वयस्कों से संबंधित कुछ नियम

प्रश्न: 104256

मेरा एक 15 वर्षीय भाई है। मैं चाहता हूँ कि आप उसे एक पत्र लिखें जिसमें उसे उसकी इस उम्र से संबंधित इस्लामी नियमों के बारे में बताएँ — जैसे : यौवन (बालिग़ होने) के बाद के अहकाम, पवित्रता, स्वप्नदोष (एह्तिलाम), पुरुषों से संबंधित अन्य बातें और उसकी उम्र से संबंधित सभी बातें। क्योंकि मुझे शक है कि वह इन बातों को ठीक से नहीं समझता और मुझे डर है कि वह बिना पवित्र हुए नमाज़ न पढ़ रहा हो। इसके अलावा कृपया उसे कुछ नसीहतें भी करें, तथा आपसे अनुरोध है कि प्रार्थना करें कि अल्लाह उसे एक लाभकारी मित्र प्रदान करे। अल्लाह आपको सर्वोत्तम प्रतिफल प्रदान करे।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा एवं गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है, तथा दुरूद व सलाम की वर्षा हो अल्लाह के रसूल पर। इसके बाद :

हम अल्लाह सुब्हानहु व तआला से प्रार्थना करते हैं कि वह आपके भाई और सभी मुस्लिम युवाओं को सीधा मार्ग दिखाए, उन्हें सद्बुद्धि दे, उनके दिलों को खोल दे और उनके काम आसान कर दे।

किशोरावस्था, इंसान के जीवन का सबसे नाज़ुक और खतरनाक दौर होता है। क्योंकि यह वह समय होता है जब शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और यौन परिवर्तन होते हैं। शैतान इस अवस्था में उसे विशेष रूप से लुभाने के लिए उत्सुक रहता है।

हमने जब इस विषय में शिक्षा विशेषज्ञों की राय देखी, तो पाया कि वे निम्नलिखित बातों की सलाह देते हैं :

  1. युवक को अच्छे और नेक साथियों से जोड़ने का विशेष ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि नेक साथियों की संगति अच्छाई की ओर प्रेरित करती है और साथी खींचने वाला होता है। जैसा कि कहा गया है:

"किसी इंसान के बारे में जानना हो तो उसके साथी को देखो, क्योंकि हर साथी अपने साथी की चाल चलता है।"

इसलिए उसे चाहिए कि वह नेक और धार्मिक युवाओं को खोजे, ताकि उनकी सोहबत में रहे, उनके साथ अल्लाह की इबादत करे, उनके साथ जमाअत की नमाज़ में शामिल हो और उनके साथ लाभदायक ज्ञान प्राप्त करे।

हम अल्लाह तआला से प्रार्थना करते हैं कि वह आपके भाई को नेक और सच्चे साथियों की संगति नसीब करे जो उसे भलाई की राह पर चलने में मदद करें और उसे ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करें।

  1. उसका समय धर्म और दुनिया के फायदेमंद और लाभकारी कामों में व्यस्त रखने का पूरा ध्यान रखा जाए। उसे खाली न छोड़ा जाए, क्योंकि इस उम्र में खालीपन खराबी और बिगाड़ के सबसे बड़े कारणों में से एक है। जैसे कि उसे अपने आस-पास किसी सार्थक सामूहिक गतिविधि में शामिल करें, जहाँ वह लाभ उठा सके और दूसरों को भी लाभान्वित कर सके।
  2. यदि संभव हो तो जल्द से जल्द उसका विवाह कराने की पहल की जाए, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया: "ऐ नवजवानों के समूह! जो शादी का सामर्थ्य रखता हो, उसे शादी कर लेनी चाहिए। क्योंकि यह नज़र को नीची रखने और शर्मगाह की हिफाज़त करने में ज़्यादा सहायक है। जो समर्थ न हो, वह रोज़ा रखे, क्योंकि यह उसके लिए एक ढाल है।" इसे बुखारी (हदीस संख्या : 5066) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 3464) ने रिवायत किया है।
  3. उसकी भलाई, सफलता और सही मार्ग पर चलने के लिए खूब दुआ करें।
  4. उसे नेकियों और अल्लाह की आज्ञाकारिता के कार्य करने, तथा हराम व निषिद्ध, संदिग्ध और नापसंद कामों से दूर रहने के लिए प्रेरित करें।
  5. उसे आधुनिक तकनीकी साधनों (अर्थात इंटरनेट आदि) का गलत तरीक़े से इस्तेमाल करने की इजाज़त न दी जाए, और जब तक बहुत ज़रूरी न हो, उसे इनसे दूर ही रखा जाए। उदाहरण के तौर पर, उसे अकेले किसी बंद कमरे में इंटरनेट चलाने की अनुमति न दी जाए, बल्कि ऐसा प्रबंध किया जाए कि कंप्यूटर या मोबाइल जैसे उपकरण घर के किसी आम स्थान पर रखें जाएं, ताकि बच्चा अकेले उन चीज़ों को न देख सके जो देखना उचित नहीं है।

