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अपने ग़ैर मुस्लिम माता पिता के साथ बैठने का हुक्म जब कि वे दोनों शराब पीते हों

19-10-2017

प्रश्न 145122

मैं एक मुसलमान महिला हूँ और अपने ग़ैर मुस्लिम माता पिता के साथ रहती हूँ। जब मैं ने इस्लाम स्वीकार किया तो हमारा संबंध कई सारे दबावों से पीड़ित हुआ। वे दोनों इस्लाम के लिए मेरे ऊपर सख्ती करने लगे, परंतु समय बीतने के साथ साथ उन दोनों ने इस मामले को अधिक स्वीकार करना शुरू कर दिया, और अल्लाह तआला ने उन दोनों के दिलों को मेरे और इस्लाम के लिए नरम कर दिया है, इस समय वे मेरे मतलब की चीज़ों का एतिबार करते हैं। चुनाँचे वे इस समय हलाल (वैध) भोजन का उपयोग करते हैं, लेकिन मेरे माता पिता रात के खाने में शराब पीते हैं और दोनों हमेशा मेरे साथ बेठते हैं क्योंकि एक साथ खाना पीना हमारे घर में एक सम्मान पूर्ण प्रथा है। मेरे माता पिता जानते हैं कि मैं शराब को पसंद नहीं करती और मैं हमेशा उन्हें इस बात से अवगत कराती रहती हूँ। किंतु मैं उन्हें उनके घर में शराब पीने से नहीं रोक सकती, स्वयं मेरे पिता ने मुझ से इस बात को स्पष्ट कर दिया है।
तो क्या मैं उन के साथ न बैठूँॽ जबकि मैं अच्छी तरह से जानती हूँ कि ऐसा करने से हमारे संबंध एक बार फिर तनाव ग्रस्त हो जायेंगे। तथा संभव है कि यदि मैं उन के साथ बैठने से इनकार कर दूँ तो उन की भावनाएं आहत हों। तथा ऐसी स्थिति में क्या आप मुझे कुछ सलाह देना चाहेंगे?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

प्रथम :

हम अल्लाह तआला की हम्द व तारीफ बयान करते हैं कि उसने आप को इस्लाम की हिदायत (मार्गदर्शन) दी। और हम आप के लिए इस्लाम पर सुदृढ़ता और तौफीक़ तथा आप के माता पिता और आप जिनसे भी प्यार करती हैं उन सभी के लिए अल्लाह से हिदायत (मार्गदर्शन) का प्रश्न करते हैं।

आप को चाहिए कि अपने माता पिता को इस्लाम की ओर आमंत्रित करने, तथा उन्हें नेकी एवं अच्छे व्यवहार का उनका हक़ देने की लालायित बनें जैसाकि हमारा महान धर्म इस का आदेश देता है।

दूसरा :

ऐसे मेज़ पर बैठना जायज़ नहीं है जिस पर शराब का दौर चलता हो, क्योंकि इमाम अहमद और तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 2801) ने जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "जो व्यक्ति अल्लाह और आख़िरत (प्रलय) के दिन पर ईमान रखता है तो उसे चाहिए कि वह ऐसे दस्तरख्वान पर न बैठे जिस पर शराब का दौर चलता हो।'' हाफिज़ इब्ने हजर ने फत्हुल-बारी में इस हदीस को नसाई की तरफ मन्सूब किया है और इस हदीस की सनद को जैयिद (ठीक) ठहराया है, तथा शैख़ अल्बानी ने इर्वाउल ग़लील (7/6) में इस हदीस को सही क़रार दिया है।

ऐसे दस्तर ख़्वान पर बैठने से रोकने का कारण यह है कि शराब का पीना एक महान बुराई है तथा यह महा पापों में से है। अतः इस का पीना जायज़ है और न ही इस का समर्थन करना जायज़ है।

एक मोमिन का कर्तव्य है कि वह बुराई को अपने हाथ से रोके, यदि वह इस की क्षमता नहीं रखता तो वह अपनी ज़ुबान से रोके, यदि वह इस की भी क्षमता नहीं रखता तो वह अपने दिल में इसे बुरा जाने। किन्तु ऐसी स्थिति में यदि वह क्षमता रखता है तो उस पर अनिवार्य है कि बुराई के स्थान से उठ खड़ा हो और उससे दूर हो जोए।

तथा प्रश्न संख्या : (145587) और प्रश्न संख्या : (94936) का उत्तर भी देखें।

यही सामान्य सिद्धान्त है कि शराब पीने के दौरान दस्तरख्वान पर नहीं बैठना चाहिए। यदि आप के माता पिता भोजन के बाद शराब पीते हैं तो आप उन के साथ खाना खाएँ और उनके शराब पीने से पहले वहाँ से उठ जाएं। यदि वे भोजन के साथ ही शराब पीते हैं तो यदि आप उन के साथ न बैठने में सक्षम हों और न बैठने से किसी उससे बड़ी ख़राबी का डर न हो तो आप ऐसा ही करें (कि उन के साथ न बैठें), और उन्हें बताएँ कि आप का धर्म इस मामले में उनके साथ बैठने से रोकता है।

यदि आप को इस से किसी बड़ी मुसीबत व नुक़सान का डर हो - मात्र उन दोनों की शर्मिन्दगी नहीं - जैसे कि वे आप को घर से बाहर निकाल दें अथवा वे इस्लाम में रूचि लेने के बावजूद आप की बातें सुनने से दूर हो जाएं और आप की बातें सुनने से इनकार कर दें तो ऐसी स्तिथि में दिल में अस्वीकृति, घृणा और इनकार करते हुए उन के साथ बैठना जायज़ है।

तथा आप के लिए उचित है कि आप उन्हें शराब की बुराइयों और उस के नुक़सान बताएं और उन कारणों को भी समझाएं जिन की वजह से शराब का पीना निषिद्ध (हराम) है। तथा अधिक जानकारी के लिए प्रश्न संख्या : (40882) का उत्तर देखें।

हम अपने लिए और आप के लिए अल्लाह से तौफीक़ और सत्यनिष्ठा का प्रश्न करते हैं।

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