शनिवार 18 शव्वाल 1445 - 27 अप्रैल 2024
हिन्दी

वे स्थान जहाँ नमाज़ पढ़ना वर्जित है

प्रश्न

क्या आप मुझे वे सात निषिद्ध स्थान बता सकते हैं जहाँ नमाज़ पढ़ना जायज़ नहीं हैॽ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

शायद आपका मतलब वह हदीस है जिसे तिरमिज़ी (हदीस संख्या : 346) और इब्ने माजा (हदीस संख्या : 746) ने इब्ने उ़मर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि : “अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सात स्थानों में नमाज़ पढ़ने से मना किया है : घूर यानी कूड़े के ढेर पर, बूचड़खाने में, क़ब्रिस्तान में, बीच सड़क पर, स्नान घर में, ऊंट के बाड़ों में और अल्लाह के घर काबा की छत पर।” लेकिन यह हदीस ज़ईफ़ अर्थात अप्रामाणिक है।

इमाम तिरमिज़ी रहिमहुल्लाह यह हदीस वर्णन करने के पश्चात कहते हैं : “इब्ने उ़मर से वर्णित इस हदीस की इस्नाद (संचरण की श्रृंखला) इतनी मज़बूत नहीं है।”

इसी तरह अबू हातिम राज़ी ने भी इसे ज़ईफ़ (कमज़ोर) क़रार दिया है, जैसा कि उनके बेटे की पुस्तक "अल-इलल्" (1/148) में है। तथा इब्ने जौज़ी ने "अल-इलल् अल-मुतनाहियह" (1/399) में, बूसीरी ने "मिस्बाह अज़्-ज़ुजाजह" (1/95) में, हाफिज़ इब्ने ह़जर ने "अत-तल्खी़स (1/531-532) में और अलबानी ने "अल-इर्वा" (1/318) में इसे ज़ईफ़ कहा है।

इसके आधार पर, इस ज़ईफ़ हदीस को इन स्थानों में नमाज़ पढ़ने की मनाही के लिए प्रमाण बनाना सही (मान्य) नहीं है। सिवाय इसके कि इन में से कुछ स्थानों में नमाज़ पढ़ने की मनाही अन्य सहीह हदीसों से साबित है। जैसे कि वह हदीस है जिसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 492), तिरमिज़ी (हदीस संख्या : 317) और इब्ने माजा (हदीस संख्या : 745) ने अबू सईद ख़ुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णन किया है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : “क़ब्रिस्तान और स्नानघर को छोड़ कर पूरी पृथ्वी मस्जिद (सजदे की जगह) है।”

शैख़ुल-इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह कहते हैं : “इस हदीस की इस्नाद "जय्यिद" (अचछी) है।” ("इक़्तिज़ाउस सिरातिल मुस्तकी़म" पृ. 332) तथा शैख़ अलबानी ने इसे "अल-इर्वा" (1/320) में सहीह क़रार दिया है।

इन स्थानों में से कुछ के संबंध में विस्तार से चर्चा करने की आवश्यकता है :

1 - घूर (कूड़े-करकट का ढेर) :

घूर वह स्थान है जहाँ कूड़ा-करकट डाला जाता है। चूंकि इन स्थानों में अशुद्धता हो सकती है, इसलिए इनकी अशुद्धता के कारण वहाँ नमाज़ पढ़ना मना है।

यदि उस स्थान की पवित्रता को मान लिया जाए, फिर भी यह एक गंदी जगह है, जिसमें एक मुसलमान के लिए सर्वशक्तिमान अल्लाह के सामने खड़ा होना उचित नहीं है।

2 - बूचड़खाना :

यह वह स्थान है जहाँ जानवरों का वध किया जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह स्थान अशुद्धियों - जैसे रक्त - और गंदगियों से दूषित होता है।

लेकिन यदि बूचड़खाने में कोई साफ और पाक जगह हो, तो वहाँ नमाज़ पढ़ना जायज़ है।

3 - क़ब्रिस्तान :

यह कब्रों का स्थान है, और यहाँ नमाज़ पढ़ना मना है, ताकि ऐसा न हो कि इसे क़ब्रों की पूजा करने के बहाने के रूप में इस्तेमाल किया जाए, या क़ब्रों की पूजा करने वालों की समानता अपनाई जाए।