ये इस संबंध में कुछ उपयोगी दिशानिर्देश हैं।

जहाँ तक यौवन प्राप्त कर चुके व्यक्ति पर लागू होने वाले धार्मिक दायित्वों (शरई फराइज़) का प्रश्न है, उन पर एक फतवे या उत्तर में विस्तार से चर्चा करना संभव नहीं है। लेकिन हम यहाँ उनमें से सबसे महत्वपूर्ण दायित्वों की ओर संकेत करेंगे और फिर प्रश्नकर्ता को कुछ पुस्तकों का संदर्भ देंगे जिनसे वह इस संबंध में लाभ उठा सकता है। हम कहते हैं :

पहला :

जैसे ही कोई व्यक्ति बालिग़ होता है, उसपर इस्लामी शरीअत के सभी नियमों का पालन करना ज़रूरी हो जाता है, यानी अब उसे आदेशों का पालन करना चाहिए और निषेधों से बचना चाहिए। उस पर नमाज़ पढ़ना, रमज़ान के रोज़े रखना, ज़कात अदा करना यदि वह इसके योग्य है, तथा अल्लाह के घर का हज्ज करना अगर वह उसका सामर्थ्य रखता है, फ़र्ज़ (अनिवार्य) हो जाता है।

चूँकि नमाज़ तहारत (पाकी) के बगै़र सही नहीं होती, इसलिए जो व्यक्ति शरई ज़िम्मेदारियों की बाध्यता की उम्र को पहुँच चुका है, उसके लिए उसके नियमों को सीखना अनिवार्य है, जैसा कि अल्लाह सर्वशक्तिमान का फरमान है :

إِذَا قُمْتُمْ إِلَى الصَّلَاةِ فَاغْسِلُوا وُجُوهَكُمْ وَأَيْدِيَكُمْ إِلَى الْمَرَافِقِ وَامْسَحُوا بِرُءُوسِكُمْ وَأَرْجُلِكُمْ إِلَى الْكَعْبَيْنِ

المائدة: 6

"जब तुम नमाज़ के लिए उठो, तो अपने चेहरों को और अपने हाथों को कुहनियों समेत धो लो और अपने सिरों का मसह़ करो तथा अपने पाँवों को टखनों समेत (धो लो)।" (सूरतुल-मायदा : 6)

अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : "जिसने वुज़ू तोड़ दिया उसकी नमाज़ उस वक़्त तक क़बूल नहीं होती जब तक वह वुज़ू न कर ले।" एक आदमी ने पूछा : "वुज़ू टूटने से आपका मतलब क्या है, ऐ अबू हुरैरा?" उन्होंने फ़रमाया: "फुसा या ज़ुरात अर्थात: धीमी आवाज़ के साथ हवा का निकलना या तेज़ आवाज़ के साथ हवा का निकलना।" (सहीह बुख़ारी, हदीस संख्या : 135)

इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है, उन्होंने कहा: मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को यह कहते सुना : "बिना पवित्रता के नमाज़ स्वीकार नहीं होती, और न ही अवैध रूप से प्राप्त किए गए धन से दान।" (सहीह मुस्लिम, हदीस संख्या : 535)

वुज़ू के तरीके का विवरण प्रश्न संख्या : (11497) में बयान किया जा चुका है।

इसी तरह जनाबत (स्वप्नदोष या यौन संबंध) के बाद ग़ुस्ल के नियम प्रश्न संख्या : (10790) और (2648) में देखे जा सकते हैं।

वुज़ू तोड़ने वाली चीज़ें प्रश संख्या : (14321) और (11591) में देखी जा सकती हैं।

यौवन की अवस्था में पहुँचने पर व्यक्ति के साथ होने वाली चीज़ों में जघन क्षेत्र के आसपास और बगलों के नीचे मोटे बालों का उगना शामिल है। इन मामलों के संबंध में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत है कि बगल के बाल उखाड़े जाएँ और जँघा के बाल मुंडाए जाएँ। इसका वर्णन प्रश्न संख्या : (26266), (9037) और (1177) में किया जा चुका है।

दूसरा :

जब किसी मुकल्लफ (शरई जिम्मेदारियों के लिए बाध्य  व्यक्ति) पर कोई काम वाजिब हो जाए, तो उस पर उस काम के शरई अहकाम (इस्लामी नियम) को सीखना भी वाजिब हो जाता है, क्योंकि कोई भी इंसान किसी हुक्म को सही तरीक़े से तभी अदा कर सकता है जब वह उसे समझे और उसके नियमों को जाने।

इमाम अल-क़राफी रहिमहुल्लाह अपनी पुस्तक “अन्वारुल बुरूक़” (2/148) में लिखते हैं :

"इमाम ग़ज़ाली ने 'एह्याऊ उलूमुद्दीन' में और इमाम शाफ़ेई ने 'अल-रिसालह' में इस पर इज्मा (सर्वसम्मति) बयान की है कि: किसी भी मुकल्लफ (शरई जिम्मेदारियों के लिए बाध्य व्यक्ति) के लिए यह जायज़ नहीं कि वह किसी अमल को अंजाम दे जब तक वह यह न जान ले कि उस अमल के बारे में अल्लाह का क्या हुक्म है।

जो व्यक्ति ख़रीद-बिक्री करता है, उस पर वाजिब है कि वह सीखे कि अल्लाह ने बिक्री के संबंध में क्या निर्दिष्ट और निर्धारित किया है। जो किराए पर कुछ देता है, उसे सीखना चाहिए कि अल्लाह ने पट्टे (इजारा) के संबंध में क्या निर्धारित किया है। जो किसी को व्यापार के लिए पूँजी देता है, उसे क़िराज़ (मुदारबा) के बारे में अल्लाह के आदेश को सीखना चाहिए। जो नमाज़ पढ़ता है, उस पर वाजिब है कि वह उस नमाज़ के संबंध में अल्लाह के आदेश को सीखे। यही बात तहारत (शुद्धि) और सभी शब्दों और कार्यों पर लागू होती है। अतः जिसने ज्ञान प्राप्त किया और उस ज्ञान के मुताबिक़ अमल किया, उसने दो बार अल्लाह की आज्ञा का पालन किया। और जिसने न ज्ञान प्राप्त किया, न अमल किया, उसने दो बार अल्लाह की अवज्ञा की। जिसने ज्ञान प्राप्त किया, लेकिन उसके अनुसार अमल नहीं किया, तो उसने एक बार आज्ञा पालन किया और एक बार अवज्ञा की।" उद्धरण समाप्त हुआ।

शरई कर्तव्यों को सीखना उस व्यक्ति के लिए आसान और सुलभ है, जिसके लिए अल्लाह इसे सुलभ बना दे। अतः हर इंसान को लाभकारी ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए और उस पर अमल करना चाहिए, तथा अपने पालनहार से सफलता और मार्गदर्शन के लिए दुआ करते रहना चाहिए।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

संदर्भ

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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