मंगलवार 7 शव्वाल 1445 - 16 अप्रैल 2024
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क्या रोज़े के फ़िदया में गरीब लोगों को सूप (शोरबा) देना पर्याप्त हैॽ

प्रश्न

मैंने अपनी पत्नी की ओर से फ़िदया देने का इरादा किया, जो पिछले रमज़ान में रोज़ा रखने में सक्षम नहीं थी। इसलिए मैंने एक ऐसे व्यक्ति को, जो हमारे क्षेत्र में एतिकाफ़ के दौरान लोगों के लिए इफ़्तार का इंतज़ाम करता है, इतने पैसे दिए – जो तीस लोगों को वास्तविक भोजन खिलाने के लिए पर्याप्त था -, लेकिन पर्याप्त खाद्य पदार्थ उपलब्ध होने के कारण, उसने पैसे का उपयोग रोज़ेदारों के लिए मिर्ची सूप बनाने के लिए करने का फैसला किया, जो कि उबले हुए मांस के साथ एक हल्का, गर्म (मसालेदार) सूप होता है। क्या इसे फ़िदया माना जा सकता है, क्योंकि वास्तविक खाना नहीं दिया गया था। मतलब यह कि यह भाई सूप को भोजन नहीं मानता है। अगर इसे फ़िदया नहीं माना जाता है, तो मुझे क्या करना चाहिएॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सर्व प्रथम :

यदि आपकी पत्नी किसी बीमारी के कारण रोज़ा रखने में सक्षम नहीं थी और उसके उस बीमारी से ठीक होने की आशा थी तथा उसके लिए भविष्य में उन रोज़ों की क़जा करना संभव था, तो ऐसी स्थिति में उसे खाना खिलाने (यानी फ़िदया देने) की ज़रूरत नहीं है, तथा उसका खाना खिलाना उसके लिए पर्याप्त (मान्य) नहीं होगा, बल्कि उसके लिए रोज़े की क़ज़ा करना अनिवार्य है।

दूसरी बात :

यदि कोई व्यक्ति वृद्धावस्था के कारण, या ऐसी बीमारी के कारण जिससे ठीक होने की कोई उम्मीद नहीं है, रोज़ा रखने में असमर्थ है, तो वह हर दिन के बदले एक ग़रीब व्यक्ति को खाना खिलाएगा; क्योंकि अल्लाह का फरमान है :

وَعَلَى الَّذِينَ يُطِيقُونَهُ فِدْيَةٌ طَعَامُ مِسْكِينٍ  [البقرة : 184]

“और जो लोग (कठिनाई से) इसकी ताक़त रखते हैं, फ़िदया (छुड़ौती) में एक गरीब को खाना दें।" (सूरतुल बक़रा : 184)

बुखारी (हदीस संख्या : 4505) ने इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि उन्होंने फरमाया : यह आयत मंसूख़ (जिसका हुक्म निरस्त कर दिया गया हो) नहीं है। यह बूढ़े (वयोवृद्ध) पुरूष और बूढ़ी महिला के लिए है, जो रोज़ा रखने की ताक़त नहीं रखते हैं। अत: वे हर दिन के बदले एक मिस्कीन (गरीब) को खाना खिलाएँगे।”

बुखारी रहिमहुल्लाह अपनी सहीह में कहते हैं : “अध्याय : अल्लाह के इस फरमान की व्याख्या :

أَيَّامًا مَعْدُودَاتٍ فَمَنْ كَانَ مِنْكُمْ مَرِيضًا أَوْ عَلَى سَفَرٍ فَعِدَّةٌ مِنْ أَيَّامٍ أُخَرَ وَعَلَى الَّذِينَ يُطِيقُونَهُ فِدْيَةٌ طَعَامُ مِسْكِينٍ ...

“(ये रोज़े) गिनती के कुछ दिनों के लिए हैं। इसपर भी तुममें से जो बीमार हो या यात्रा पर हो तो वह दूसरे दिनों में उसकी गिन्ती पूरी करे, और जो लोग (कठिनाई के साथ) इसकी ताक़त रखते हैं फ़िदया (छुड़ौती) में एक ग़रीब को खाना दें ... (सूरतुल बक़रा : 184)

यदि बूढ़ा आदमी रोज़ा रखने में सक्षम नहीं है, तो फ़िदया दे। क्योंकि अनस रज़ियल्लाहु अन्हु ने बूढ़े होने के बाद, एक साल या दो साल, (रमज़ान में) प्रत्येक दिन एक ग़रीब व्यक्ति को रोटी और मांस खिलाया और रोज़ा नहीं रखा।”

“फतावा अल-लजनह अद-दाईमह” (10/198) में आया है : “जब डॉक्टर यह फैसला कर दें कि यह बीमारी जिससे आप पीड़ित हैं और जिसके कारण आप रोज़ा रखने में सक्षम नहीं हैं, इससे आपके ठीक होने की कोई उम्मीद नहीं है, तो आपको चाहिए कि हर दिन के बदले एक गरीब व्यक्ति को खाना खिलाएँ, जिसकी मात्रा शहर के भोजन (ग़िज़ा), जैसे कि खजूर और इसी तरह के अन्य खाद्य पदार्थों से आधा साअ है। इसी तरह आप पिछले (बीते हुए) महीनों और भविष्य के महीनों के लिए भी खिलाएँगे। यदि आपने उतने दिनों की संख्या में जो आप पर अनिवार्य हैं किसी ग़रीब व्यक्ति को रात का खाना खिला दिया या दोपहर का भोजन करा दिया : तो यह पर्याप्त है। जहाँ तक पैसे निकालने की बात है, तो उसका निकालना पर्याप्त नहीं है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

तीसरा :

गरीबों को यह खाना खिलाने में अनिवार्य मात्रा के बारे में विद्वानों के बीच मतभेद है। विद्वानों की बहुमत के निकट वह खाद्य पदार्थों में से एक मुद्द अर्थात एक चौथाई साअ है।

जबकि हनाबिला के निकट वह गेहूँ का एक मुद्द (चौथाई साअ), या गेहूँ के अलावा अन्य खाद्य पदार्थों का आधा साअ है। आधा साअ लगभग डेढ़ किलोग्राम के बराबर होता है।

“अल-मौसूअह अल-फिक़्हिय्यह” (32/67) में है : “मालिकिय्यह और शाफ़ेइय्यह का विचार है कि फ़िदया की मात्रा : प्रत्येक दिन के लिए एक मुद्द है। यही राय ताऊस, सईद बिन जुबेर, सौरी और औज़ाई का भी है।

तथा हनफ़िय्यह इस बात की ओर गए हैं कि इस फ़िदया में अनिवार्य मात्रा एक साअ खजूर, या एक साअ जौ, या आधा साअ गेहूँ है। यह हर उस दिन के बदले है जिसका आदमी रोज़ा नहीं रखता है, वह यह भोजन एक ग़रीब व्यक्ति को खिलाएगा।

हनाबिला के निकट : अनिवार्य मात्रा गेहूँ का एक मुद्द, या खजूर या जौ का आधा साअ है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

यदि आप गरीबों को रात का भोजन या दोपहर का भोजन करा देते हैं, तो यह पर्याप्त है, जैसा कि अनस रज़ियल्लाहु अन्हु के बारे में ऊपर अल्लेख किया गया है।

इसके आधार पर : यदि यह सूप दोपहर के भोजन या रात के भोजन के रूप में पर्याप्त नहीं था, बल्कि यह मुख्य भोजन के अधीन या एक क्षुधावर्धक के रूप में था, तो आपने जो कुछ दिया था वह पर्याप्त नहीं है और आपको फिर से फ़िदया देना पड़ेगा।

आपके लिए विद्वानों की बहुमत के दृष्टिकोण का पालन करना पर्याप्त है। इसलिए आप प्रत्येक गरीब व्यक्ति को 750 ग्राम चावल दे सकते हैं। तथा यह फ़िदया एक ही गरीब व्यक्ति को या कई गरीब लोगों को देना जायज़ है।

तथा यह ज्ञात होना चाहिए कि ऐतिकाफ़ में बैठे हुए लोगों को भोजन देना या रोज़ा रखने वाले को इफ्तार कराना फ़िदया के रूप में पर्याप्त नहीं है, सिवाय इसके कि एतिफाक़ में बैठे हुए लोग या रोज़ा रखने वाले लोग, जो इस भोजन को खाएँगे : गरीब लोग हों।

लेकिन अगर उनके पास पर्याप्त भोजन है, तो उन्हें फ़िदया का भुगतान करना पर्याप्त नहीं है, क्योंकि ऊपर उद्धृत आयत में अल्लाह सर्वशक्तिमान कहा फरमान है :

فدية طعام مسكين  [البقرة : 185]

“फ़िदया (छुड़ौती) में एक गरीब को खाना दें।” (सूरतुल बक़रा : 184)

इसलिए फ़िदया का भुगतान विशेष रूप से मिसकीनों (गरीबों) को किया जाना चाहिए, उनके अलावा दूसरों को नहीं।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर