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क्या दो और उससे अधिक जानवरों की क़ुर्बानी करने की अनुमति है?

26-09-2015

प्रश्न 176956

क्या दो से अधिक जानवरों की क़ुर्बानी करना धर्म संगत है? क्योंकि हम ने कुछ लोगों को तीन चार जानवरों की क़ुर्बानी करते हुए देखा है।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

उत्तर :

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

सर्व प्रथम :

क़ुर्बानी करना धर्मसंगत और मुसतहब है।तथा वह, फुक़हा के बीच इस बारे में मतभेद के अनुसार, सुन्नत मुअक्कदा या अनिवार्य है। तथा प्रश्न संख्या : (36432) का उत्तर देखें।

दूसरा :

आदमी और उसके घर वालों की ओर से एक बकरी काफी है, भले ही उनकी संख्या ज़्यादा हो। क्योंकि तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 1505) और इब्ने माजा (हदीस संख्या : 3147) ने अता बिन यसार से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : मैं ने अबू अय्यूब अन्सारी से प्रश्न किया कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के समय काल में क़ुर्बानी कैसे होती थी? तो उन्हों ने कहा : आदमी अपनी ओर से और अपने घर वालों की ओर से एक बकरी ज़बह करता था। चुनाँचे वे खुद खाते थे और दूसरों को भी खिलाते थे। यहाँ तक कि लोग गर्व प्रदर्शन करने लगे तो उसकी वह स्थिति हो गई जो तुम देख रहे हो।’’

इमाम नववी रहिमहुल्लाह फरमाते हैं : ‘‘बकरी एक आदमी की ओर से काफी होगी, एक सेअधिक की ओर से काफी नहीं होगी। लेकि अगर घर का कोई एक आदमी उसकी क़ुर्बानी कर दे तो उनमें से सब की ओर से इस अनुष्ठान की अदायगी हो जायेगी, और उनके हक़ में क़ुर्बानी सुन्नते-किफायत (पर्याप्तता) होगी . .’’

‘‘अल-मजमूअ’’ (8/370) से समाप्त हुआ।

अगर उसने एक से अधिक क़ुर्बानी की तो इसमें कोई हानि (आपत्ति) नहीं है, बशर्ते कि वह गर्व प्रदर्शन के लिए न हो।

शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह से पूछा गया : क्या इस्लाम ने उन जानवरों की संख्या को निर्धारित किया है जिनकी मुसलमान ईदुल अज़हा के दिन क़ुर्बानी करता है? और यदि उसकी कोई संख्या है तो वह कितनी है?

तो उन्हों ने उत्तर दिया : इसकी कोई निर्धारित संख्या नहीं है, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम दो जानवरों की क़ुर्बानी करते थे। उनमें से एक अपनी ओर और अपने घर वालों की ओर से, तथा दूसरा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की उम्मत में से एकेश्वरवाद के अनुयायियों की ओर से। अगर इन्सान एक या दो या अधिक जानवर की क़ुर्बानी करता है तो इसमें कोई आपत्ति की बात नहीं है।

अबू अय्यूब अन्सारी रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि : हम नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के समय काल में एक बकरी की क़ुर्बानी करते थे। हम स्वयं खाते और दूसरों को खिलाते थे। फिर उसके बाद लोग गर्व प्रदर्शन करने लगे। सारांश यह कि एक बकरी काफी है, यदि इन्सान अपने घर में अपनी ओर से और अपने घरवालों की ओर से एक बकरी की क़ुबानी करे तो इससे सुन्नत पर अमल हो जायेगा। और अगर वह इससे अधिक दो, तीन, चार, या एक ऊँट या एक गाय की क़ुर्बानी करे तो इसमें कोई आपत्ति की बात नहीं है . . .’’ आदरणीय शैख की साइट से समाप्त हुआ।

http://www.binbaz.org.sa/mat/11662

हालांकि सर्वश्रेष्ठ और सर्वोचित यह है कि वह अपनी ओर से और अपने घर वालों की ओर से एक जानवर की क़ुर्बानी पर बस करे ; क्योंकि यही नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरीक़ा है।

जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : मैं अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ ईदुल अज़हा के अवसर पर ईदगाह में उपस्थित था। जब आप अपना खुत्बा पूरा कर चुके तो मिंबर से नीचे उतरे और एक मेंढा लाया गया, जिसे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने हाथ से ज़बह किया और कहा बिस्मिल्लाह, अल्लाहु अक्बर, यह मेरी तरफ से और उस व्यक्ति की तरफ से है जिसने मेरी उम्मत में से क़ुर्बानी नहीं की है।’’ इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 2810) ने रिवायत किया है, और शैख अल्बानी ने सहीह अबू दाऊद में इसे सही कहा है।

शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने फरमाया : ‘‘इसमें कोई संदेह नहीं कि सुन्नत का पालन करना उसके पालन न करने से बेहतर है . . , और जब हम यह कहते हैं कि : सुन्नत यह है कि एक घर वाले एक क़ुर्बानी पर निर्भर करें, जिसे घर का मालिक अंजाम दे, तो इसका मतलब यह नहीं है कि यदि उन्हों ने एक से अधिक जानवर की क़ुर्बानी कर दी तो वे गुनाहगार होंगे, वे गुनाहगार नहीं होंगे लेकिन सुन्नत की रक्षा करना अधिक अमल करने से बेहतर है, और अल्लाह सर्वशक्तिमान का कथन है कि :

لِيَبْلُوَكُمْ أَيُّكُمْ أَحْسَنُ عَمَلاً [سورة الملك :2]

‘‘ताकि तुम्हारी परीक्षा करे कि तुम में से कौन सबसे अच्छा कार्य करनेवाला है।’’ (सूरतुल मुल्क : 2)

इसीलिए जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने दो आदमियों को किसी काम के लिए भेजा, और उन्हों ने पानी न मिलने की वजह से तयम्मुम करके नमाज़ पढ़ ली, फिर उन्हें पानी मिल गया। तो उनमें से एक ने वुज़ू करके नमाज़ को लौटा लिया, जबकि दूसरे ने न वुज़ू किया न नमाज लौटाई। अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से इसका चर्चा किया गया तो आप ने उस आदमी से जिसने नमाज़ नहीं लौटाई थी फरमाया कि : तू ने सुन्नत को पा लिया, और दूसरे से फरमाया : तेरे लिए दोहरा सवाब है। तो इन दोनों में से कौन बेहतर है? वह आदमी जिसने सुन्नत को पा लिया, अगरचे इसके लिए दोहरा सवाब है ; क्योंकि उसे दो बार सवाब इसलिए मिला क्योंकि उसने दो अमल किया जिनके द्वारा वह अल्लाह की निकटता प्राप्त करने की नीयत रखता था, इसलिए उसे दो अमल का प्रतिफल मिला। किंतु वह उस आदमी के समान नहीं है जिसने सुन्नत को पा लिया।’’

फतावा ''नूरून अला अद-दर्ब’’ से समाप्त हुआ।

बलिदान (क़ुर्बानी)
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