उसकी ओर से हरम की सीमा के अंदर क़ुर्बानी का जानवर ज़बह करे।

शैख इब्ने बाज़ (अल्लाह उन पर रहम करे) ने कहा : "तमत्तु और क़िरान हज्ज की हदी (बलि का जानवर) केवल हरम की सीमा के भीतर ही ज़बह करना जायज़ है। अगर उसने इसे हरम के बाहर, जैसे अराफ़ात, जद्दा या कहीं और ज़बह कर दिया :  तो वह उसके लिए पर्याप्त नहीं है, भले ही उसका मांस हरम में लाकर वितरित करे। उस व्यक्ति पर हरम की सीमा के भीतर एक दूसरी हदी (क़ुर्बानी का जानवर) ज़बह करना अनिवार्या है, चाहे वह व्यक्ति अज्ञानी हो या ज्ञानी। क्योंकि नही सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी हदी को हरम के क्षेत्र में ज़बह की और फरमाया : “मुझसे अपने हज्ज के कर्मकांड को सीख लो।” इसी प्रकार, आपके सहाबा (साथियों) रज़ियल्लाहु अन्हुम ने भी नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के उदाहरण का अनुसरण करते हुए अपनी हदी हरम में ज़बह की।" “मजमू फतावा इब्न बाज़” (18/31-32) से उद्धरण समाप्त हुआ।

दूसरा :

आपका प्रश्न : (हदी के जानवर को हरम की सीमाओं के भीतर ही क्यों ज़बह किया जाना चाहिए?) का उत्तर यह है कि हदी (क़ुर्बानी) के जानवर को हरम की सीमा के भीतर निम्नलिखित कारणों से ज़बह किया जाना चाहिए :

1- क्योंकि क़ुरआन और सुन्नत में यही आया है, इसलिए उनका पालन करना अनिवार्य है। अल्लाह तआला ने फ़रमाया :

وَمَا كَانَ لِمُؤْمِنٍ وَلَا مُؤْمِنَةٍ إِذَا قَضَى اللَّهُ وَرَسُولُهُ أَمْرًا أَن يَكُونَ لَهُمُ الْخِيَرَةُ مِنْ أَمْرِهِمْ وَمَن يَعْصِ اللَّهَ وَرَسُولَهُ فَقَدْ ضَلَّ ضَلَالًا مُّبِينًا

الأحزاب/36

"तथा किसी ईमान वाले पुरुष और ईमान वाली स्त्री को यह अधिकार नहीं कि जब अल्लाह और उसका रसूल किसी मामले का निर्णय कर दें, तो उनके लिए अपने मामले में कोई अख़्तियार बाक़ी रहे। और जो अल्लाह और उसके रसूल की अवज्ञा करे, वह खुली गुमराही में पड़ गया।" (सूरतुल-अहज़ाब : 36)

तथा अल्लाह तआला ने फ़रमाया :

وَمَا آتَاكُمُ الرَّسُولُ فَخُذُوهُ وَمَا نَهَاكُمْ عَنْهُ فَانتَهُوا وَاتَّقُوا اللَّهَ إِنَّ اللَّهَ شَدِيدُ الْعِقَابِ

الحشر / 7

"और रसूल तुम्हें जो कुछ दें, उसे ले लो और जिस चीज़ से रोक दें, उससे रुक जाओ। तथा अल्लाह से डरते रहो। निश्चय अल्लाह बहुत कड़ी यातना देने वाला है।" (सूरतुल-हश्र : 7)

इन कुर्बानियों का मामला हज्ज के अन्य सभी कर्मकांडों जैसा है, बल्कि सभी इबादतों जैसा है : उनमें अल्लाह और उसके रसूल के आदेश का पालन किया जाएगा, बिना यह पूछे कि "ऐसा क्यों है?"

बुखारी (हदीस संख्या : 315) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 335) ने रिवायत किया है कि आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने उस महिला का खंडन किया जिसने उनसे यह प्रश्न किया था कि : "मासिक धर्म वाली महिला अपने रोज़े तो क़ज़ा करती है, लेकिन नमाज़ क़ज़ा क्यों नहीं करती?" तथा उन्होंने कहा : "हमारे साथ भी ऐसा होता था, फिर हमें रोज़े क़ज़ा करने का आदेश दिया जाता था, लेकिन हमें नमाज़ कज़ा करने का आदेश नहीं दिया जाता था।"

अल्लामा शातिबी रहिमहुल्लाह ने कहा :

"जहाँ तक इबादतों की बात है, तो उनका अपेक्षित कारण केवल आज्ञाकारिता (अनुपालन) है, बिना किसी वृद्धि या कमी के। इसी कारण, जब आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से पूछा गया कि मासिक धर्म वाली महिला रोज़े की क़ज़ा तो करती है, लेकिन नमाज़ की नहीं, तो उन्होंने प्रश्न करने वाली महिला का इस तरह का सवाल करने पर खंडन किया; क्योंकि इबादत को इस प्रकार नहीं बनाया गया है कि आप उसके विशेष कारण को समझें। फिर उन्होंने कहा : 'हमें रोज़े की क़ज़ा का हुक्म दिया जाता था, लेकिन नमाज़ की क़ज़ा का हमें हुक्म नहीं दिया जाता था।' यह बात इस ओर इशारा करती है कि इबादतों में असली चीज़ ‘तअब्बुद’ (यानी बिना तर्क पूछे पालन करना) है, न कि ‘मशक्कत’ (कठिनाई) के आधार पर कारण ढूँढना। इसी तरह, जब इमाम इब्नुल मुसैय्यब से उंगलियों की दियत (खून-बहा) के बारे में पूछा गया कि सभी की बराबर क्यों है, तो उन्होंने कहा : 'ऐ मेरे भतीजे, यह सुन्नत है।' ऐसे उदाहरण बहुत हैं।" ‘’अल-मुवाफ़क़ात’’ (2/526) से उद्धरण समाप्त हुआ।

2- क्योंकि यह हज्ज के अनुष्ठानों में से एक है; और हज्ज मक्का से संबंधित है, और इसके अधिकांश कार्य हरम के क्षेत्र के अंदर अंजाम दिए जाते हैं, इसलिए हदी के जानवर को हरम क्षेत्र के भीतर ज़बह करना, हज्ज की मूल इबादत के, उसके स्थान में, अनुरूप है।

3- हदी के जानवर को हरम के अंदर ज़बह करना और वहीं के गरीबों में बाँटना — यह उस स्थान के गरीबों के लिए राहत और मदद का ज़रिया बनता है। हो सकता है कि यह वही रिज़्क़ (रोज़ी) हो जिसकी गारंटी अल्लाह ने इस पवित्र घर (काबा) के रहने वालों के लिए दी थी, जैसा कि इबराहीम (अलैहिस्सलाम) की दुआ में आया है, अल्लाह सर्वशक्तिमान का फरमान है :

رَّبَّنَا إِنِّي أَسْكَنتُ مِن ذُرِّيَّتِي بِوَادٍ غَيْرِ ذِي زَرْعٍ عِندَ بَيْتِكَ الْمُحَرَّمِ رَبَّنَا لِيُقِيمُوا الصَّلَاةَ فَاجْعَلْ أَفْئِدَةً مِّنَ النَّاسِ تَهْوِي إِلَيْهِمْ وَارْزُقْهُم مِّنَ الثَّمَرَاتِ لَعَلَّهُمْ يَشْكُرُونَ

إبراهيم /37

"ऐ हमारे पालनहार! निःसंदेह मैंने अपनी कुछ संतान को इस घाटी में, जो किसी खेती वाली नहीं, तेरे सम्मानित घर (काबा) के पास, बसाया है। ऐ हमारे पालनहार! ताकि वे नमाज़ क़ायम करें। अतः कुछ लोगों के दिलों को ऐसे कर दे कि उनकी ओर झुके रहें और उन्हें फलों से जीविका प्रदान कर, ताकि वे शुक्रिया अदा करें।" (सूरत इबराहीम : 37)।

देखें : इब्ने कुदामा की "अल-मुग़नी" (5/451)।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

संदर्भ

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर