वेबसाइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर का सहयोग करें

हम आशा करते हैं कि आप साइट का समर्थन करने के लिए उदारता के साथ अनुदान करेंगे। ताकि, अल्लाह की इच्छा से, आपकी साइट – वेबसाइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर - इस्लाम और मुसलमानों की सेवा जारी रखने में सक्षम हो सके।

क़िस्तों की बिक्री में देर से भुगतान करने पर जुर्माना लगाने के बजाय बैंक के लिए अपना हक़ हासिल करने के लिए शरई विकल्प

09-06-2023

प्रश्न 182993

आपने पहले प्रश्न संख्या (140603) में उल्लेख किया है कि इस्लामिक बैंक के लिए अपने ग्राहक पर जुर्माना की शर्त लगाने की अनुमति नहीं है ताकि वह उससे यह गारंटी प्राप्त कर सके कि वह उसके लिए वित्तपोषित क़िस्तों का भुगतान बैंक को उनके बीच सहमत समय पर करेगा। मेरा प्रश्न यह है : क्या वित्तीय जुर्माने के अलावा शरई रूप से अनुमेय कोई विकल्प है जो इस्लामिक बैंक ऐसे रियल एस्टेट संबंधी लेनदेन में ग्राहक पर क़िस्तों के भुगतान की तारीखों का पालन सुनिश्चित करने के लिए निर्धारित कर सकते हैंॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

यदि बैंक ग्राहक को किस्तों में अचल संपत्ति बेचता है, तो उसके लिए देर से भुगतान की स्थिति में ग्राहक पर जुर्माना लगाने की अनुमति नहीं है; क्योंकि क़िस्तें ग्राहक पर एक ऋण हैं, और ऋण के भुगतान में देरी होने पर जुर्माना वसूलना करना रिबा (सूद) के अंतर्गत आता है। तथा प्रश्न संख्या : (89978) और प्रश्न संख्या : (112090) के उत्तर देखें।

बैंक के लिए - अपने अधिकार की गारंटी के लिए – एक दायी ज़मानतदार (गारंटर) नियुक्त करने की शर्त लगाना धर्मसंगत है, अर्थात् देनदार के अलावा एक अन्य गारंटर, जिससे बैंक अपनी क़िस्त के भुगतान की माँग कर सकता है, यदि वह व्यक्ति जिसपर देनदारी है भुगतान करने में देरी करता है या भुगतान करने में टालमटोल करता है।

वह (बैंक) रेहन (बंधक) भी ले सकता है, जिसमें स्वयं बेची गई वस्तु को बंधक के रूप में लेना भी शामिल है। इसलिए ग्राहक को इसका उपयोग करने की अनुमति देने के साथ, भुगतान किए जाने तक इसे गिरवी रखा जाएगा। इसे गिरवी रखने का लाभ यह है कि : ग्राहक इसे बेचने में सक्षम नहीं होगा। उसपर यह शर्त लगाना भी जायज़ है कि : यदि वह भुगतान करने में असमर्थ रहता है, तो बैंक अदालत में जाने की आवश्यकता के बिना गिरवी रखी गई वस्तु को बेच देगा।

इसी तरह गारंटी के साधनों में से एक : ग्राहक पर उसी बैंक में अपने खाते का हस्तांतरण करने, और वेतन का भुगतान होते ही बैंक को क़र्ज की क़िस्तें लेने में सक्षम बनाने की शर्त निर्धारित करना भी है।

उसी में से एक तरीक़ा : टालमटोल करने वाले ग्राहक को काली सूची में डालना, और सभी बैंकों के साथ इस बात पर सहमति बनाना है कि वे इस सूची में शामिल लोगों के साथ व्यवहार न करें।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

ब्याज
वेबसाइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर में देखें