गुरुवार 18 रमज़ान 1445 - 28 मार्च 2024
हिन्दी

रोज़े और ईद में देशवासियों का विरोध करना जाइज़ नहीं है

प्रश्न

हमारे शहर में धर्मनिष्ठ (दीन के पाबंद) भाईयों का एक समूह है किंतु वे कुछ मामलों में हमारा विरोध करते हैं, उन्हीं में से उदाहरण के तौर पर रमज़ान का रोज़ा रखना है। चुनाँचे वे लोग रोज़ा नहीं रखते हैं यहाँ तक कि नग्न आँखों से चाँद को देख लें, और कभी कभार ऐसा होता है कि हम रमज़ान के महीने में उनसे एक या दो दिन पहले रोज़ा रखते हैं, तथा वे लोग ईदुल फित्र के एक या दो दिन बाद रोज़ा रखना बंद करते हैं, और जब भी हम उनसे ईद के दिन के रोज़े के बारे में पूछते हैं तो वे कहते हैं कि हम उस समय तक रोज़ा नहीं रखते और रोज़ा रखना बंद नहीं करते जब तक कि नग्न आँखों से चाँद न देख लें। क्योंकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : “चाँद देख कर रोज़ा रखो और चाँद देख कर रोज़ा रखना बंद करो।” लेकिन वे उपकरणों के द्वारा चाँद के देखे जाने की प्रामाणिकता को स्वीकार नहीं करते हैं जैसाकि आप जानते हैं। ज्ञात रहे कि वे ईदैन की नमाज़ पढ़ने के समय के बारे में हमारा विरोध करते हैं और अपने चाँद देखने के हिसाब से हमारी ईद के बाद ही ईद की नमाज़ पढ़ते हैं। इसी तरह ईदुल अज़्हा में ईद की क़ुर्बानी और अरफात में ठहरने के बारे में हमारा विरोध करते हैं, और ईदुल अज़्हा के दो दिन बाद ईद करते हैं अर्थात वे अपने जानवरों की क़ुर्बानी सभी मुसलमानों के क़ुर्बानी करने के बाद करते हैं। तो क्या जो वे लोग कर रहे हैं वह ठीक है। अल्लाह तआला आपको सर्वश्रेष्ठ बदला दे।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

उनके ऊपर अनिवार्य है कि वे लोगों के साथ रोज़ा रखें, लोगों के साथ रोज़ा रखना बंद करें और अपने देश में मुसलमानों के साथ ईदैन की नमाज़ पढ़ें, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : “ चाँद देखकर रोज़ा रखो और चाँद देखकर रोज़ा रखना बंद करो, यदि तुम्हारे ऊपर बदली हो जाये तो अवधि पूरी करो।” (बुखारी व मुस्लिम). इस से अभिप्राय रोज़ा रखने और रोज़ा तोड़ने का आदेश देना है यदि नग्न आँखों के द्वारा या उन उपकरणों के द्वारा जो चाँद देखने पर आँख के लिए सहायक होते हैं चाँद का देखा जाना प्रमाणित हो जाए, क्योंकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : “ रोज़ा उस दिन है जिस दिन तुम रोज़ा रखते हो और इफ्तार (यानी रोज़ा रखना बंद करने) का दिन वह है जिस दिन तुम रोज़ा तोड़ देते हो और क़ुर्बानी का दिन वह है जिस दिन तुम क़ुर्बानी करते हो।” इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 2324) और तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 697) ने रिवायत किया है और अल्बानी ने सहीह तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 561) में सहीह कहा है।

और अल्लाह तआला ही तौफीक़ प्रदान करने वाला है, तथा अल्लाह तआला हमारे नबी मुहम्मद, उनकी संतान और साथियों पर दया और शांति अवतरित करे।

स्रोत: इफ्ता और वैज्ञाननिक अनुसंधान की स्थायी समिति 10/94