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वह मासिक धर्म की अवस्था में मीक़ात से गुज़री औप उसने एहराम नहीं बाँधा

06-07-2019

प्रश्न 21638

मैं उम्रा के लिए गई और मीक़ात से गुज़री तो मैं मासिक धर्म की अवस्था में थी। अतः मैंने एहराम नहीं बाँधा और मैं मक्का में ठहरी रही यहाँ तक कि मैं पवित्र हो गई। फिर मैंने मक्का से एहराम बाँधा। तो क्या यह जायज़ है या मैं क्या करूँ और मेरे लिए क्या ज़रूरी है?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

शैख मुहम्मद बिन उसैमीन रहिमहुल्लाह ने फरमायाः

''ऐसा करना जायज़ नहीं है, और वह महिला जो उम्रा का इरादा रखती है उसके लिए बिना एहराम बाँधे मीक़ात को पार करना जायज़ नहीं है। यहाँ तक कि यदि वह मासिक धर्म की अवस्था में है, तो भी वह मासिक धर्म की अवस्था में एहराम बाँधेगी और उसका एहराम हो जाएगा और सही (मान्य) होगा। इसका प्रमाण यह है कि अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हा की पत्नी अस्मा बिन्त उमैस रज़ियल्लाहु अन्हा ने उस समय बच्चा जना – जबकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ज़ुल-हुलैफ़ा में हज्ज के इरादे से पड़ाव डाले हुए थे – तो उन्हों ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास किसी को यह पूछने के लिए भेजा कि वह क्या करें?

आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः “तुम स्नान कर लो और एक कपड़े का लंगोट बाँध लो और एहराम बाँधो (एहराम में प्रवेश करने की नीयत करो)।”

और मासिक धर्म का रक्त निफ़ास (प्रसव) के रक्त के समान है। इसलिए हम मासिक धर्म वाली महिला से कहेंगेः ''जब तुम मीक़ात से गुज़रो और तुम्हारा इरादा उम्रा या हज्ज करने का हो, तो तुम स्नान करो और यौनि पर कपड़ा (लंगोट) बाँध लो और एहराम बाँधो।''

कपड़ा बाँधने का मतलब यह है किः महिला अपनी यौनि पर कपड़े का टुकड़ा रखकर बाँध ले फिर एहारम बाँधे, चाहे वह हज्ज का एहराम हो या उम्रा का।''

लेकिन जब वह एहराम बाँध ले और मक्का पहुँच जाए तो वह बैतुल्लाह नहीं जाएगी और उसका तवाफ़ नहीं करेगी यहाँ तक कि वह पवित्र हो जाए। इसीलिए नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से जब वह उम्रा के दौरान मासिक धर्म से हो गईं, तो फरमायाः ''तुम वह सब काम करो जो हज्ज करने वाला करता है, सिवाय इसके कि तुम बैतुल्लाह का तवाफ़ न करना यहाँ तक कि तुम पवित्र हो जाओ।'' यह बुखारी औऱ मुस्लिम की रिवायत है। तथा सहीह बुखारी ही में है कि आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने उल्लेख किया है कि वह जब पवित्र हो गईं तो उन्हों ने बैतुल्लाह का तवाफ़ किया और सफा व मर्वा का चक्कर लगाया। इससे पता चला कि यदि महिला मासिक धर्म की स्थिति में हज्ज या उम्रा का एहराम बांधे या तवाफ़ से पहले उसे मासिक धर्म आ जाए, तो वह न तवाफ़ करेगी और न ही सई करेगी यहाँ तक कि वह पवित्र हो जाए और स्नान कर ले। लेकिन यदि उसने पवित्रता की अवस्था में तवाफ़ किया और तवाफ़ से फारिग होने के बाद उसे मासिक धर्म आ गया, तो वह अपना उम्रा जारी रखेगी और सई करेगी भले ही वह मासिक धर्म से ग्रस्त है, तथा वह अपने सिर से बाल काटेगी और अपने उम्रा को संपन्न कर देगी। क्योंकि सफा और मर्वा के बाच सई करने के लिए तहारत (पवित्र होना) शर्त नहीं है।''

औरत का हज्ज
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