गुरुवार 18 रमज़ान 1445 - 28 मार्च 2024
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कितनी दूरी पर मस्जिद में नमजा़ पढ़ना अनिवार्य हो जाता है ?

प्रश्न

इन-शाअल्लाह (यदि अल्लाह ने चाहा) तो मैं ब्रिटेन की यात्रा करूँगा और वहाँ एक सप्ताह ठहरूँगा। वहाँ मेरे निवास स्थान से सब से निकट मस्जिद डेढ़ किलो मीटर की दूरी पर है। निश्चित रूप से, मुझे अज़ान की आवाज़ सुनाई नहीं देगी, क्योंकि ब्रिटेन में अधिकांश स्थानों पर अज़ान को बुलंद नहीं किया जाता है। और किसी हद तक मेरे लिए यह कठिन काम है कि जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ने के लिए इतनी लंबी दूरी हर दिन पाँच बार पैदल चल कर तय करूँ। (मैं बहुत अच्छे स्वास्थ्य में हूँ किन्तु इतनी दूरी दैनिक रूप से पाँच बार तय करने के लिए संघर्ष की आवश्यकता है)। मैं जानता हूँ कि मैं एक बस किराये पर ले सकता हूँ किन्तु रोज़ाना पाँच बार ऐसा करने के लिए बहुत संघर्ष की ज़रूरत है। तो क्या मेरे लिए अनुमति है कि मैं इस पूरी अवधि (एक सप्ताह) के दौरान अपने निवास स्थान पर अकेले नमाज़ पढ़ूँ ? मैं ने पढ़ा है कि वह दूरी जिस के बाद अज़ान सुनना संभव नहीं है वह लगभग पाँच किलो मीटर है, लेकिन मेरा गुमान है कि यह दूरी बहुत लंबी है कि एक मुसलमान से मिस्जद पहुँचने के लिए इतनी लंबी दूरी चलने की अपेक्षा की जाये। इसके अतिरिक्त, मैं सोच भी नहीं सकता कि इतनी लंबी दूरी पर अज़ान सुनी जा सकती है, यहाँ तक कि वहाँ कितनी ही शांति क्यों न हो। मेरा अनुमान है कि इस गणना में कोई त्रुटि है। आप से अनुरोध है कि जिस स्थान पर मैं निवास कर रहा हूँ उस में नमाज़ पढ़ने के हुक्म के बारे में अपनी राय स्पष्ट करें, क्या मेरे लिए ऐसा करना जाइज़ है या नहीं?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए योग्य है।

"जो आदमी लाउडस्पीकर के प्रयोग के बिना सामान्य आवाज़ में अज़ान को सुनता है उस पर अनिवार्य है कि उस मस्जिद में जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ने के लिए उपस्थित हो जहाँ उस की अज़ान दी जाती है, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : "जो आदमी अज़ान सुन कर भी नमाज़ के लिए न आये तो उस की नमाज़ शुद्ध नहीं है सिवाय इस के कि उस के पास कोई उज़्र हो।" (इस हदीस को इब्ने माजा, दारक़ुतनी, इब्ने हिब्बान और हाकिम ने सहीह इसनाद के साथ रिवायत किया है।)

इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से उज़्र के बारे में पूछा गया तो उन्हों ने फरमाय : डर या बीमारी।

तथा इमाम मुस्लिम ने अपनी सहीह में अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि एक अंधे आदमी ने कहा : ऐ अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ! मुझे मस्जिद तक ले जाने वाला कोई मार्गदर्शक नहीं है, तो क्या मेरे लिये अपने घर में नमाज़ पढ़ने की रूख्सत (छूट) है ? तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उस से पूछा : "क्या तुम नमाज़ के लिए अज़ान सुनते हो ?" उस ने उत्तर दिया कि : हाँ। तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "तो तुम उसका जवाब दो।" (अर्थात जमाअत में हाज़िर हो।)

तथा सहीह मुस्लिम में अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि उन्हों ने कहा : "जिस आदमी को यह पसन्द है कि वह कल (क़ियामत के दिन) अल्लाह तआला से मुसलमान होने की हालत में मुलाकात करे, तो उसे इन नमाज़ों की उसी जगह पाबंदी करने चाहिए जहाँ उनके लिए अज़ान दी जाती है, क्योंकि अल्लाह तआला ने तुम्हारे पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के लिए हिदायत के तरीक़े निर्धारित किये हैं, और ये (नमाज़ें) हिदायत के तरीक़ों में से हैं, और अगर तुम अपने घरों में नमाज़ पढ़ने लगे जिस तरह कि यह पीछे रह जाने वाला आदमी अपने घर में नमाज़ पढ़ता है, तो तुम अपने नबी की सुन्नत को छोड़ बैठो गे, और यदि तुम ने अपने नबी की सुन्नत को छोड़ दिया तो तुम गुमराह हो जाओगे। और मैं ने देखा है कि इस से केवल एक बीमार आदमी या ऐसा मुनाफिक़ ही पीछे रहता था जिस का निफाक़ जगजाहिर होता था, तथा एक आदमी को दो आदमियों के सहारे नमाज़ के लिये लाया जाता था यहाँ तक कि उसे सफ में खड़ा कर दिया जाता था।"

तथा सहीह बुखारी एंव सहीह मुस्लिम में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से वर्णित है कि आप ने फरमाया : "मैं ने इरादा किया कि नमाज़ क़ायम करने का आदेश दूँ, फिर किसी आदमी को आदेश दूँ कि वह लोगों को नमाज़ पढ़ाये, फिर मैं अपने साथ ऐसे लोगों को लेकर जिन के साथ लकड़ी का गट्ठर हो, उन लोगों के पास जाऊँ जो नमाज़ में उपस्थित नहीं होते हैं, और उन के ऊपर उनके घरों को जला दूँ।"

नमाज़ के महान स्थान और महत्व को स्पष्ट करने और उन्हें मस्जिदों में अदा करने पर बल देने के विषय में हदीसें बहुत अधिक हैं। अत: मुसलमान पर अनिवार्य है कि नियमित रूप से मस्जिदों में उनकी अदायगी करे, एक दूसरे को उसकी वसीयत करे और आपस में उस पर सहयोग करे . . . किन्तु वह आदमी जो मस्जिद से दूर रहता है और बिना लाउडस्पीकर के अज़ान नहीं सुनता है तो उस के लिये मस्जिद में आना ज़रूरी नहीं है, और उसके लिए वैध है कि वह और जो लोग उसके साथ हैं वे एक स्वतंत्र जमाअत बना कर नमाज़ पढ़ लें, क्योंकि उल्लिखित हदीसों का स्पष्ट अर्थ यही है। और अगर वे कष्ट उठा कर ऐसी मस्जिदों में जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ने के लिए आते हैं जिस की अज़ान को वे दूर होने के कारण बिना लाउडस्पीकर के नहीं सुनते हैं, तो उन्हें इस का बहुत बड़ा अज्र व सवाब मिलेगा, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : "नमाज़ में सब से महान अज़्र व सवाब वाला आदमी वह है जो सब से अधिक दूरी से चल कर आता है।". . . तथा मिस्जदों की तरफ जाने की फज़ीलत और उस पर उभारने से संबंधित हदीसें बहुत अधिक हैं, और अल्लाह तआला ही तौफीक़ देने वाला (शक्ति का स्रोत) है।"

मजमूअ़ फतावा शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह 12/58-61

अज़ान सुनने के दिशा निर्देश के बारे में विद्वानो का कथन:

इमाम शाफेई रहिमहुल्लाह कहते हैं : "जब मुअज़्ज़िन ज़ोर आवाज़ वाला हो, और वह सुन सकता हो (अर्थात् बहरा न हो ), आवाज़ें शांत हों (शोर न हो) और हवा भी न चल रही हो। किन्तु जब मुअज़्ज़िन ज़ोर आवाज़ वाला न हो, और आदमी गाफिल हो (ध्यान न दे रहा हो) और आवाज़ें प्रत्यक्ष हों (अर्थात् शोर हो रहा हो) तो कम ही लोग अज़ान को सुन सकें गे। (किताब अल्ल उम्म 1/221)

इमाम नववी कहते हैं : अज़ान सुनने में एतिबार इस बात का है कि : मुअज़्ज़िन शहर के किनारे (छोर पर) खड़ा हो, आवाज़ें शांत हों, हवा ठहरी हुई हो, और वह सुनने वाला हो, फिर अगर वह (अज़ान) सुनता है तो उस पर अनिवार्य हो जाता है, और अगर नहीं सुनता है तो उस पर अनिवार्य नहीं है।" (अल-मजमूअ़ शरह अल-मुहज़्ज़ब 4/353)

तथा इब्ने क़ुदामा का कहना है : और वह जगह जहाँ से आम तौर पर अज़ान सुनाई देती है, जबकि मुअज़्ज़िन ज़ोर आवाज़ वाला हो, ऊंचे स्थान पर खड़ा हो, हवा ठहरी हुई हो, आवाज़ें शांत हों और सुनने वाला गाफिल और असावधान न हो . . . (अल-मुग़नी 2/107)

स्रोत: शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद