शनिवार 11 शव्वाल 1445 - 20 अप्रैल 2024
हिन्दी

क्या वर्ष का अंत रोज़ा और इस्तिग़फार पर करने की वसीयत की जाएगी?

प्रश्न

हिज्री वर्ष के अंत के क़रीब आने के साथ ही मोबाइल पर ये संदेश फैल जाते हैं कि जल्द ही वर्ष के अंत पर कर्म-पत्र लपेट दिए जाएंगे, तथा उसे इस्तिग़फार (पापों की क्षमा याचना) और रोज़े पर समाप्त करने पर ज़ोर दिया जाता है; तो इन संदेशों का क्या हुक्म है? यदि साल का अंतिम दिन सोमवार या जुमेरात (गुरुवार) को पड़ जाए, तो क्या उस दिन रोज़ा रखना बिद्अत है?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सुन्नत (हदीस) से प्रमाणित है कि बन्दों के आमाल अल्लाह अज़्जा व जल्ला पर पेश करने के लिए हर दिन दो बार पेश किए जाते हैं : एक बार रात के समय और एक बार दिन के समयः

सहीह मुस्लिम (हदीस संख्याः 179) में अबू मूसा अशअरी रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है, वह कहते हैं कि : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हमारे बीच पाँच वाक्यों (बातों) के साथ खड़े हुए और फरमाया :(निःसंदेह अल्लाह सर्वशक्तिमान सोता नहीं है, और न ही उसके लिए उचित है कि वह सोए। वह तराज़ू को नीचे ऊपर करता है। रात का अमल दिन के अमल से पहले, और दिन का अमल रात के अमल से पहले उसकी तरफ पेश किया जाता है।)

इमाम नववी रहिमहुल्लाह कहते हैं : मुहाफिज़ (संरक्षक) फरिश्ते रात के आमाल को लेकर रात खत्म होने के बाद ही दिन के आरम्भ में ऊपर चढ़ते हैं। और दिन के आमाल को लेकर दिन खत्म होने के बाद ही रात के आरम्भ में ऊपर चढ़ते हैं।

इमाम बुखारी (हदीस संख्याः 555) और इमाम मुस्लिम (हदीस संख्याः 632) ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्ललाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : (रात और दिन के फरिश्ते बारी बारी तुम्हारे बीच आते जाते हैं। वे फज्र और अस्र की नमाज़ में इकट्ठे होते हैं। फिर वे फरिश्ते जिन्हों ने तुम्हारे बीच रात बिताई थी, ऊपर चढ़ जाते हैं। तो अल्लाह तआला उन से पूछता है, हालाँकि वह उन्हें खूब जानता हैः तुमने मेरे बन्दों को किस हाल में छोड़ा? वे कहते हैं : हम उन्हें नमाज़ पढ़ते हुए छोड़कर आए हैं और हम जब उनके पास गए थे तब भी वे नमाज़ पढ़ रहे थे। )

हाफिज़ इब्ने हजर रहिमहुल्लाह कहते हैं : ‘’इस हदीस से पता चलता है कि कार्यों को दिन के अंतिम समय में पेश किया जाता है। अतः जो व्यक्ति उस समय आज्ञाकारिता में व्यस्त होगा, उसकी रोज़ी और अमल में बर्कत होगी। और अल्लाह ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है। और इसी पर सुब्ह और अस्र दोनों नमाज़ों की पाबंदी करने और उनपर ध्यान देने के आदेश की हिकमत (तत्वदर्शिता) निष्कर्षित होती है।‘’ समाप्त हुआ।

इसी तरह सुन्नत (हदीस) से यह भी प्रमाणित है कि हर हफ्ता के आमाल - भी - अल्लाह के सामने दो बार पेश किए जाते हैं।

इमाम मुस्लिम (हदीस संख्याः 2565) ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : (लोगों के आमाल प्रत्येक जुमा (यानी सप्ताह) में दो बार; सोमवार और जुमेरात को पेश किए जाते हैं। और हर मोमिन बन्दे को बख्श दिया जाता है, सिवाय उस आदमी के जिसके और उसके (मुसलमान) भाई के बीच झगड़ा (मनमुटाव) हो। चुनाँचे कहा जाता है : इन दोनों को छोड़ दो यहाँ तक कि वे दोनों सुलह सफाई कर लें।)

तथा सुन्नत (हदीस) से यह भी प्रमाणित है कि प्रत्येक वर्ष के आमाल एक साथ शाबान के महीने में अल्लाह की तरफ उठाए जाते हैः

सुनन नसाई (हदीस संख्याः 2357) में उसामा बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि उन्होंने कहा किः मैं ने कहा :ऐ अल्लाह के रसूल! मैं आपको किसी महीने में इतना रोज़ा रखते हुए नहीं देखता जितना आप शाबान के महीने में रोज़ा रखते हैं? तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उत्तर दिया : "रजब और रमज़ान के बीच यह ऐसा महीना है जिस से लोग गाफिल (निश्चेत) रहते हैं, यह ऐसा महीना है जिस में आमाल अल्लाह रब्बुल आलमीन की तरफ पेश किये जाते हैं। अत: मैं पसन्द करता हूँ कि मेरा अमल इस हाल में पेश किया जाये कि मैं रोज़े से रहूँ।"

इस हदीस को अल्बानी ने सहीहुल जामे में हसन क़रार दिया है।

उपर्युक्त नुसूस (हदीसों) से निष्कर्षित हुआ कि बन्दों के कार्यों के अल्लाह के सामने पेश किए जाने के तीन प्रकार हैं :

· दैनिकः प्रति दिन दो बार पेश किए जाते हैं।

· साप्ताहिकः और यह भी हफ्ते में दो बारः सोमवार और गुरुवार (जुमेरात) को पेश किए जाते हैं।

· वार्षिकः यह एक बार शाबान के महीने में पेश होता है।

इब्नुल-क़ैयिम रहिमहुल्लाह कहते हैं : ‘’साल भर के आमाल शाबान में पेश किए जाते हैं; जैसाकि सच्चे रसूल ने बताया है। और हफ्ता भर के आमाल सोमवार और गुरुवार को पेश किए जाते हैं। और दिन भर का अमल दिन के अंत में रात से पहले, तथा रात का अमल रात के अंत में दिन से पहले पेश किया जाता है। तो यह रात और दिन में आमाल का पेश किया जाना सालाना पेश जाने से अधिक विशेष है। और जब जीवन का अंत हो जाएगा, तो पूरे जीवन का अमल पेश किया जाएगा और कर्म-पत्र को लपेट दिया जाएगा।’’ ‘’हाशिया सुनन अबू दाऊद’’ से संक्षेप में समाप्त हुआ।

अल्लाह के सामने आमाल पेश किए जाने की हदीसें पेशी के समय अधिकता से आज्ञाकारिता के प्रोत्साहन पर दलालत करती हैं। जैसा कि शाबान के रोज़ों के संबन्ध में आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : (मैं पसंद करता हूँ कि जब मेरा अमल पेश किया जाए तो मैं रोज़े से रहूँ।)

और सुनन तिर्मिज़ी (हदीस संख्याः 747 ) में अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : (सोमवार और गुरुवार को (अल्लाह के यहाँ) आमाल पेश किए जाते हैं। अतः मैं पसंद करता हूँ कि जब मेरा अमल पेश किया जाए तो मैं रोज़े से रहूँ।) शैख अल्बानी ने इर्वाउल ग़लील (हदीस संख्याः 949) में इस हदीस को सहीह क़रार दिया है।

ताबेईन में से एक व्यक्ति गुरुवार को अपनी पत्नी के सामने रोते थे और वह उनके सामने रोती, और कहते थे : आज हमारे कर्मों को अल्लाह सर्वशक्तिमान के सामने पेश किया जा रहा है !! [इसे इब्ने रजब ने ‘’लताइफुल मआरिफ’’ में उल्लेख किया है।]

जो कुछ हमने बयान किया उससे स्पष्ट होता है कि एक समाप्त होनेवाले साल के अंत या एक नए साल की शुरुआत का कर्म-पत्र के बंद कर दिए जाने और अल्लाह के सामने आमाल के पेश किए जाने से कोई संबंध नहीं है। बल्कि आमाल के पेश किए जाने के वे सभी प्रकार जिनकी ओर हमने संकेत किया है, शरीअत के नुसूस ने उसके लिए दूसरे औक़ात निर्धारित किए हैं। और नुसूस इस बात पर भी दलालत करते हैं कि इन औक़ात में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का तरीक़ा अधिक से अघिक नेकियाँ करना था।’’

शैख सालेह अल-फौज़ान हफिज़हुल्लाह साल के अंत में साल की समाप्ति का स्मरण कराने के सम्बन्ध में फरमाते हैं : ‘’उसकी कोई असल (आधार) नहीं है। तथा साल की समाप्ति को किसी निश्चित इबादत के साथ विशिष्ठ करना एक घृणित और निंदनीय बिदअत (नवाचार) है।‘’ समाप्त हुआ।

रहा सोमवार और गुरुवार का रोज़ा रखना, तो अगर यह इन्सान की आदत हो या वह इसलिए रोज़ा रखता हो कि इन दोनों दिनों के रोज़े के बारे में प्रोत्साहन आया है, तो उसका साल की समाप्ति या उसकी शुरुआत के दिन पड़ना, इस दिन रोज़ा रखने से नहीं रोकता है। शर्त यह है कि वह आदमी इसकी अनुकूलता की वजह से रोज़ा न रख रहा हो, या उसका यह गुमान न हो कि इस अवसर पर उन दोनों दिनों का रोज़ा रखने की कोई विशेष फज़ीलत है।

और अल्लाह ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर