रविवार 19 शव्वाल 1445 - 28 अप्रैल 2024
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नफ्ल नमाज़ पढ़ने के निषिद्ध समय

प्रश्न

मैंने आपकी साइट पर एक प्रश्न में उस समय के बारे में पढ़ा है जब नमाज़ पढ़ना निषिद्ध है। क्या आप मेरे लिए घंटों के हिसाब से वे समय निर्दिष्ट कर सकते हैं, ताकि मेरा मन आश्वस्त हो सकेॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

नफ़्ल (स्वैच्छिक) नमाज़ के निषिद्ध होने के समय का निर्धारण, एक देश से दूसरे देश में और एक मौसम से दूसरे मौसम में भिन्न होता है। इसलिए हम इन समयों को सभी देशों के लिए और सभी मौसमों में घंटे के हिसाब से निर्दिष्ट नहीं कर सकते, लेकिन हम यहाँ सामान्य नियम बयान करते हैं जो प्रत्येक मुसलमान के लिए इन समयों का जानना आसान बनाता है।

इसलिए हम कहते हैं :

नमाज़ के निषिद्ध होने के तीन समय हैं :

  1. फज्र की नमाज़ के बाद से लेकर सूर्य निकलने के लगभग एक चौथाई घंटा (अर्थात पंद्रह मिनट) बाद तक। आप प्रत्येक देश में तैयार किए गए कैलेंडर (समय सारिणी) से सूर्योदय का समय जान सकते हैं।
  2. ज़ुहर की नमाज़ का समय शुरू होने से लगभग एक चौथाई घंटा (अर्थात पंद्रह मिनट) पहले से लेकर ज़ुहर का समय शुरू होने तक।
  3. आपके अस्र की नमाज़ पढ़ने के बाद से - चाहे आपने अस्र की नमाज उसका समय शुरू होने के एक घंटे बाद ही क्यों न पढ़ी हो - यहाँ तक कि सूरज की टिकिया पूरी तरह से गायब हो जाए। अतः निषेध की शुरुआत : अस्र की नमाज़ पढ़ने से होती है, न कि अस्र की नमाज़ के समय की शुरुआत से। क्योंकि हो सकता है कि एक मुसलमान अस्र की नमाज़ उसका समय शुरू होने के कुछ समय बाद अदा करे। ऐसी स्थिति में मुसलमान तब तक स्वैच्छिक (नफ़्ल) नमाज़ पढ़ सकता है जब तक कि उसने अस्र की नमाज़ नहीं पढ़ी है, भले ही अस्र का समय शुरू हो गया हो। इब्ने क़ुदामा रहिमहुल्लाह ने अल-मुग़्नी (1/429) में कहा है : "हम उन लोगों के निकट इस बारे में कोई मतभेद नहीं जानते हैं जो कहते हैं कि अस्र के बाद नमाज़ की अनुमति नहीं है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

इन समयों के प्रमाण कई हदीसों में आए हैं, जिनमें सबसे स्पष्ट और व्यापक वह लंबी हदीस है, जिसे इमाम मुस्लिम ने अपनी सहीह (हदीस संख्या : 832) में अम्र बिन अबसा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनसे कहा :

“सुबह (फ़ज्र) की नमाज़ पढ़ो, फिर नमाज़ से रुक जाओ यहाँ तक कि सूरज निकल आए और बुलंद हो जाए। क्योंकि जब वह उगता है तो वह शैतान के दो सींगों के बीच उगता है और उस समय काफ़िर उसे सजदा करते हैं। फिर नमाज़ पढ़ो। क्योंकि नमाज़ में फरिश्ते उपस्थित होते हैं यहाँ तक कि भाले की छाया खड़ी हो जाए। फिर नमाज़ पढ़ने से बाज़ रहो, क्योंकि उस वक़्त जहन्नम को भड़काया जाता है। फिर जब परछाई आगे बढ़े, तो नमाज़ पढ़ो, क्योंकि नमाज़ में फरिश्तों की उपस्थिति होती है, यहाँ तक कि तुम अस्र की नमाज़ पढ़ लो। फिर सूरज डूबने तक नमाज़ से बाज़ रहो, क्योंकि वह शैतान के दो सींगों के बीच में अस्त होता है और उस वक़्त काफ़िर उसे सजदा करते हैं।”

यहाँ हम यह सचेत करदें कि इन समयों में जो निषिद्ध है वह विशुद्ध रूप से स्वैच्छिक नमाज़ है। जहाँ तक उन नमाज़ों का संबंध है जिनके लिए कोई कारण है, जैसे कि “तहिय्यतुल-मस्जिद” या वुज़ू के बाद दो रकअत और तवाफ़ की दो रकअत... आदि, तो वे विद्वानों के दो मतों में से सही मत के अनुसार किसी भी समय पढ़ी जा सकती हैं।”

तथा प्रश्न संख्या : (20013 )  का उत्तर देखें।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर