शुक्रवार 17 शव्वाल 1445 - 26 अप्रैल 2024
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जिसने कोई ज्ञान सिखाया फिर उसपर अमल किया गया, तो उसे क़ियामत के दिन तक हर उस व्यक्ति के समान प्रतिफल मिलेगा जिसने उसे उसके माध्यम से सीखा और उसपर अमल किया है

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प्रकाशन की तिथि : 12-01-2023

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प्रश्न

अगर हम किसी व्यक्ति को अज़कार सिखाएँ, फिर वह उन्हें किसी और को सिखाए और वह व्यक्ति उन्हें किसी और को सिखाए, और इसी तरह सिलसिला चलता रहे, तो क्या हमें सवाब मिलेगाॽ मुझे पता है कि आदमी को सीधे (डाइरेक्ट) किसी व्यक्ति को शिक्षा देने का सवाब मिलता है, लेकिन उस सिलसिला (श्रृंखला) के बाकी लोगों के बारे में क्या है जिसने उस व्यक्ति से सीखा है जिसे उसने सिखाया हैॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जो व्यक्ति दूसरों को मार्गदर्शन (नेकी) की तरफ बुलाए, उसके लिए उसका पालन करने वालों के समान अज्र (सवाब) होगा, जबकि इससे उनके अज्र में कोई कमी नहीं होगी। तथा जो व्यक्ति दूसरों को गुमराही (बुराई) की ओर बुलाए, उसके ऊपर उसका पालन करने वालों के समान पाप होगा, जबकि इससे उनके पाप में कोई कमी नहीं होगी।” इसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 2674) ने रिवायत किया है।

तथा अबू मसऊद अंसारी रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जो व्यक्ति नेकी की राह दिखाता है, उसे वैसा ही अज्र व सवाब मिलता है, जैसा उस नेकी के करने वाले को मिलता है।” इसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 1893) ने रिवायत किया है।

तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जिस व्यक्ति ने इस्लाम में कोई अच्छा तरीक़ा जारी किया, फिर उसके बाद उसपर अमल किया गया, तो उसके लिए उसपर अमल करने वालों के समान अज्र व सवाब लिखा जाएगा, जबकि उनके अज्र व सवाब में कोई कमी नहीं होगी।” इसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 1017) ने रिवायत किया है।

तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जब मनुष्य मर जाता है, तो उसके अमल का सिलसिला समाप्त हो जाता है, सिवाय तीन चीज़ों के : जारी रहने वाला सद्क़ा व खैरात, या ऐसा ज्ञान जिससे लाभ उठाया जाता रहे, या नेक संतान जो उसके लिए दुआ करे।’’ इसे  मुस्लिम (हदीस नं. : 1631) ने रिवायत किया है।

इन हदीसों से पता चलता है कि जिस व्यक्ति ने किसी को लाभकारी ज्ञान सिखाया है, उसे इस ज्ञान से लाभ उठाने वालों के समान अज्र व सवाब मिलेगा, और यह कि उसका सवाब निरंतर हर उस व्यक्ति पर जारी रहेगा, जिसने उसके माध्यम से इस ज्ञान को सीखा है।

इसीलिए अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को पूरी उम्मत के समान अज्र वसवाब मिलेगा।

अल-मुनावी रहिमहुल्लाह ने कहा :

“हमारे सभी अच्छे और नेक काम, और हर मुसलमान की इबादत के कार्य : हमारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कर्मपत्र में लिखे जाते हैं, जो कि आपके खुद अपने अज्र के अलावा है। तथा आपको आपकी उम्मत की संख्या के बराबर अनगिनत गुना अज्र प्राप्त होता है, जिसका बोध करने में बुद्धि विफल रहती है; क्योंकि हर मार्गदर्शक, रास्ता बताने वाला और ज्ञानी : जिसे क़ियामत के दिन तक अज्र मिलता है, मार्गदर्शन में उसके शैख (अध्यापक) को उसी के समान अज्र मिलता है, तथा उसके शैख के शैख को उसके दो गुना मिलता है, तथा तीसरे शैख को चार गुना मिलता है, और चौथे शैख को आठ गुना। और इसी तरह इस श्रृंखला की हर कड़ी में उससे पहले प्राप्त होने वाले अज्र की संख्या को दुगना कर दिया जाता है, यहाँ तक कि यह सिलसिला नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तक पहुँचा जाता है।

यदि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के बाद (ज्ञान के संचरण की श्रृंखला में) दस कड़ियाँ मान ली जाएँ, तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के लिए एक हज़ार चौबीस अज्र व सवाब होंगे। यदि दसवें के द्वारा एक ग्यारहवाँ व्यक्ति मार्गदर्शन प्राप्त करता है, तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अज्र व सवाब दो हजार अड़तालीस हो जाएगा, और इसी तरह जब भी किसी एक की वृद्धि होगी उससे पहले का अज्र व सवाब दुगना हो जाएगा, क़ियामत के दिन तक ऐसा ही होता रहेगा। यह कुछ ऐसा है जिसे अल्लाह के अलावा कोई भी गणना नहीं कर सकता, है, तो अगर हम सहाबा और ताबेईन और प्रत्येक युग में मुसलमानों की बड़ी संख्या को ध्यान में रखते हैं तो क्या होगा?

सहाबा में से प्रत्येक को उतनी संख्या में अज्र व सवाब प्राप्त होगा, जो क़ियामत के दिन तक उसके कार्य पर निष्कर्षित होगा। तथा सभी सहाबा को जो कुछ भी सवाब प्राप्त होगा, वह पूरी तरह से नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को प्राप्त है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि सलफ़ (पूर्वजों) को ख़लफ़ (बाद की पीढ़ियों) पर प्रधानता प्राप्त है और बाद की पीढ़ी जितनी अधिक होगी, उतना ही शुरुआती पीढ़ियों (पूर्वजों) का अज्र बढ़ जाएगा और कई गुना हो जाएगा। जो कोई भी इस अर्थ पर विचार करता है और उसे अल्लाह की तौफ़ीक़ प्राप्त होती है, तो दूसरों को सिखाने के लिए उसका उत्साह बढ़ जाता है और वह ज्ञान को फैलाने के लिए प्रेरित हो जाता है, ताकि उसका अज्र व सवाब उसके जीवन के दौरान और उसकी मृत्यु के बाद स्थायी रूप से बढ़ता रहे। तथा वह नवाचारों (बिदअतों) और अत्याचारों जैसे कर (चुंगी) आदि का अविष्कार करने से परहेज़ करेगा। क्योंकि जब तक कि कोई ऐसा है जो उसपर अमल कर रहा है, तो उपर्युक्त तरीके से उसपर बुरे कर्मों को गुणा किया जाता रहेगा। अतः मुसलमान को इस अर्थ पर, तथा भलाई का मार्ग दिखाने वाले के सौभाग्य और बुराई का मार्ग दिखाने वाले के दुर्भाग्य पर विचार करना चाहिए।” फ़ैजुल-क़दीर (6/170) से उद्धरण समाप्त हुआ।

तथा शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने कहा :

“उम्मत ने जो कुछ किया है, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के लिए उसका अज्र व सवाब लिखा जाएगा। इसलिए हमने जो कुछ भी भलाई और नेक काम किए हैं, चाहे वे अनिवार्य कार्य हों या स्वेच्छिक, उसका अज्र व सवाब रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के लिए दर्ज किए जाएगा। क्योंकि उन्होंने ही हमें सिखाया है।” इब्ने उसैमीन की किताब “शर्ह रियाज़ुस-सालिहीन” (2/258) से उद्धरण समाप्त हुआ।

इसलिए यदि आप किसी को कुछ अज़कार (दुआएँ) सिखाते हैं, तो आपको क़ियामत के दिन तक उन सभी लोगों के अज्र व सवाब के समान अज्र मिलेगा, जिन्होंने इन अज़कार (दुआओं) को उस व्यक्ति से सीखा है, जिसे आपने सिखाया है।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर