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हम अपने बच्चों की परवरिश कैसे करें?

प्रश्न: 215167

आप हमें सलाह दें कि हम अपने आचरण को कैसे ऊँचा करें और अपने बच्चों की उसी के अनुसार परवरिश कैसे करें? मैंने कई विद्वानों को कहते सुना है कि अच्छे आचरण सीखने के लिए विद्वानों के साथ बैठना और उनकी संगति करना आवश्यक है... मुझे बहुत चिंता है क्योंकि मेरे आस-पास का माहौल बहुत बुरा है और समाज भी अच्छे आचरण अपनाने में मददगार नहीं है। विशेष रूप से इसलिए भी कि मैंने हाल ही में इस्लाम धर्म स्वीकार किया है और मेरे पास उतना ज्ञान नहीं है जिससे मैं अपने और अपने बच्चों के आचरण को ऊँचा कर सकूँ। मुझे यह भी परेशान करता है कि मेरे बच्चे टीवी से बहुत जुड़े रहते हैं और उसे देखने के बहुत शौकीन हैं, और कुछ रिश्तेदारों व दोस्तों के साथ मेलजोल रखते हैं जो उन पर नकारात्मक असर डालते हैं। उनमें अच्छे नैतिक मूल्य डालने के हमारे प्रयासों के बावजूद, हम पाते हैं कि समाज और दोस्तों का प्रभाव कहीं अधिक है। और अब मैं उलझन में हूँ कि इस समस्या से कैसे निपटूँ। सब्र और नरमी से कोई खास नतीजा नहीं निकला।

क्या अब हमें उनके व्यवहार को सुधारने के लिए सख़्ती और कठोरता का सहारा लेना चाहिए?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा एवं गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है, तथा दुरूद व सलाम की वर्षा हो अल्लाह के रसूल पर। इसके बाद :

हम आपको बधाई देते हैं कि अल्लाह तआला ने आपको इस्लाम का मार्गदर्शन प्रदान क्या। हम अल्लाह तआला से प्रार्थना करते हैं कि वह हमें और आपको इस धर्म पर हमेशा स्थिर रखे, यहाँ तक कि हम उससे इस हाल में मिलें कि वह हमसे राज़ी हो। साथ ही, हम आपको इस बात पर भी बधाई देते हैं कि आप अपने बच्चों की नेक परवरिश करने के लिए लालायित हैं।

जहाँ तक आपके प्रश्न के उत्तर का संबंध है, तो हम यहाँ कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं का उल्लेख कर रहे हैं, जो अल्लाह की तौफ़ीक़ से आपके लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक होंगे :

पहला :

हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि बुरी आदतें अक्सर मन की इच्छाओं और उसकी प्रवृत्तियों के अनुरूप होती हैं। इसलिए, बच्चा बहुत कम प्रभाव या मामूली कारण से भी ऐसी आदतें अपना लेता है। इसके विपरीत, अच्छी आदतें मन को सुधारने और उसे उन इच्छाओं से रोकने का नाम है जो उसे खराब करती हैं और उसके हितों से वंचित करती हैं। अच्छे आचरण मन की इच्छाओं के विपरीत दिशा में चलने का नाम है। यह एक निर्माण प्रक्रिया है जिसके लिए मेहनत और लगातार कोशिश की आवश्यकता होती है।

सही परवरिश का मतलब है कि बच्चे के मन में अच्छी आदतों को इतनी मजबूती से स्थापित करना कि वह बुरी इच्छाओं पर काबू पा सके। इससे उसका मन केवल उन चीजों में ही सुकून पाए जो उसे सुधारती हैं और वह हर उस चीज से घृणा करे जो इन अच्छी आदतों के खिलाफ हों।

एक बच्चे को इन अच्छे आचरणों को अपनाने के लिए, इन्हें उसके लिए प्रिय बनाना ज़रूरी है। यह प्यार जबरदस्ती या सख्ती से नहीं आ सकता, बल्कि इसके लिए निम्नलिखित बातों की आवश्यकता है :

  1. कोमलता और नरमी :

कई नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से कई हदीसें वर्णित हैं जो व्यवहार में कोमलता और नरमी का उपयोग करने की ओर मार्गदर्शन करती हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं :

नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पत्नी आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से वर्णित है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया : "निःसंदेह अल्लाह हर मामले में नरमी को पसंद करता है।" इसे बुखारी (हदीस संख्या: 6024) ने रिवायत किया है।

तथा मुस्लिम (हदीस संख्या : 2592) ने जरीर (रज़ियल्लाहु अन्हु) से रिवायत किया है कि उन्होंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने रिवायत किया कि अपने फ़रमाया : “जो व्यक्ति कोमल व्यवहार से वंचित कर दिया जाता है, वह भलाई से वंचित कर दिया जाता है।”

नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पत्नी आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से वर्णित है कि उन्होंने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से रिवायत किया कि आपने फरमाया : "कोमलता जिस चीज में भी होती है, उसे सुंदर बना देती है और जिस चीज़ भी वह हटा दी जाती है, उसे कुरूप बना देती है।" (सहीह मुस्लिम, हदीस संख्या : 2594)

आयशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) से ही वर्णित है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया : ‘’जब अल्लाह तआला किसी परिवार के लोगों के लिए भलाई चाहता है, तो वह उनमें नम्रता पैदा कर देता है।” (मुसनद अहमद, हदीस संख्या : 24427), और अल्बानी ने इसे 'सहीह जामि अस-सगीर' (हदीस संख्या: 303) में सहीह कहा है।

बच्चों की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है कि वे उस माता-पिता से प्रेम करते हैं जो उनके साथ कोमल, मददगार और उनकी परवाह करने वाला हो, परंतु यथाशक्ति बिना चिल्लाए और क्रोध किए, बल्कि समझदारी और धैर्य के साथ।

बच्चे ऐसी उम्र में होते हैं जिसमें उन्हें खेल और मनोरंजन की आवश्यकता होती है, और साथ ही सही समय पर उन्हें शिक्षा और अनुशासन की भी जरूरत होती है। इसलिए हर चीज़ को संतुलन और मध्यमता के साथ उसका हक़ देना चाहिए।

जब बच्चे अपने नरम स्वभाव वाले माता-पिता से प्यार करते हैं, तो यह प्यार उनके लिए माता-पिता की आज्ञा मानने का एक मजबूत प्रेरक बनता है। इसके विपरीत, नरमी का अभाव और हिंसा व कठोरता की उपस्थिति, घृणा, और परिणामस्वरूप विद्रोह और अवज्ञा, या भय के नियंत्रण को जन्म देगी जो बच्चे में झूठ और धोखे को जन्म देती है।

  1. अनुशासन और दंड का उपयोग :

नरमी से व्यवहार करना, ज़रूरत पड़ने पर सज़ा के उपयोग के खिलाफ नहीं है, लेकिन हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि शिक्षा की प्रक्रिया में सज़ा का इस्तेमाल समझदारी से किया जाना चाहिए। हर गलती पर बच्चे को सजा देना उचित नहीं है। बल्कि, सज़ा वहाँ दी जानी चाहिए जहाँ नरमी का कोई फ़ायदा न हो और जहाँ सलाह, आदेश और निषेध उसे अनुशासित न कर पाएँ।

दंड उपयोगी होना चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि बच्चा बहुत समय टीवी के सामने बिताता है, तो उसके लिए लाभकारी और हानिरहित कार्यक्रम निर्धारित करें। यदि वह निर्धारित समय से अधिक टीवी देखता है, तो एक दिन के लिए टीवी से वंचित कर सकते हैं, और बार-बार उल्लंघन करने पर अवधि बढ़ा सकते हैं। यह इस बात पर निर्भर करता है कि इससे उद्देश्य की पूर्ति होती हो और अच्छे संस्कारों के लिए फ़ायदा होता हो।

  1. अच्छा आदर्श :

माता-पिता को पहले स्वयं उन नैतिकताओं का पालन करना चाहिए, जो वे अपने बच्चों में डालना चाहते हैं। उदाहरण के लिए, यह उचित नहीं कि पिता अपने बच्चे को सिगरेट पीने से मना करे, जबकि वह स्वयं धूम्रपान करता हो।

इसीलिए एक सलफ़ (पूर्वज) ने अपने बच्चों के शिक्षक से कहा : "मेरे बच्चों को सुधारने का पहला कदम अपना सुधार होना चाहिए, क्योंकि उनकी कमियाँ आपकी कमियों से जुड़ी हैं। उनकी नज़र में अच्छा वही है जो आप करते हैं, और बुरा वह है जो आप छोड़ देते हैं।" (तारीख दमिश्क, 38/271-272)

  1. अच्छा वातावरण :

यह एक ऐसा वातावरण है जो अच्छे कर्मों की प्रशंसा करता है और उनके करने वालों का सम्मान करता है, जबकि बुरे कर्मों और उनके करने वालों की निंदा करता है। आज के समय में यह वातावरण अक्सर अनुपस्थित होता है, लेकिन शारीरिक, मानसिक और आर्थिक प्रयासों से, हम – इन शा अल्लाह - इसे बना सकते हैं।

उदाहरण के लिए, यदि मुस्लिम परिवार ऐसे मोहल्ले में रहता है जहाँ कोई मुस्लिम परिवार नहीं है, तो इस परिवार को ऐसे मोहल्ले या शहर में जाने का भरसक प्रयास करना चाहिए जहाँ अधिक मुस्लिम रहते हों, या ऐसे मोहल्ले में जाना चाहिए जहाँ मस्जिदें हों, या ऐसे इस्लामी केंद्र हों जो मुस्लिम बच्चों की देखभाल में सक्रिय हों।

इसी तरह, अगर बच्चे की किसी विशेष खेलकूद या संस्कृति में रुचि है, तो परिवार को अपने बच्चे के लिए ऐसे उपयुक्त खेलकूद या सांस्कृतिक क्लब ढूँढ़ने चाहिए जो प्रतिबद्ध मुसलमानों द्वारा चलाए जाते हों और जहाँ अक्सर ऐसे मुस्लिम परिवार आते हों जो अपने बच्चों और उनके उचित पालन-पोषण के बारे में ज़्यादातर मामलों में चिंतित रहते हों। जैसा कि आपने कहा, सामाजिक मेलजोल एक अहम भूमिका निभाता है। इसलिए इस मेलजोल के कारण आप जिन नकारात्मक प्रभावों से जूझ रहे हैं, उन्हें मुस्लिम परिवारों के साथ सकारात्मक मेलजोल रखकर कम करने की कोशिश करें।

अगर पिता सुंदर कपड़ों, स्वादिष्ट खाने और आरामदायक आवास पर पैसा खर्च करता है, तो उसे अच्छे आचरण प्राप्त करने पर भी खर्च करना चाहिए, और सर्वशक्तिमान अल्लाह के पास सवाब की आशा करनी चाहिए।

दूसरा : आपको लगातार दुआ करनी चाहिए, विशेष रूप से उन समयों में जब दुआएँ कबूल होती हैं, जैसे रात का आखिरी तीसरा हिस्सा, सजदे के दौरान और शुक्रवार को। इसलिए अधिक से अधिक अल्लाह से दुआ करें कि वह आपके बच्चों को सुधार दे और उन्हें सीधे रास्ते पर ले आए। क्योंकि बच्चों के लिए दुआ करना अल्लाह के नेक बंदों की खूबियों में से है। अल्लाह तआला फ़रमाता है:

وَالَّذِينَ يَقُولُونَ رَبَّنَا هَبْ لَنَا مِنْ أَزْوَاجِنَا وَذُرِّيَّاتِنَا قُرَّةَ أَعْيُنٍ وَاجْعَلْنَا لِلْمُتَّقِينَ إِمَامًا

[الفرقان:74].

"और वे लोग जो कहते हैं : 'ऐ हमारे रब! हमें हमारी पत्नियों और हमारी संतानों से आँखों की ठंडक प्रदान कर और हमें परहेज़गारों का अगुआ बना।'" (सूरतुल-फुरकान : 74)

शैख अब्दुर्रहमान अस-सा’दी रहिमहुल्लाह ने कहा :

“आँखों की ठंडक” का अर्थ है कि उनके द्वारा हमारी आँखें ठंडी हों। जब हम उनके हालात और गुणों का जायज़ा लेते हैं, तो उनकी उच्च आकांक्षाओं और उनके ऊँचे दर्जों से हमें पता चलता है कि उनकी आँखें तब तक ठंडी नहीं होतीं जब तक वे अपनी संतानों को अल्लाह के आज्ञाकारी, ज्ञान रखने वाले और अमल करने वाले न देख लें। यह दुआ जिस तरह उनकी पत्नियों और संतान की सुधार के लिए है, वैसे ही अपने लिए भी है; क्योंकि उनका लाभ अंततः खुद उन्हीं को पहुँचता है। इसीलिए उन्होंने इसे अपने लिए अल्लाह से उपहार (हिबा) के रूप में माँगा, और कहा: “हब लना” (हमें दे दे)। बल्कि उनकी यह दुआ आम मुसलमानों के लिए भी लाभदायक है; क्योंकि जिनका ज़िक्र हुआ है, उनके सुधार से बहुत से और लोग, जो उनसे जुड़े हैं, सुधरते हैं और उनसे फ़ायदा पाते हैं।” उद्धरण समाप्त हुआ।" "तैसीर अल-करीम अल-मन्नान फ़ी तफ़सीर कलामिर-रहमान" (पृष्ठ : 587)

अधिक जानकारी के लिए प्रश्न संख्या (4237) और (10016) देखें।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

संदर्भ

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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