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दस दिनों के बजाय (दस रातों) के उल्लेख की हिकमत (बुद्धिमत्ता) क्या है?

27-09-2014

प्रश्न 160166

मेरे एक संबंधी के दिमाग में यह प्रश्न आया कि अल्लाह तआला के कथन ''और क़सम है दस रातों की'' की हिक्मत (तत्वदर्शिता) क्या है? जबकि ज़ुलहिज्जा के दस दिनों की फज़ीलत (प्रतिष्ठा) सुबह अर्थात दिन में है, रात में नहीं है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि अल्लाह तआला ही के लिए व्यापक हिक्मत (बुद्धिमत्ता) है।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

अल्लाह तआला ने फरमाया :

والفجر وليال عشر [الفجر: 1-2].

''क़सम है फज्र की और दस रातों की।'' (सूरतुल फज्र : 1-2).

विद्वानों के बीच इसके बारे में मतभेद है कि जिन दस रातों की क़सम खाई गई है उनसे क्या अभिप्राय है?

1- जमहूर विद्वान इस बात की ओर गए हैं कि यह ज़ुल-हिज्जा के महीने की दस रातें हैं, बल्कि इब्ने जरीर रहिमहुल्लाह ने इस बात पर सर्वसहमति का उल्लेख करते हुए फरमाया : ''ये ज़ुल-हिज्जा के महीने की दस रातें हैं, क्योंकि व्याख्याकारों में से प्राधिकरण की इस बात पर सर्व सहमति है।'' तफ्सीर इब्ने जरीर (7/514) से अंत हुआ।

तथा इब्ने कसीर (4/514) ने फरमाया : ''दस रातें : इससे मुराद ज़ुलहिज्जा की दस रातें हैं, जैसाकि इब्ने अब्बास, इब्नुज़ज़ुबैर, मुजाहिद और कई एक सलफ और खलफ ने कहा है।''

यहाँ पर वह प्रश्न उठता है जो आप ने उल्लेख किया है कि दिनों के बजाय रातों के द्वारा इसे अभिव्यक्त किए जाने की हिकमत (तत्वदर्शिता) क्या है ?

तो इसका उत्तर इस तरह दिया जा सकता है कि :

दिनों के लिए (रातों) का शब्द इसलिए बोला गया है क्योंकि अरबी भाषा के अन्दर बहुत विस्तार है, कभी-कभी रातों का शब्द बोल कर दिन मुराद लिया जाता है, और दिनों का शब्द बोलकर रातों को मुराद लिया जाता है। तथा सहाबा और ताबेईन की ज़ुबानों पर अक्सर दिनों के लिए रातों का शब्द ही बोला जाता है, यहाँ तक कि उनके कथनों में से यह है कि : ''सुम्ना खम्सन'' इसके द्वारा वे रातों को अभिव्यक्त (अंकित) करते हैं, (शाब्दिक अर्थ यह हुआ कि हमने पाँच रात रोज़ा रखा), अगरचे रोज़ा दिन में होता है। और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

इसी तरह विद्वानों के एक समूह ने इस बात का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है, जिनमें इब्नुल अरबी ''अहकामुल क़ुरआन'' (4/334) में और इब्ने रजब ''लताइफुल मआरिफ'' (पृष्ठ : 470) में शामिल हैं।

2- तथा कुछ विद्वान इस बात की ओर गए हैं, और यही इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से भी वर्णित है, कि दस रातों से अभिप्राय : रमज़ान के महीने की अंतिम दस रातें हैं, उनका कहना है कि : क्योंकि रमज़ान की अंतिम दस रातों में लैलतुल क़द्र है जिसके बारे में अल्लाह ने फरमाया है :

لَيْلَةُ الْقَدْرِ خَيْرٌ مِنْ أَلْفِ شَهْرٍ

''लैलतुल क़द्र (प्रतिष्ठा वाली रात) एक हज़ार महीने से बेहतर है।''

तथा अल्लाह ने एक दूसरे स्थान पर फरमाया :

‏‏إِنَّا أَنزَلْنَاهُ فِي لَيْلَةٍ مُّبَارَكَةٍ إِنَّا كُنَّا مُنذِرِينَ فِيهَا يُفْرَقُ كُلُّ أَمْرٍ حَكِيمٍ‏‏ ‏[الدخان :3-4]

निःसंदेह हमने उसे एक बरकत भरी रात में अवतरित किया है। निश्चय ही हम सावधान करनेवाले हैं। उस रात में तमाम तत्वदर्शिता युक्त मामलों का फ़ैसला किया जाता है।''

इस कथन को शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने चयन किया : क्योंकि यह आयत के प्रत्यक्ष अर्थ के अनुकूल है।

कुर्आन का भाष्य
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