लेकिन जनाज़ा की नमाज़ को इससे अलग रखा गया है, जिसे क़ब्रिस्तान में पढ़ना सही है। क्योंकि यह बात साबित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मस्जिद की सफाई करने वाली एक महिला की नमाज़े जनाज़ा उसके अपनी क़ब्र में दफ़नाए जाने के बाद पढ़ी थी। (इस हदीस को बुखारी (हदीस संख्या : 460) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 956) ने रिवायत किया है।)

जिन स्थानों में नमाज़ पढ़ने से मना किया गया है उनमें : वह मस्जिद भी शामिल है जो क़ब्र के ऊपर बनाई गई हो, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मुतावतिर हदीसों से साबित है कि आपने उन लोगों पर लानत (शाप) भेजी है जिन्होंने क़ब्रों को मस्जिदें बना लीं, तथा आपने ऐसा करने से मना किया है।

शैख़ुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह कहते हैं :

“नबियों, सदाचारियों, राजाओं और अन्य लोगों की क़ब्रों पर बनी इन मस्जिदों को ध्वस्त करके अन्यथा किसी और तरीके से हटा दिया जाना चाहिए। यह एक ऐसा मामला है जिसके बारे में मुझे जाने-माने विद्वानों के बीच किसी भी प्रकार के मतभेद होने की जानकारी नहीं है और मेरी जानकारी के अनुसार इनमें नमाज़ पढ़ना बिना किसी मतभेद के मकरूह है। तथा इसके बारे में वर्णित मनाही (निषेध) और ला'नत (शाप) के कारण और अन्य हदीसों के कारण, हमारे मत के प्रत्यक्ष दृष्टिकोण के अनुसार (यहाँ नमाज़ पढ़ना) मान्य नहीं है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

"इक़्तिज़ाउस सिरातिल मुस्तकी़म" (पृ. 330)

4 - सड़क के बीचोबीच :

यह वह सड़क है जिसपर लोग चलते हैं। लेकिन जहाँ तक ​​सुनसान (अप्रयुक्त) सड़क, या सड़क के किनारे का सवाल है जिसपर लोग नहीं चलते हैं, तो उसपर नमाज पढ़ना मना नहीं है।

बीच सड़क पर नमाज पढ़ने पर रोक का कारण यह है कि इससे लोगों के लिए रास्ता संकरा हो जाता है और लोगों को गुजरने से रोक दिया जाता है तथा इससे स्वयं नमाज़ पढ़ने वाले का ध्यान भटक जाता है, जिससे उसके लिए अशांति पैदा होती है जो उसे पूरी तरह से नमाज़ अदा करने से रोक देती है।

बीच सड़क पर नमाज़ पढ़ना मकरूह (नापसंदीदा) है, तथा यदि वह लोगों को गुज़रने से रोककर नुक़सान पहुँचता है या नमाज़ पढ़ने वाला दुर्घटनाओं आदि के कारण स्वयं को नुक़सान पहुँचाता है, तो यह ह़राम भी हो सकता है।

लेकिन आवश्यकता या ज़रूरत की स्थिति इससे अपवाद रखती है, जैसे कि मस्जिद भर जाने की स्थिति में जुमा या ईद की नमाज़ (रास्ते में) पढ़ना। और मुसलमानों का इसी पर अमल चला आ रहा है।

5 - स्नानघर :

यह स्नान करने की सर्वाज्ञात जगह है।

अबू सईद ख़ुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित ऊपर गुज़र चुकी हदीस में स्नानघर में नमाज़ पढ़ने की मनाही साबित है, और इस हदीस से पता चलता है कि उसमें नमाज़ पढ़ना अमान्य है।

स्नानघर में नमाज पढ़ने से मना करने का कारण यह है कि उसमें शैतान पनाह लेते हैं और उसमें गुप्तांग प्रकट होते हैं।

हदीस का प्रत्यक्ष अर्थ यह है कि मनाही में वह सब कुछ शामिल हैं जो "ह़म्माम" (बाथरूम/स्नानघर) नाम के अंतर्गत आता है। अतः जिस स्थान पर स्नान किया जाता है, या जहाँ कपड़े रखे जाते हैं, उनके बीच कोई अंतर नहीं है।

जब स्नानघर में नमाज़ पढ़ना मना है, तो शौचालय (वह स्थान जहाँ आदमी अपनी आवश्यकता पूरी करता है अर्थात् शौच करता है।) में नमाज़ पढ़ने की मनाही अधिक उपयुक्त है। शौचालय में नमाज़ पढ़ने की मनाही का उल्लेख इसलिए नहीं किया गया है, क्योंकि प्रत्येक समझदार व्यक्ति जो यह सुनता है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने स्नानघर में नमाज़ पढ़ने से मना किया है, तो वह यह जान जाता है कि शौचालय में नमाज़ पढ़ना इस निषेध के अधिक उपयुक्त है।

इसीलिए शैख़ुल-इस्लाम इब्ने तैमिय्यह रहिमहुल्लाह ने कहा है :

“शौच करने के स्थानों (शौचालयों) के संबंध में कोई विशिष्ट मूलपाठ वर्णित नहीं है [अर्थात् उसमें नमाज़ पढ़ने की मनाही के बारे में] क्योंकि शौचालय का मामला मुसलमानों के लिए इतना स्पष्ट था कि इसके संबंध में किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं थी।” उद्धरण समाप्त हुआ।

“मजमूउल-फतावा” (25/240)

6 - ऊँट के बाड़े :

ये वे स्थान हैं जहाँ ऊँट रहते हैं और इसमें वह स्थान भी शामिल है जहाँ पानी पीकर लौटने के बाद ऊँट इकट्ठा होते हैं।

यहाँ नमाज़ पढ़ने से रोकने का कारण यह है कि ऊँट के बाड़े शैतानों की शरणस्थली हैं। और यदि ऊँट उनमें मौजूद हैं, तो वे नमाज़ पढ़ने वाले के ध्यान को भ्रमित करते हैं और उसे पूरी विनम्रता के साथ नमाज़ पढ़ने से रोकते हैं, क्योंकि उसे डर लगा रहता है कि वे उसे नुक़सान पहुँचा सकते हैं।

7 - अल्लाह के घर काबा की छत पर :

जिन विद्वानों ने काबा की छत पर नमाज़ पढ़ना से मना किया है, उनका कहना है कि नमाज़ी का मुख क़िबला की दिशा में नहीं होगा, बल्कि वह उसके कुछ ही हिस्से की ओर मुँह करने वाला होगा, क्योंकि काबा का कुछ हिस्सा उसकी पीठ के पीछे होगा।

जबकि अन्य विद्वानों का मानना है कि काबा के ऊपर नमाज़ पढ़ना सही है, क्योंकि यह बात साबित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मक्का पर विजय के वर्ष में उसके अंदर नमाज़ पढ़ी थी। अतः उसके ऊपर नमाज़ पढ़ना उसी के समान है। हालाँकि, वास्तविकता यह है कि वर्तमान समय में काबा की छत के ऊपर नमाज़ पढ़ना आसान नहीं है।

जिन स्थानों पर नमाज़ पढ़ना प्रतिबंधित है उनमें से एक स्थान यह भी है :

8 - कब्ज़ा कर ली गई भूमि :

विद्वानों की सर्वसम्मति के अनुसार, जिस व्यक्ति ने कोई भूमि हड़प कर लिया (बलपूर्वक क़ब्ज़ा कर लिया), तो उसके लिए वहाँ नमाज़ पढ़ना ह़राम है।

इमाम नववी रहिमहुल्लाह ने “अल-मजमू'” (3/169) में कहा :

''विद्वानों की सर्वसहमति के अनुसार हड़पी (बलपूर्वक क़ब्ज़ा की) गई भूमि पर नमाज़ पढ़ना ह़राम है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

तथा यह भी देखें : इब्न उसैमीन की “अश-शर्ह अल-मुम्ते'” (2/237-260), "शर्ह बुलूग़ुल मराम" (1/518-522), "ह़ाशियह इब्ने क़ासिम" (1/537-547).

और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर